ओलंपिक खेल | चानू का चाँदी से आगाज़

दुनिया में खेल का सबसे बड़ा रंगमंच सज चुका है. उससे पर्दा उठ चुका है. आज से उगते सूरज की धरती पर 32वें ओलंपिक खेलों की शुरुआत हो चुकी है. जहां 33 खेलों की 339 स्पर्धाओं में 200 से ज़्यादा देशों के 11300 से भी ज़्यादा खिलाड़ी अपने हुनर, अपनी क़ाबिलियत और अपने खेल कौशल का प्रदर्शन करने को कमर कस चुके हैं.

दरअसल ये मानवीय क्षमताओं के चर्मोत्कर्ष के प्रदर्शन का मंच है. जहां हर प्रतिस्पर्धी ख़ुद को ‘और अधिक मजबूत, और अधिक ऊंचा, और अधिक तेज़’ साबित करने का प्रयास कर रहे हैं. इस प्रयास में आपको एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाले और आंखे तरेरते प्रतिद्वंद्वी मिलेंगे तो गले मिलते दोस्त भी मिलेंगे. एक दूसरे को कमतर साबित करने वाले दुश्मन मिलेंगे तो हौसला देते सहयोगी भी मिलेंगे.

यहां खिलाड़ियों की अतिमानवीय क्षमताओं का प्रदर्शन होगा और उनके अद्भुत खेल कौशल का भी. यहां जीत होगी और हार भी. ख़ुशी से दमकते चेहरे भी होंगे और ग़म से भीगी आंखें भी. ख़ुशी से बहते शहद से मीठे आँसू होंगे तो ग़म से नमक से खारे हुए आंसू भी. चेहरों से झरती ख़ुशियाँ होंगी और और चेहरों से टपकती उदासी और मायूसी भी. कुछ सपने हकीक़त में बदल जाएंगे और उनके माथे सज जाएंगे तो कुछ सपने टूट कर किरच-किरच बिखर जाएंगे जिससे हुए घावों से उदासी रिसती रहेगी.

ख़ुशी और ग़म, हंसी और उदासी, प्रेम और क्रोध, सहजता और उद्विग्नता सब एक साथ होंगे. भावनाओं का हर रंग वहां बरसेगा और हर रस वहां बहेगा. इन सब के बीच अगर वहां कुछ नहीं होगा तो इस रंग में रंगने वाले और और नवरस का पान करने वाले दर्शक नहीं होंगे. वे इसे सिर्फ़ टीवी के माध्यम से महसूस रहे होंगे.

और आज दूसरे दिन ही भारतीय दर्शकों ने ये सब महसूसा. भारतीय खिलाड़ी जीते भी और हारे भी. उम्मीदें भी जगी और मायूसी भी हाथ लगी. किसी का चेहरा पदकों की चमक से दमका तो कुछ के चेहरे बेनूर हुए. कुछ उम्मीदों पर खरे उतरे और कुछ ने उम्मीदें तोड़ी. कुछ हीरो साबित हुए तो कुछ ज़ीरो.

निःसन्देह पहला दिन मीराबाई चानू के नाम रहा. मानो उगते सूरज के देश में उगते सूरज ने उगते ही अपनी चमक का एक अंश चानू के गले में पदक के रूप में सुरक्षित कर दिया हो. 49 किलोग्राम वर्ग में चानू ने स्नैच व क्लीन एंड जर्क में कुल 202 किलोग्राम वजन उठाकर वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीतकर 2000 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी द्वारा जीते गए कांस्य पदक के रंग को रुपहले रंग में परिवर्तित कर दिया.

चानू की जीत दरअसल अभावों, निराशाओं और विफलताओं की सांझ को दृढ़ संकल्पों, उम्मीदों और उपलब्धियों के उगते सूरज में बदलने की कहानी है. ये सन् 2016 का रियो ओलंपिक था. चानू वहां भी भाग ले रही थीं. लेकिन वे क्लीन एंड जर्क के तीन प्रयासों में विफल रहीं और पदक की उम्मीदें थीं कि निराशाओं के अटलांटिक महासागर में डूब गई. लेकिन वहां सिर्फ़ उस ओलंपिक में पदक की उम्मीद भर डूबी थीं, चानू की आगे बढ़ने की उम्मीद, उनका संकल्प, उनके इरादे इस विफलता से और मज़बूत हुए थे.

