श्रद्धांजलि | ईश्वर मानते आए जिसको वो तो फ़क़त इंसां निकला

जिस व्यक्ति के बारे में हम कह-सुन रहे हैं, इतना लिख-पढ़ रहे हैं, दरअसल पहले जान तो लें वो है क्या!

पेले के समकालीन और दुनिया के महानतम फ़ुटबॉलरों में शुमार हॉलैंड के जोहान क्रुयफ़ ने एक बार कहा था, ‘पेले एकमात्र ऐसे फ़ुटबॉलर हैं जो तर्क की सारी सीमाओं को पार कर गए हैं.’

तर्क की सीमा के पार मनुष्य होते हैं क्या! नहीं न! तो क्या वे फ़ुटबॉल के ईश्वर थे? शायद हाँ!

तभी तो एक दूसरे महानतम फ़ुटबॉलर हंगरी के फ्रेंक पुस्कास ने कहा था, ‘इतिहास का महानतम खिलाड़ी डी स्टिफानो था. मैं पेले को खिलाड़ी मानने से इनकार करता हूँ. वो इन सबसे ऊपर है.’

एक खिलाड़ी से ऊपर आख़िर कौन हो सकता है! एक ईश्वर ही न! यानी पेले एक ईश्वर ही थे?

1970 के विश्व कप फ़ाइनल में ब्राज़ील ने इटली को 4-1 से हराया था. उस मैच में उन्हें मार्क कर रहे महान इतावली डिफ़ेंडर तार्सीसिओ बर्गनिच कह रहे थे, ‘मैच से पहले मैंने स्वयं को समझाया आख़िर है तो वो भी (पेले) औरों जैसा हाड़-मांस का बना इंसान ही. पर मैं गलत था.’

यानी वो एक इंसान भी नहीं था. स्वाभाविक है ईश्वर ही होगा!

हां, याद आया दो बार खुद पेले ने भी कुछ ऐसा ही कहा था. 1970 के विश्व कप के दौरान मेनचेस्टर यूनाइटेड के डिफेंडर पैडी क्रेरंद ने एक टीवी शो में पेले से पूछा कि ‘पेले के हिज्जे क्या हैं.’ पेले ने जवाब दिया था, ‘बहुत ही आसान. जी. ओ. डी..’ एक दफ़ा यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी शोहरत ईसा जितनी ही है, उन्होंने कहा था कि ‘दुनिया के कुछ हिस्सों में ईसा को उतनी अच्छी तरह से नहीं जाना जाता है.’

तो तय हुआ कि अगर वे तर्कातीत थे, एक खिलाड़ी से कहीं अधिक थे और हाड़-मांस के इंसान भी नहीं थे, तो ईश्वर ही होंगे.

आज तक मैं भी उसे देव तुल्य ही जानता समझता था. मेरे तईं फ़ुटबॉल का कुल इतिहास दो देवताओं का इतिहास था. जो पेले से शुरू होकर मैस्सी पर ख़त्म हो जाता है. मुझे उन दोनों के बीच माराडोना ही एक ऐसा इंसान नज़र आता था, जो उन देवताओं के सामने ताल ठोंकता, उन्हें चुनौती देता नज़र आता था.

लेकिन आज जब एडसन अरांतेस दो नेसीमेंतो नाम के शरीर ने पेले नाम की आत्मा को बेघर कर दिया है, तो कुछ अलग ही अहसास हुआ जाता है. दृष्टि है कि साफ़ हुई जाती है. मन का भ्रम है कि छंटा जाता है. मन में बनी एक मूर्ति है, जो टूट-टूट जाती है. और?

और एक ईश्वर है कि जिसकी मौत हुई जाती है.

अब पेले नाम के किसी ईश्वर को मैं नहीं जानता. पेले हाड़-मांस का बना हम और आप जैसा ही एक शख़्स था, एक ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु भी होती है, जो खिलाड़ी था और जो फ़ुटबॉल खेलता था. ऐसी फ़ुटबॉल खेलता जैसी कोई दूसरा नहीं खेल पाता. एक ऐसा फ़ुटबॉलर जिसके जैसा कोई दूसरा न था. ठीक वैसा ही जैसे एक बीथोवन था, एक बाख़ था और एक माईकेल एंजेलो. और ये सब ईश्वर की अनुपम देन नहीं थीं, तो फिर क्या थीं!

