फ़ोटो प्रदर्शनी | फ़ोटोग्राफ़ी स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड

नवरोज़ कॉन्ट्रैक्टर फ़ोटोग्राफ़ी और सिनेमैटोग्राफ़ी की दुनिया का वो ख़ास नाम रहा है, जिसकी दिलकश तस्वीरें हमें उत्तर भारत में ज़्यादा देखने को तो नहीं मिली पर फ़िल्मों के शौक़ीन, ख़ासकर समानांतर सिनेमा के प्रेमी उन्हें उनकी अदाकारी और कैमरा के पीछे के काम के लिए ज़रूर पहचानते होंगे. इसके बावज़ूद उनकी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों को चाहने वाले हमेशा उस मौक़े की तलाश में रहते थे जब उनकी कोई प्रदर्शनी, कोई नुमाइश दिल्ली के आसपास हो, जो कि विरली या असाधारण बात थी.
अफ़सोस, 2023 में हुए एक सड़क हादसे में नवरोज़ चल बसे. उनकी तस्वीरों की आख़िरी नुमाइश, ‘द हियरिंग कैमरा’, सन् 2008 में दिल्ली की स्टेनलेस गैलरी में हुई. आज हमारे बीच होते तो नवरोज़ 82 साल के होते. नवरोज़ कॉन्ट्रैक्टर की चुनिंदा और उम्दा तस्वीरों की प्रदर्शनी ‘फ़ोटोग्राफ़ी स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड’ गुडगाँव के म्यूज़ियो कैमरा में 2 से 16 मार्च तक रही.
अपने लेख ‘ऑन फोटोग्राफ़ी’ में सुसैन सोनटैग ने तस्वीर खींचने की क्रिया को ‘फोटोग्राफर द्वारा अपनी चिंता, शंका और असुरक्षा के ख़िलाफ़ बचाव’ के तौर पर वर्णित किया. सोनटैग ने कहा कि ये प्रक्रिया फ़ोटोग्राफ़र के हाथ में किसी भी स्थिति से मुक़ाबला करने का तंत्र बन जाता है. इसके उलट नवरोज़ की तस्वीरों को देख कर ऐसा लगता है जैसे तस्वीरों के ज़रिये वह समाज में हर क़िस्म की अराजकता से लड़ने को और उसे बेनक़ाब करने की चुनौती दे रहे हों. उनकी तस्वीरें समाज की हर ख़ामी से मुक़ाबला करने की ताक़त देती हैं.
इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर संजीव शाह कहते हैं कि नवरोज़ ने अपने 60 साल के फ़ोटोग्राफ़ी के सफ़र में बीस हज़ार से भी ज़्यादा तस्वीरें खींचीं – इस प्रदर्शनी में शामिल तस्वीरें उनका एक छोटा-सा हिस्सा हैं. संजीव कहते हैं कि वह नवरोज़ को 35 साल से भी लंबे समय तक जाना और इस दौरन उन्होंने नवरोज़ को कभी भी बिना कैमरे लिए घर से निकलते नहीं देखा. कैमरा म्यूज़ियो में लगी नवरोज़ की तस्वीरों में से ज़्यादातर तस्वीरें पहले कभी नहीं दिखाई गईं. ये तस्वीरें नवरोज़ की जिंदगी का वो पहलू हैं, जिस नज़र से वो दुनिया को देखते थे और उनकी उसी नज़र और सोच के ज़रिया हम नवरोज़ को ठीक तरह समझ सकते हैं.
नवरोज़ ने फ़ाइन आर्ट की अपनी पढ़ाई बड़ौदा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से की, पेंटिंग और फ़ोटोग्राफ़ी में विशेषज्ञता के साथ उन्होंने यह डिग्री हासिल की. इसके बाद पुणे से फ़िल्म और सिनेमैटोग्राफ़ी की पढ़ाई की. अमेरिका में मशहूर छायाकार भूपेंद्र कारिया की शागिर्दी में भी फ़ोटोग्राफ़ी का अध्ययन किया. नवरोज़ ने टोक्यो के सोनी कॉर्पोरेशन में भी वीडियो प्रोडक्शन की कला सीखने में कुछ समय बिताया.
वह अहमदाबाद में पले और बड़े हुए पर उन्होंने बेंगलुरु को अपना घर बना लिया था. ‘फ़ोटोग्राफ़ी स्ट्रिक्टली प्रोहिबिटेड’ नाम की उनकी प्रदर्शनियों की श्रृंखला और इसी नाम की उनकी कित्ताब उनकी कलात्मक क्षमताओं को देखने-समझने की खिड़की है.
