अमीन सयानी | एक दिलकश आवाज़ की ख़ामोशी

  • 8:39 pm
  • 21 February 2024

देश और दुनिया में लाखों लोगों के दिलों पर राज़ करने वाली वह आवाज़ ख़ामोश हो गई, मुल्क़ का आम आदमी भी जिसमें ख़ास तरह का अपनापन महसूस करता था. थोड़े वक़्त के लिए ही सही, अपना ग़म-ओ-रंज वह भूल जाता था. ऐसी दिलकश आवाज़ और बेलौस अंदाज़ के मालिक अमीन सयानी ने आज तड़के आख़िरी सांस ली. पिछले कुछ सालों से वह सेहत की परेशानियों से गुज़र रहे थे.

आज़ादी के बाद जिन लोगों ने रेडियो को आम आदमी तक पहुंचाया, उसकी लोकप्रियता बढ़ाई, उनमें सबसे अव्वल नंबर पर अमीन सयानी का नाम था. एक दौर था, जब अमीन सयानी रेडियो की आवाज़, उसकी पहचान बन गए थे. रेडियो की आवाज़ के पर्याय बन गए थे. हफ़्ते में एक बार बुधवार के दिन पूरा कुनबा साथ बैठता और उनमें से कोई एक रात के आठ बजने से पहले रेडियो सीलोन ट्यून करता. रेडियो पर उनका सुपर हिट प्रोग्राम ‘बिनाका गीतमाला’ शुरू होता, तो वक़्त जैसे थम जाता. बेहद जोश-ओ-ख़रोश और अनौपचारिक अंदाज़ में रेडियो पर जब उनकी खनकती हुई आवाज़ गूंजती, ‘‘जी हां, भाइयों और बहनों, मैं हूं आपका दोस्त अमीन सयानी और आप सुन रहे हैं बिनाका गीतमाला’’, तो माहौल पर जादू-सा तारी हो जाता. फ़िल्मी गानों की इस हिट परेड को लेकर तमाम क़यास लगाए जाते. मोहल्लों के नुक्कड़ और चौराहों पर फ़िल्मी गीतों के दीवानों के बीच यह शर्त लगती कि आज के प्रोग्राम में कौन-सा गाना किस पायदान पर रहेगा, और कौन-सा पहली पायदान पर? ऐसी मक़बूलियत कम रेडियो प्रोग्राम और एनाउंसर को हासिल हुई है. और यह सब अब स्मृतियों का हिस्सा रह गया.

मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ज़माने में उन्होंने थिएटर भी किया. शास्त्रीय संगीत सीखा. वह बहुत अच्छा गाया करते थे और उनकी ख़्वाहिश गायक बनने की थी. आगे चलकर उनकी आवाज़ फट गई और गाना मुश्किल हो गया. यही वजह है कि बाद में उन्होंने अपना यह इरादा छोड़ दिया. अमीन सयानी का वास्ता रेडियो से कैसे हुआ, यह क़िस्सा भी दिलचस्प है. उनके बड़े भाई हामिद सयानी एक बेहतरीन ब्रॉडकास्टर थे और रेडियो सीलोन में प्रोड्यूसर थे. उन्होंने ही सबसे पहले अमीन सयानी को रेडियो से जोड़ा. हामिद सयानी के मशवरे पर अमीन सयानी ने ऑल इंडिया रेडियो में हिंदी ब्रॉडकास्टर के लिए आवेदन किया. अब इस बात पर शायद ही कोई यक़ीन करे कि उनकी आवाज़ को रेडियो के लिए मुनासिब नहीं माना गया. अपने एक इंटरव्यू में खुद अमीन सयानी ने यह बात बताई थी कि उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया गया, ‘‘स्क्रिप्ट पढ़ने का आपका हुनर अच्छा है, लेकिन मिस्टर सयानी आपके तलफ़्फु़ज़ में बहुत ज़्यादा गुजराती और अंग्रेज़ी की मिलावट है, जो रेडियो के लिए अच्छी नहीं.’’ ज़ाहिर है कि यह सुनकर उन्हें काफ़ी धक्का लगा. वे निराश हो गए. अपने मार्गदर्शक और उस्ताद हामिद सयानी के पास पहुंचे, तो उन्होंने अमीन से रिकॉर्डिंग के दौरान रेडियो स्टेशन के हिंदी कार्यक्रमों को सुनने के लिए कहा. अमीन सयानी ने ब्रॉडकास्टिंग का फ़न सीखने और उसे अपनाने करने में अपना जी-जान लगा दी. आगे चलकर उन्हें इसका सिला भी मिला.