दरअसल ये इंसान की फ़ितरत है कि वो इंसानी सीमाओं को पहचानता ही नहीं. वो नहीं जानता कि इंसान की क्षमताएं क्या और कितनी हैं. एक इंसान के वे कार्य जो उसके लिए जब तर्क से परे हो जाते हैं, तो उसमें देवत्व आरोपित कर देता है.

लेकिन इंसान की तर्कातीत उपलब्धियों में देवत्व का आरोपण मनुष्यता का और ख़ुद मनुष्य का अपमान है. यह मनुष्य की उपलब्धियों को छोटा कर देना है. मनुष्य को रिड्यूस कर देना है. शायद पेले को देवता कहना, ईश्वर बनाना उसकी असाधारण क्षमताओं को रिड्यूस कर देना है.

पेले हाड़-मांस का बना एक ख़ूबसूरत इंसान था, और है और रहेगा. वह एक ऐसा इंसान था, जो मानवीय गरिमा से ओतप्रोत था और जिसका चेहरा मानवीय करुणा दीप्त होता था.

वो हाड़-मांस का बना एक ऐसा खिलाड़ी था जिसने 17 साल की उम्र में पहला विश्व कप जीत लिया था. जिसने एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन विश्व कप जीते थे. जिसने एक, दो या सौ, दो सौ नहीं बल्कि कुल 1283 गोल किए थे. एक ऐसा खिलाड़ी, फ़ुटबॉल का ऐसा जादूगर था, जिसके पैरों का जादू देखने भर को नाइजीरिया के सिविल वॉर में लड़ते दो पक्षों ने 48 घंटों का युद्ध विराम कर दिया था. ऐसा खिलाड़ी था, जिसने खेल कौशल को उस सीमा तक पहुँचा दिया था कि वो तर्कातीत हो जाती थी.

उसने एक ऐसी असाधारण उपलब्धि धारण की थी कि सिर्फ़ 29 साल की उम्र में 1000वां गोल कर सका और उसकी इस उपलब्धि को चांद पर जाकर सेलिब्रेट किया गया. आख़िर क्या ही संयोग विधि द्वारा गढ़े जाते हैं कि ऐन 19 नवंबर 1969 के दिन जब वो वास्को डी गामा के विरुद्ध सांतोस के लिए खेलते हुए पेले अपना हजारवाँ गोल कर रहा था, तो मनुष्य अपोलो यान से चांद पर पहुंच कर इस क्षण को सेलिब्रेट करता है. ऐसा सम्मान और किसे मिल सकता था. आख़िर कौन इसके काबिल हो सकता था.

वो क्या ही अद्भुत दृश्य रहा होगा, जब उसने अपना हजारवाँ गोल किया तो कितने ही मिनटों तक खेल रोक दिया गया था और सांतोस और वास्को डी गामा, पक्ष और विपक्ष दोनों ही दलों के खिलाड़ी उस को अपने कंधे पर बिठाकर परेड कर रहे थे.

कितना ख़ूबसूरत वो खिलाड़ी रहा होगा और कितना ख़ूबसूरत उसका मन कि वो अपने एक हजारवें गोल का जश्न मनाने के बजाए ब्राज़ील के हज़ारों गरीब बच्चों और उनके भविष्य की चिंता कर रहा था. आख़िरकार मदर टेरेसा की तरह दुनिया भर की करुणा से भीग रहे चेहरे को देखकर ही तो सन् 1966 में पेले से मुलाक़ात करते हुए पोप पॉल ने कहा होगा, ‘नर्वस मत होओ मेरे बेटे. मैं तुमसे ज्यादा नर्वस हूँ. बहुत लम्बे अरसे से ख़ुद तुम से मिलने का सपना देखता रहा हूँ.’