गुजरात के अलंग तट पर जहाज तोड़ने वाले यार्ड में काम करने वाले कामगारों की उनकी तस्वीरें काम की बेहद कठिन परिस्थितियों और हाड़तोड़ मेहनत के मानवीय संघर्ष का असाधारण चित्रण हैं. उसी दीवार पर उनके औद्योगिक मज़दूरों और राजस्थान में सड़क निर्माण या अन्य परियोजनाओं पर काम करने वाली महिलाओं की मार्मिक तस्वीरें हैं.
चीन और जापान में बनाई हुई बच्चों की उनकी तस्वीरें बड़े नाज़ुक ढंग से भावनात्मक और इंसानी पक्ष पेश करती हैं. उन्होंने उन बच्चों के मासूम चेहरों पर आज की दुनिया के दर्द, दुख और अधूरे सपनों के भाव अपनी तस्वीरों में कैद किए हैं.
एक दूसरी दीवार पर बातचीत में लगे कलाकारों की पोर्ट्रेट जैसी छवियां हैं, कैमरे की मौजूदगी से अनजान, जो बेहद मुखर हैं. मणि कौल, सत्यजीत रे, मृणाल सेन, बिरजू महाराज, गुलाम मोहम्मद शेख़ विचार मग्न हैं और आलाप लेते पंडित भीमसेन जोशी अपना पसंदीदा भजन या अभंग प्रस्तुत करते मालूम देते हैं.
नवरोज़ के ये ब्लैक एण्ड व्हाइट चित्र आपको सत्तर और अस्सी के दशक में ले जाते हैं. उनमें फूटती चाँदी-सी चमकीली दानेदार रौशनी और उस से छितराये काले दाने गज़ब ढंग से तस्वीरों को एक नया आयाम देते हैं.
नवरोज़ जैज़-संगीत प्रेमी भी थे, उनका यह प्रेम अमेरिका में रहते हुए पनपा था. जैज़-संगीत पर उनकी तस्वीरें देखते ही बनती हैं. जैज़ श्रृंखला की उनकी तस्वीरें कला, उसकी नैतिकता, सेंसरशिप, धर्म जैसे विषयों पर विमर्श जगाती है. ख़ासतौर पर अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ जुड़े जैज़ संगीत को हमेशा सामाजिक विद्रोह की चेतना के रूप में देखा गया है, और यह तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए उनकी मुक्ति का प्रतीक बन गया है.
नवरोज़ ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैं वाद्ययंत्र बजाते हुए संगीतकार की भावना को पकड़ना चाहता था.’ यह वही बात है जो जैज़ के बारे में है – भावनाएं. और कलाकार बताते हैं कि यह स्वतंत्रता और विरोध का संगीत है. तीखे मोनोटोन में नवरोज़ जैज़ संगीत के ‘ब्लूज़’ वाले मिज़ाज को पकड़ लेते हैं. इस प्रदर्शनी में लगी कई तस्वीरें 1970 के दशक के आख़िर और 1980 के दशक की शुरुआत में सैन फ्रांसिस्को में कीस्टोन कॉर्नर के नाम से मशहूर जैज़ के एक ठिकाने पर ली गईं. जैज़ संगीतकारों की उनकी तस्वीरें स्मिथसोनियन संग्रहालय में प्रदर्शित हैं.
80 के दशक में नवरोज़ ने एक सिनेमैटोग्राफ़र के तौर पर ‘ड्रीम्स ऑफ़ द ड्रैगन्स चिल्ड्रन’ नाम की एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म पर काम किया था. यह पहली बार था, जब चीन ने किसी विदेशी टीम को डॉक्यूमेंट्री बनाने की इजाज़त मिली थी. इस प्रदर्शनी में लगी कुछ रंगीन तस्वीरें नवरोज़ ने इस डॉक्यूमेंट्री के फ़िल्मांकन के दौरान ली थीं. उन्होंने चीन में अपने अनुभव पर एक शानदार किताब भी लिखी है, जिसका नाम भी ‘ड्रीम्स ऑफ़ द ड्रैगन्स चिल्ड्रन’ है.
नवरोज़ कॉन्ट्रैक्टर (1944–2023) फोटोग्राफर और फ़िल्म निर्माता होने के साथ-साथ मोटरसाइकिल चलाने और उसे लेकर यात्रायें करने के शौक़ीन भी थे. उनकी कई तस्वीरें अपनी मोटरसाइकिल घुमक्कड़ी पर भी हैं. जिन फिल्मों में नवरोज़ ने काम किया या जिनके साथ वो जुड़े उनमें – दुविधा, देवी अहिल्या बाई, पर्सी, हुन हुंशी हुंशीलाल और लालच–शामिल हैं.
यह प्रदर्शनी अनुज अंबालाल, हिमांशु पांचाल और संजीव शाह ने क्यूरेट की थी.
सभी तस्वीरेंः राज़िंदर अरोड़ा
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