लोग-बाग | अपनों के सताये सीताराम
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देवरिया | सीताराम नाम के यह बुज़ुर्ग अपनों के सताये हैं. खजड़ी बजाकर वह जो गाते होते हैं, वह कोई गीत या भजन नहीं, उनकी अपनी ज़िंदगी की कहानी है. दया करके लोग उन्हें जो कुछ दे जाते हैं, उसे जमा करके वह मुकदमे का ख़र्च जुटाते हैं.
गौरीबाज़ार ब्लॉक में लबकनी सीताराम चौहान का गाँव है. बक़ौल सीताराम, उनकी पुश्तैनी ज़मीन पट्टीदारों ने और बुढ़ापे का सहारा भगवान ने छीन लिया. कम उम्र में ही घर-बार छोड़कर वह कमाने निकले और असम पहुँच गए. वहीं ब्याह किया. दोनों बेटे अमर और कमल जब कमाने-खाने लायक़ हुए तो चल बसे.
अपने दोनों बेटों को गँवाकर उनका जी उचाट हो गया तो दस बरस पहले गाँव लौट आए. यहाँ पहुँचे तो पाया कि उनके पुरखों की ज़मीन की खतौनी से उनका नाम ग़ायब है और खेतों पर पट्टीदार क़ाबिज़ हो गए हैं. शिकायत लेकर थाने गए मगर सुनवाई नहीं हुई.
छह साल पहले सन् 2014 में यहाँ चकबंदी अधिकारी के यहां मुक़दमा किया. इस मुक़दमे का ख़र्च जुटाने और अपना पेट पालने के लिए वह अपनी ही जीवनी गा कर लोगों को सुनाते हैं.
80 साल के हो गए सीताराम की यादाश्त अब ऐसी रह गई है कि मुक़दमों की तारीख़ याद रख सकें. तारीख़ 17 फ़रवरी को है और वह आज यानी दस फ़रवरी को ही मुक़दमे की पैरवी करने चले आए. पेशकार और सीओ के समझाने के बाद वह कलेक्टर के दफ़्तर से थोड़ी दूर बैठकर खजड़ी बजाते और अपनी कहानी कहते मिले. उनके पास में खजड़ी और लाठी के अलावा एक झोला है, जिसमें रखे कुछ कपड़े उनकी कुल सम्पत्ति हैं.
चकबंदी अधिकारी पंकज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि सीताराम के मुक़दमे की सुनवाई तारीख़ के मुताबिक़ हो रही है. उन्हें वकील को बुलाने के लिए कहा गया है ताकि फ़ैसला जल्दी हो सके.
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