‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका का लोकार्पण आज

पिछली सदी में दो दशकों तक छपती रही पत्रिका ‘स्त्री दर्पण’ एक बार फिर शुरू हो रही है. एक जुलाई को शाम सात बजे इसके डिज़िटल संस्करण का लोकार्पण होगा. प्रिंट संस्करण 15 जुलाई को आएगा.

सन् 1909 से 1929 तक छपती रही मासिक पत्रिका ‘स्त्री दर्पण’ की संपादक रामेश्वरी नेहरू थीं. महिलाओं और ग़रीबों के उत्थान के लिए काम करने सुश्री रामेश्वरी नेहरू परिवार की बहू थीं. स्त्री नवजागरण के अध्येताओं का मानना है कि आज़ादी आंदोलन में इस पत्रिका की वही भूमिका थी, जो प्रताप, सरस्वती, मतवाला और हंस सरीखी पत्र-पत्रिकाओं की थीं, मगर इतिहासकारों ने इसके अवदान को उतना महत्व नहीं दिया.

ताज़ा पत्रिका का प्रकाशन गुज़रे दिनों के स्मृति दर्पण की स्मृति में है. दो साल पहले इसी नाम से बने फ़ेसबुक ग्रुप को ख़ासी शोहरत मिली. इस ग्रुप के अब दस हज़ार से ज़्यादा सदस्य हैं. इस नाम से एक पोर्टल भी बना, जिस पर क़रीब सवा लेखिकाओं के पेज हैं. 26 मई को गीतांजलिश्री को बुकर पुरस्कार मिलने पर ‘स्त्री दर्पण’ पत्रिका छापने का फ़ैसला किया गया था.

पत्रिका के सलाहकार मंडल में मृदुला गर्ग, सुधा अरोड़ा, रोहिणी अग्रवाल और सुधा सिंह शामिल हैं, और संपादक सविता सिंह हैं. पहले अंक में बुकर अवार्ड पर अशोक बाजपेयी के साक्षात्कार के साथ ही सोशल मीडिया में ऑर्गेज़्म की बहस पर प्रगति सक्सेना का लेख और विनोद भारद्वाज की टिप्पणी शामिल है. ‘लेखकों की पत्नियाँ’ श्रृंखला में आचार्य शिवपूजन सहाय की पत्नी बच्चन सिंह पर भी एक लेख है. सत्यजीत रे की जन्मशती पर जबरीमल पारख का लेख और गोर्की पर विद्या निधि छाबड़ा का लेख है. रंगमंच और स्त्री विमर्श के साथ ही कविताएं और कई स्तम्भ भी शामिल हैं.

पत्रिका का पीडीएफ या प्रिंट संस्करण खरीदने के बारे में विस्तृत जानकारी streedarpan.com या स्त्री दर्पण के फ़ेसबुक पेज पर मिल सकेगी.


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