बीसवीं सदी के पांचवे दशक में रेडियो सीलोन पर हामिद सयानी की पेशकश में अंग्रेज़ी गीतों का एक प्रोग्राम बहुत बढ़िया प्रदर्शन कर रहा था. इस कामयाबी से मुतास्सिर होकर विज्ञापन कंपनी ऐसा ही एक प्रोग्राम हिंदी फ़िल्मी गीतों का भी करना चाहती थी. कंपनी ने इस बाबत हामिद सयानी को बताया. उन्होंने यह प्रोग्राम ख़ुद न करते हुए अमीन सयानी को इसके लिए राज़ी कर लिया. इस तरह रेडियो पर एक शानदार प्रोग्राम के सफ़र का आग़ाज़ हुआ. प्रोग्राम का नाम ‘बिनाका गीतमाला’ था. तीन दिसंबर, 1952 को सात गानों की सीरीज़ का पहला प्रोग्राम रेडियो पर आया और खूब पसंद किया गया. पहले ही प्रोग्राम से इसे जो कामयाबी मिली, तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस प्रोग्राम ने बीस साल के अमीन सयानी की ज़िन्दगी बदल कर रख दी. रातों-रात वह आवाज़ की दुनिया में स्टार बन गए. रेडियो सीलोन में पहले प्रोग्राम के बाद, ‘बिनाका गीतमाला’ की तारीफ़ में श्रोताओं के तक़रीबन नौ हज़ार ख़त पहुंचे. यह सिलसिला आगे भी क़ायम रहा. एक दौर ऐसा भी आया, जब हर हफ़्ते ख़त की तादाद पचास हज़ार तक पहुँच गई. रेडियो और आवाज़ की दुनिया में यह एक इंक़लाब था. इससे पहले किसी प्रोग्राम को ऐसी शोहरत नहीं मिली थी.

रेडियो सीलोन और फिर उसके बाद आकाशवाणी के विविध भारती पर प्रसारित ‘बिनाका गीतमाला’ की चालीस बरस से भी ज़्यादा समय तक, देश में ही नहीं दुनिया के कई देशों में धूम रही. दुनिया में कोई दूसरा रेडियो या टीवी प्रोग्राम इतने लंबे वक़्त और एक साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका और खाड़ी के मुल्कों में मक़बूल नहीं रहा. इस प्रोग्राम के चाहने वाले दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व, पूर्वी एशिया और यूरोप के कुछ मुल्कों में भी थे. आज भी यह रिसर्च का मौजू़अ है कि इस कामयाबी के पीछे हिंदी फ़िल्मी नग़मों का जादू था या अमीन सयानी की चहकती आवाज़, या फिर प्रोग्राम को पेश करने का उनका दिलकश अंदाज़. गोया कि वे जो भी कुछ बोलते, श्रोताओं के दिल को छू जाता. दुनिया भर के लाखों श्रोताओं के लिए अमीन सयानी सिर्फ़ रेडियो-शो के होस्ट भर नहीं थे, बल्कि वे उनके परिवार का हिस्सा हो गए थे. अमीन सयानी ‘बिनाका गीतमाला’ में पसंदीदा गानों को बजाने के साथ-साथ श्रोताओं के मनोरंजन का पूरा ख़याल रखते. प्रोग्राम के बीच-बीच में कुछ दिलचस्प चिट्ठियां पढ़ते, तो एक कामयाब क़िस्सागो की तरह कुछ दिल को छू लेने वाले क़िस्से सुनाते. फ़िल्मी गीतों के अलावा वे अपनी बातों से भी श्रोताओं को बांधकर रखते थे. अमीन सयानी की शानदार पेशकश में ‘बिनाका गीतमाला’ ने एक इतिहास रचा. अलबत्ता श्रोताओं की पसंद और मांग को देखकर इसमें बीच-बीच में तब्दीलियां ज़रूर होती रहीं. मसलन प्रोग्राम में गानों की तादाद सात से बढ़कर सोलह हुई, तो ‘बिनाका गीतमाला’ के जानिब लोगों की दीवानगी को देखकर, प्रोग्राम का समय आधे घंटे से बढ़ाकर एक घंटा हुआ. साल 1986 में ‘बिनाका गीतमाला’ का नाम बदलकर ‘सिबाका गीतमाला’ हुआ, लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई. इन सब बदलावों के बीच, सिर्फ़ एक चीज़ नहीं बदली और वह थी अमीन सयानी की आवाज़.

