क्रांति के प्रतीक पुरुष चे ग्वेरा

  • 10:36 pm
  • 14 June 2020

इतिहास गवाह है कि क्रांतिकारी बनी-बनाई लीक पर कभी नहीं चले. जहां वे चलते हैं, राहें खुद ब खुद बन जाती हैं. क्यूबा की क्रांति के सितारे अर्नैस्तो चे ग्वेरा ऐसे ही लोगों में रहे. पेशे से डॉक्टर चे ग्वेरा अपनी पढ़ाई और प्रशिक्षण के दौरान पूरे लातिनी अमेरिका में घूमे. महाद्वीप में व्याप्त आर्थिक विषमताओं और घोर गरीबी ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया. इसी दौर ने उनके भीतर के क्रांतिकारी को गढ़ा, और मार्क्सवाद में आस्था जगाई. इसी दर्शन ने उनकी इस सोच को गढ़ा कि एकाधिकार पूंजीवाद, नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद आर्थिक विषमता और गरीबी के मूल में हैं. सशस्त्र क्रांति के बगैर इनसे मुक्ति संभव नहीं. डॉक्टरी की नौकरी छोड़ कर उन्होंने जंगलों को अपना घर बना लिया.

सन् 1955 में वह 27 साल के थे, जब उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो से हुई. दोनों के हाथ मिले और क्यूबा ने चे को कास्त्रो की तरह ही मान्यता दी. 31 साल की उम्र में चे ग्वेरा क्यूबा के राष्ट्रीय बैंक के अध्यक्ष बने और उसके बाद उद्योग मंत्री. 1964 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा का प्रतिनिधित्व किया था और तब दुनिया भर के नेता इस 36 वर्षीय क्रांतिकारी के विचार सुनने को बेताब थे.

चे ग्वेरा की अप्रतिम लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में उनकी छवियां क्रांति के प्रतीक पुरुष के तौर मिल जाती हैं. चे ग्वेरा की तस्वीर वाली टीशर्ट, कैप, मग, बैनर, पोस्टर, स्कूल बैग, स्टीकर या फिर बॉक्सर पर भी मिल जाते हैं. ठेठ मार्क्सवादी चे का देवत्व में कतई यक़ीन नहीं था लेकिन क्यूबा वाले उन्हें ऐसा ही मान देते हैं. आख़िर उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद को ऐसी चुनौती दी थी, जिसने उसकी नींव हिला दी. सौ गुरिल्ला लड़ाकों के साथ मिलकर महाशक्ति के दांत खट्टे कर दिए थे.

क्यूबा सरकार में रहते हुए चे ग्वेरा की भारत यात्रा के बारे में बहुत लोगों को पता नहीं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक चे ने 1959 में ‘भारत रिपोर्ट’ लिखी लिखकर फिदेल कास्त्रो को सौंपी. इस रिपोर्ट में उन्होंने लिखा था, “काहिरा से हमने भारत के लिए सीधी उड़ान भरी. 39 करोड़ आबादी और 30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल. हमारी इस यात्रा में सभी उच्च स्तरीय राजनीतिज्ञों से मुलाकातें शामिल थीं. नेहरू ने न सिर्फ दादा की आत्मीयता के साथ हमारा स्वागत किया बल्कि क्यूबा की जनता के समर्पण और उसके संघर्ष में भी अपनी पूरी रुचि दिखाई. हमें नेहरू ने बेशकीमती मशवरे दिए और हमारे उद्देश्य की पूर्ति में बिना शर्त अपनी चिंता का प्रदर्शन भी किया.

भारत यात्रा में हमें कई लाभदायक बातें सीखने को मिलीं. सबसे महत्वपूर्ण बात हमने यह जाने की एक देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर होता है और इसके लिए वैज्ञानिक शोध संस्थानों का निर्माण बहुत जरूरी है – मुख्य रूप से दवाइयों, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में. जब हम भारत से लौट रहे थे तो स्कूली बच्चों ने हमें जिस नारे के साथ विदाई दी, उसका तर्जुमा कुछ इस तरह है – क्यूबा और भारत भाई-भाई. सचमुच, क्यूबा और भारत भाई-भाई हैं. प्रसंगवश, मरहूम कुलदीप नैयर ने लिखा है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और चे ग्वेरा एक-दूसरे के प्रशंसक थे और कद्रदान भी. प्रखर वैज्ञानिक सोच भी उन्हें आपस में जोड़ती थी.

जॉन एंडरसन की लिखी जीवनी को चे ग्वेरा की सबसे प्रमाणित जीवनी कहा जाता है. वह लिखते हैं, “वे क्यूबा और लातिनी अमेरिका ही नहीं दुनिया के कई देशों के लोगों के लिए बड़े प्रेरणा स्रोत हैं. मैंने चे की तस्वीर को पाकिस्तान में ट्रक-लारियों के पीछे देखा है. जापान में बच्चों के, युवाओं के स्नो बोर्ड पर देखा है. चे ने क्यूबा को सोवियत संघ के क़रीब ला खड़ा किया. क्यूबा उस रास्ते पर कई दशक से चल रहा है. चे ने ही ताक़तवर अमेरिका के खिलाफ एक-दो नहीं कई वियतनाम खड़े किए. चे एक प्रतीक हैं व्यवस्था के खिलाफ युवाओं के गुस्से का, आदर्शों की लड़ाई का.”

37 साल की उम्र में चे ग्वेरा क्यूबा के सबसे ताक़तवर युवा क्रांतिकारी थे और उन्होंने क्रांति का प्रसार अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में फैलाने की ठानी. कांगो में उन्होंने विद्रोहियों को गुरिल्ला लड़ाई की पूरी पद्धति सिखाई. फिर बोलीविया में बागियों को प्रशिक्षित किया. अमेरिकी ख़ुफिया जासूस अथवा एजेंट शुरू से ही उनके पीछे थे. आख़िरकार बोलीविया की फ़ौज के जरिए उन्हें पकड़ लिया गया और मार डाला गया. 9 अक्टूबर 1967 के दिन हुई इस हत्या के दिन क्रांतिकारी चे ग्वेरा की उम्र 39 साल थी. उनकी जीवन प्रक्रिया ही उन्हें अमरत्व दे गई. प्रसंगवश, फिर कोई ऐसा मार्क्सवादी महानायक भी नहीं हुआ. कहना अतिशयोक्ति नहीं कि जनप्रभाव के पैमाने पर ग्वेरा मार्क्स से भी आगे हैं! इसलिए भी कि मार्क्सवाद को जिस तरह उन्होंने आमूल-चूक बदलाव के लिए व्यावहारिक रूप में बख़ूबी लागू किया, यह काम बहुत लोगों से संभव नहीं हो पाया. पहले भी और चे ग्वेरा के बाद भी! दुनिया के किसी भी खित्ते में लफ्ज़ ‘क्रांति’ के साथ उनका नाम अपरिहार्य तौर पर वाबस्ता होगा ही होगा.

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