रियो और टोक्यो के बीच के पाँच सालों में चानू ने बताया कि आपके इरादे मज़बूत हो तो आप आसमान छू सकते हो. इस बीच वे रियो की विफलता को पीछे छोड़ चुकी थीं और अपनी वेट कैटेगरी में विश्व चैंपियन बन चुकी थीं. निःसन्देह वे जब टोक्यो ओलंपिक में जा रही थीं तो वे भारतीयों की सबसे बड़ी उम्मीदों में एक थीं.

समाज में लड़कियों को बचपन से ज़िम्मेदारियों से लाद दिया जाता है. घर की, परिवार की, समाज की तमाम ज़िम्मेदारियों से. और ये ज़िम्मेदारियां उम्मीदों में बदल जाती हैं, पता ही नहीं चलता. अगर कुछ पता होता है तो सिर्फ़ ये कि उम्मीदों पर भी ज़िम्मेदारियों की तरह ही खरा उतरना है.

घर का चूल्हा जलाने के लिए जंगल से जलावन लाने की चानू की ज़िम्मेदारी कब देश की पदक की उम्मीद में तब्दील हो गई, ये भले ही पता न चला हो पर वे उम्मीदों पर खरा उतरना जानती थीं और उस उम्मीद पर वे खरी उतरीं. उनकी भुजाएं इतनी फ़ौलादी हैं कि वे उम्मीदों का वजन उठा सकें और कंधे इतने बलिष्ठ कि ज़िम्मेदारियों का बोझ.

जिस देश की राजधानी में उत्तर-पूर्व के लोगों के साथ बदसलूकी की शिकायतें आम हों, उसी जगह की एक लड़की उन्हीं लोगों के माथे पर एक पदक टांक रही होती है और उन लोगों के साथ देश का माथा गर्व से ऊंचा कर रही होती है.

चानू को एक सलाम तो बनता है.

हॉकी में पुरुषों में न्यूज़ीलैंड को 3-2 से हराया. लेकिन महिलाओं ने आधे समय तक शानदार खेल दिखाते हुए नीदरलैंड को 1-1 से बराबरी पर रोके रखा. हालांकि वे 1-5 से हार गईं. बॉक्सिंग में ख़राब शुरुआत हुई. विकास कृष्ण जापान के ओका जावा से हार गए. तो बैडमिंटन में चिराग शेट्टी और ऋत्विक की जोड़ी ने शानदार आगाज़ किया. उन्होंने विश्व नंबर तीन ताइपे जोड़ी को हराकर अगले राउंड में प्रवेश किया. लेकिन एकल में साई प्रणीत इज़रायल के खिलाड़ी से हार गए. तीरंदाजी में प्रवीण जाधव और दीपिका कुमारी की जोड़ी अच्छी शुरुआत करने के बाद क्वार्टर फ़ाइनल में कोरिया की जोड़ी से हार गए.

10 मीटर एयर राइफ़ल स्पर्धा में अभिषेक वर्मा फ़ाइनल के पहुंचने में असफल रहे. लेकिन न्यू सेंसेशन सौरभ चौधरी क्वालिफिकेशन राउंड में प्रथम स्थान के साथ फ़ाइनल में प्रवेश किया. हालांकि अपना प्रदर्शन वे फ़ाइनल में बरकरार नहीं रख पाए और सातवें नंबर पर रहे. पर उनका प्रदर्शन उम्मीद जगाता है कि उनका भविष्य उज्जवल है और भारत की पदकों की उम्मीद भी.

10 मीटर राइफ़ल की महिलाओं की स्पर्धा में इलावेलिन और पूर्वी चंदेला फ़ाइनल के लिए क्वालीफ़ाई नहीं कर सकीं. टेबल टेनिस में मोनिका बत्रा ब्रिटेन की टिन टिन हो को हराकर अगले चक्र में पहुंची. लेकिन शरथ अंचत और मोनिका की जोड़ी मिक्स डबल में ताइपे की जोड़ी आए हार गए. टेनिस में सुमित नागल ने डेनिस इस्तोमिन को तीन सेटों में हराया.

कुल मिलाकर दूसरे दिन भारत का प्रदर्शन मिला-जुला रहा. लेकिन 2016 के रियो को याद कीजिए, जहां पहले दस-बारह दिन भारत पदकों के लिए तरस गया था. यहां पहले ही दिन चानू के रजत पदक की बदौलत पदक तालिका में नाम दर्ज करा लिया.

उम्मीद की जानी चाहिए. आज के प्रदर्शन को भारत के खिलाड़ी बनाए रखेंगे.


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