‘बिनाका गीतमाला’ के अलावा अमीन सयानी ने रेडियो पर जो भी प्रोग्राम पेश किए, वे सभी कामयाब रहे. अमीन सयानी का नाम ही इन प्रोग्राम की कामयाबी की कसौटी बन जाता. ‘एस कुमार्स का फ़िल्मी मुक़दमा’, ‘फ़िल्मी मुलाकत’, ‘सेरिडॉन के साथी’, ‘बोर्नविटा क्विज़ प्रतियोगिता’, ‘शालीमार सुपरलैक जोड़ी’, ‘मराठा दरबार’, ‘संगीत के सितारों की महफ़िल’ वगैरह ऐसे कई प्रोग्राम हैं, जो अमीन सयानी की दिलकश आवाज़ और दिलचस्प पेशकश से श्रोताओं के दिल और जे़हन में आज भी बचे रह गए हैं. अमीन सयानी ने अपने रेडियो कॅरिअर के दौरान फ़िल्मी दुनिया के टॉप के कलाकारों, गायकों, संगीतकारों और गीतकारों के इंटरव्यू लिए हैं. पचास हज़ार से ज़्यादा रेडियो प्रोग्रामों के लिए काम किया और पन्द्रह हज़ार से भी ज़्यादा विज्ञापनों में अपनी आवाज़ दी है. यह एक रिकार्ड है.

अमीन सयानी की आवाज़, श्रोताओं के जे़हन में इस क़दर बैठी है कि आज भी रेडियो पर जब कोई अच्छी आवाज़ आती है, तो उसकी तुलना अमीन सयानी की आवाज़ से ही होती है. अमीन सयानी की मक़बूलियत का सबब यदि जानें, तो हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू के साथ गुजराती ज़बान पर भी उनकी मज़बूत पकड़ थी. हिन्दी—उर्दू से इतर उनकी ज़बान ख़ालिस हिन्दुस्तानी थी. वह जब बोलते, तो इस बात का ज़रूर ख़याल रखते कि उनकी बातें आम आदमी को भी समझ में आएं. यह बातें उनके दिल के क़रीब हों.

आवाज़ की दुनिया में बेमिसाल योगदान के लिए अमीन सयानी को कितने ही पुरस्कार और सम्मान मिले. ‘पद्मश्री’ पुरस्कार के अलावा इंडिया रेडियो फ़ोरम के साथ लूप फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने ‘लिविंग लेजेंड अवार्ड’, इंडियन सोसाइटी ऑफ़ एडवर्टाइजर्स (आईएसए) से गोल्ड मेडल, पर्सन ऑफ़ द ईयर अवार्ड के अलावा उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी शामिल रहा है. अमीन सयानी ने कई फ़िल्मों में काम किया, तो उनकी आवाज़ फ़िल्मों और गानों में भी इस्तेमाल हुई. बरसों पहले रिकॉर्ड किए गए उनके कई लाजवाब प्रोग्राम आज भी लोग यूट्यूब और ‘सारेगामा कारवाँ’ (रेडियो) जैसे माध्यमों से सुनते हैं. उनके अंदाज़-ए-बयां का बेशुमार दीवाने थे. उनकी आवाज़ से जुड़ना, एक गुज़रे हुए दौर में वापस जाना था. एक नॉस्टेलजिया, जो उम्र बढ़ने के साथ हर एक के संग पेश आता है.

अमीन सयानी ने पिछले साल ही अपनी बेहतरीन ज़िंदगी के 91 साल मुकम्मल किए थे. आख़िरी समय तक उनकी आवाज़ में वही दम-ख़म था, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता सेहत उनका साथ छोड़ती जा रही थी. बावजूद इसके वे ज़िंदगी से निराश नहीं थे, उन्होंने भरपूर जीवन जिया. उसका जमकर लुत्फ़ लिया. आत्मकथा पूरी करने की उनकी हसरत अलबत्ता बाक़ी रह गई. इस आत्मकथा का इंतज़ार, सिर्फ़ उन्हें ही नहीं, दुनिया भर में उनके लाखों चाहने वालों को भी था. अफ़सोस! आत्मकथा छपने से पहले उन्होंने रुख़्सती ले ली.

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