आख़िर कितने ख़ुशक़िस्मत रहे होंगे, वे लोग जिन्होंने उनके पैरों से होते 1283 गोल देखे होंगे. 91 हैट्रिक बनती देखी होंगी. कितने ख़ूबसूरत रहे होंगे उनके बाइसिकल गोल. कितना ख़ूबसूरत रहा होगा वो शॉट जब चेकोस्लोवाकिया के खिलाफ़ मध्य रेखा से लगभग गोल कर ही दिया था.

कैसा अनोखा और मूल्यवान रहा होगा वो खिलाड़ी जिसको खो देने के भय से राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया हो.

ऐसी ख़ूबसूरत फ़ुटबॉल जिसमें अद्भुत ड्रिबलिंग हो, शक्ति, गति और नियंत्रण हो, लय हो, देवताओं को कहां रुचती है. ये तो हाड़-मांस से बने मानुस को ही शोभती है, हां पेले को रुचती है.

1957 से 1974 के मध्य फ़ुटबॉल के मैदान में एक खिलाड़ी द्वारा जो जादू बिखेरा गया, जो कीर्तिमान बने, वे देवताओं के बस की बात थोड़े ही न थी. ये उन सीमाओं की बानगी भर है, जिन्हें एक मानव अपनी योग्यता से विस्तारित करता है, जिन्हें हम देख नहीं पाते, कल्पना नहीं कर पाते, हमें तर्कातीत लगने लगती हैं. दरअसल ये वो ख़ूबसूरत नैरेटिव है जो ये बयान देता है कि मानव क्या कुछ कर सकता है. उसकी क्षमताओं की क्या सीमाएं हैं. पेले की कहानी एक ऐसी कहानी है, जो कहती है दुनिया में क्या संभव है और आदमी क्या कर सकता है. बाइडेन के शब्दों में पेले ‘स्टोरी ऑफ़ व्हाट इज़ पॉसिबल’ है.

आज अब जब पेले नहीं रहे तो कितने स्टेडियम उदास हो गए होंगे. कितने मैदान होंगे जो मन मसोसकर कर खेद जता रहे होंगे. कितने गोलपोस्ट होंगे, जो गहन वेदना से गल रहे होंगे. कितनी फ़ुटबॉल होंगी जो आंसू बहा रही होंगी. कितनी व्हिस्ल होंगी जो शोक गीत गा रही होंगी.

और हम में से न जाने कितने लोग होंगे, जिनके दिल ज़ार-ज़ार रो रहे होंगे. ठीक ऐसे ही जैसे मेरा दिल रो रहा है. आज मन शिद्दत से चाह रहा है कि एक बार उसके शरीर से लिपटकर रो सकता. काश कि उसे एक बार अपनी आंखों से खेलते हुए देख पाता. काश एक पत्रकार के रूप में उससे एक साक्षात्कार ले पाता. उससे उसके खेल के संबंध में ढेर सारे प्रश्न पूछ पाता. एक दोस्त की तरह उसके गले मे हाथ डालकर सड़कों पर आवारागर्दी कर सकता. किसी नुक्कड़ की दुकान पर बैठकर चाय पी सकता. उसके साथ फ़ुटबॉल खेल सकता. और फिर उसके उम्दा खेल पर ईर्ष्या करते हुए उससे कह पाता ‘अबे तुझसे अच्छा खेलता हूँ मैं.’

और ये सब इच्छाएं कोई देवता पूरी कहां पर पाते. एक इंसान ही पूरी कर पाता न!

और हां पेले कभी कहां मर सकता है.

वो हमारे दिलों में, मैदानों में, फ़ुटबॉल खेल में और हमारी बातों में,किस्से कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहेगा. और ये भी भी कि सुप्रसिद्ध फ़ुटबॉलर बॉबी चार्लटन से खूबसूरत बात और कौन कह सकता है कि ‘फ़ुटबॉल खेल का जन्म इसीलिए हुआ कि पेले खेल सके.’

कवर | ट्वीटर से साभार


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