नाट्य उत्सव | आख़िरी शाम ‘उड़ते पंछी’
प्रयागराज | त्रिधारा नाट्य महोत्सव का समापन हास्य रस से सराबोर नाटक ‘उड़ते पंछी’ से हुआ. रंगभूमि, दिल्ली की ओर से प्रस्तुत इस नाटक का निर्देशन जे.पी. सिंह ने किया.
‘उड़ते पंछी’ फ़्रेंच नाटक ‘बोइंग बोइंग’ का हिंदुस्तानी रूपांतरण है. नाटक का केंद्रीय तत्व भौतिकता के पीछे आंख बंद करके भाग रहे ऐसे लोग हैं, जो अपने स्वार्थ की ख़ातिर सारी नैतिकता ताक पर रख देते हैं. हर क़दम पर झूठ का सहारा लेते हैं. फिर एक झूठ को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलते चले जाते हैं, हालांकि एक न एक दिन उनका यह झूठ ज़ाहिर हो ही जाता है.
कभी-कभी सेर को सवा सेर मिल ही जाता है. झूठ की नींव पर खड़ी होने वाली दीवार कभी मज़बूत आशियाना नहीं बन पाती. ऐसे संबंधों का अंत भी सुखद नहीं होता.
‘उड़ते पंछी’ एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो एक साथ तीन-तीन एयर होस्टेस के साथ प्रेम कर रहा है. नाटक के संवाद और स्थितियां हास्य पैदा करती हैं.
मंच पर प्रिंस राजपूत (पवन), दीप्ति शर्मा (आशा), गौरव वर्मा (महाबली), अरुण सोदे (कृष्ण कटारिया), तृप्ति जोहरी (आभा), अंजना अहलूवालिया (अनीता) ने प्रभावी अभिनय किया. मुख सज्जा पवन चौहान प्रकाश परिकल्पना राहुल चौहान ने की. मूल आलेख मार्क कैमोलिटी का है, जिसका रूपांतरण सुरेंद्र गुलाटी ने किया. निर्देशन जेपी सिंह का था. कार्यक्रम का संचालन आकाश अग्रवाल चर्चित ने किया.
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