रिपोर्ट | ‘भूमंडलीकरण की कहानियां’ का विमोचन

प्रयागराज | साहित्य भंडार की ओर आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी में धीरेंद्र प्रताप सिंह द्वारा संपादित ‘भूमंडलीकरण की कहानियां’ के कल हुए विमोचन के मौक़े पर मुख्य अतिथि प्रो. हर्ष कुमार ने कहा कि रचनाधर्मी होना और मनुष्य होना है. धीरेंद्र ने उत्तरोत्तर अपना साहित्यिक विकास किया है और उनमें अपार रचनाधर्मिता है.
समालोचक डॉ.जनार्दन कुमार ने कहा कि भूमंडलीकरण की कहानियां बाज़ार के छद्म को बेनक़ाब करती हैं. इस संग्रह की कहानियां समाज का साथ देने के लिए प्रतिपक्ष की भूमिका में है. उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण नागरिक-बोध को ख़त्म कर रहा है, हमें इसे समझने की ज़रूरत है.
डॉ.दीनानाथ मौर्य ने कहा कि इस संग्रह की कहानियां लोकतंत्र को मजबूत बनाने की दिशा में हैं और इस दौर के तमाम मुद्दों को बेबाक़ी से उठाती हैं, तस्दीक करती हैं. वैसे भी नब्बे का दशक पूंजीवादी बाज़ार का है और इस बाज़ार का विज्ञान समझाती हैं इस दौर की कहानियां.
संपादकीय वक्तव्य में धीरेंद्र ने कहा कि इस संग्रह को तैयार करने का उद्देश्य यह था कि भू-मंडलीकरण का एक मुकम्मल रूप पाठकों के सामने आ सके. इस संग्रह से भू-मंडलीकरण की जटिल सैद्धांतिकी और गतिकी को कहानियों के माध्यम से सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है.
साहित्य समालोचक सरोज सिंह ने कहा कि इस संग्रह की ग्यारह कहानियां मानव समाज के संकट का बयान हैं. तकनीक के मानव विरोधी भूमिका को सामने लाती है. अपनी साझी विरासत को बचाने की अपील करती हैं.
गीतकार श्लेष गौतम ने संपादक को बधाई दी. कहा कि इस संग्रह की कहानियां समाज का सच है. इन कहानियों को पढ़ना अपने भीतर की तरलता को बरक़रार रखना है. उन्होंने बाज़ार को, विज्ञापनों को लेकर अपनी कुछ ग़ज़लें भी पढ़ीं.
समारोह के अध्यक्ष प्रो.संतोष भदौरिया ने कहा कि इस संग्रह की कहानियां कार्पोरेट और बाज़ार के चरित्र को उजागर करती है. उन्होंने भूमंडलीकरण की परिघटना के विस्तार और उसके मूल में निहित आर्थिकी के बारे में बात की. यह भी कि इस संग्रह की कहानियां मानव समाज की चिंता और चुनौतियों को बड़े ही क्रमबद्ध तरीक़े से सामने लाती है.
कहा कि हमें अपने समय और समाज में प्रेम को बचाए रखने की ज़रूरत है. प्रेम बचेगा तो घृणा वैसे ही दूर हो जाएगी. हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सघन लगाव रखने की ज़रूरत है. इस संग्रह की कहानियां हमारे समय का वह दरवाज़ा है, जिसमें दाख़िल होते ही एक नई ही दुनिया दिखाई देती है.
संचालन समीक्षक अवनीश यादव और धन्यवाद ज्ञापन विभोर अग्रवाल ने किया. इस मौक़े पर असरार गांधी, कुमार बिरेंद्र, प्रवीण शेखर, हितेश कुमार सिंह, डॉ.धनंजय चोपड़ा, शिशिर सोमवंशी, डॉ.संतोष कुमार सिंह, डॉ.अमितेश, अरिंदम घोष, डॉ.राजेश कुमार सिंह, डॉ.मृत्युंजय राव परमार, डॉ.रेहान, डॉ.वर्षा अग्रवाल, डॉ.सौरभ कुमार सिंह, सुरेश शुक्ला, नीरज पांडेय, राजवीर, वैभव त्रिपाठी, राहुल कुमार, बरखा, प्रतिभा, अंजलि सहित बड़ी तादाद में शोधार्थी और विद्यार्थी भी मौजूद रहे.
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
अपना मुल्क
-
हालात की कोख से जन्मी समझ से ही मज़बूत होगा अवामः कैफ़ी आज़मी
-
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
-
सहारनपुर शराब कांडः कुछ गिनतियां, कुछ चेहरे
-
अलीगढ़ः जाने किसकी लगी नज़र
-
वास्तु जौनपुरी के बहाने शर्की इमारतों की याद
-
हुक़्क़ाः शाही ईजाद मगर मिज़ाज फ़क़ीराना
-
बारह बरस बाद बेगुनाह मगर जो खोया उसकी भरपाई कहां
-
जो ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’... तक पढ़े हैं, जो क़यामत का भी संपूर्णता में स्वागत करते हैं