सुख़न में रौशन होगा शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की यादों का चराग़
प्रयागराज | इंडियन नॉलेज सिस्टम के लेजेंड और अदब की दुनिया के आइकॉन शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की यादों का चिराग़ रौशन हो रहा है, ‘सुख़न’ की शक्ल में. यह चराग उसी घर से जगमग हो रहा है, जिसे उन्होंने ख़ुद ऐसा खुला-खुला सा डिज़ाइन किया था कि अदबी बातचीत हो सके, नशिस्त से हो सके, शहर में कोई अदीब या फ़नकार आए तो उससे गुफ़्तगू की जा सके.
‘सुख़न’ की अदबी महफ़िल शम्सुर्रहमान फ़ारूकी के सी.एस.पी.सिंह रोड वाले उसी ख़ूबसूरत घर में हर महीने की एक शाम सजेगी, जिसमें हज़ारों किताबें अपने भीतर एक नई दुनिया आबाद किए वहां रहती हैं. इस महफ़िल में शहर और शहर में आने वाले अदीब, फ़नकार, शायर इंटेलेक्चुअल्स, सहाफ़ी शिरकत किया करेंगे. शम्सुर्रहमान फ़ारूकी की बेटी प्रोफेसर बारां फ़ारूक़ी जामिया मिलिया इस्लामिया छोड़कर दिल्ली से अपने घर इलाहाबाद आ गई हैं.
वह कहती हैं, उसी रवायत को क़ायम रखने के लिए ‘सुख़न’ की शुरुआत की गई है. कोशिश यह है कि कुछ न कुछ होता रहे. मेमोरियल लेक्चर या दूसरे बड़े प्रोग्राम कब और किस तरह से होंगे, यह सब ‘सुख़न’ में शामिल लोगों के साथ तय किया जाएगा.
‘सुख़न-दो’ शायर मीर तकी मीर पर केंद्रित था. मीर की शायरी पर शम्सुर्रहमान फ़ारूकी ने लिटरेरी क्रिटिसिज़्म दुनिया का चार वॉल्यूम का क्लासिक ‘शेर-ए-शोरअंगेज़’ लिखा है, जिसका हिंदी तर्जुमा ‘मीर की कविता और भारतीय सौंदर्यबोध’ के नाम से ज्ञानपीठ से छपा है.
‘सुख़न-दो’ का मौक़ा बहुत खास था. इसमें मशहूर सिरेमिक आर्टिस्ट और आर्ट क्रिटिक शंपा शाह (भोपाल), जानी-मानी गायिका, संस्कृतिकर्मी और हबीब तनवीर की बेटी नगीन तनवीर (भोपाल), बस्तर के आदिवासी कलाकारों के म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स, उनकी आवाज़ो और उनके म्यूज़िक को सहेज कर ‘बस्तर बैंड’ बनाने वाले पद्मश्री अनूप रंजन पांडे (रायपुर) की भागीदारी भी थी.
शायर लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता और युसुफ़ा ने मीर की शायरी पर इज़हारे ख़्याल किया. बारां फ़ारूक़ी ने शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की आवाज़ की रिकॉर्डिंग सुनाई, जिसमें उन्होंने मीर की नज़्में ख़ास अंदाज़ में पढ़ी हैं. इस मौके पर एन.आर. फ़ारूक़ी, आलोक राय, सारा राय, अमितेश कुमार, स्मृति रॉय, ललित जोशी, दीपाली पंत, ममता जोशी अख़्तर अमीन आदि मौजूद रहे.
पिछले महीने हुए ‘सुख़न-एक’ में ‘सुख़न’ के तार्रुफ़, इसके मकसद को लेकर चर्चा हुई थी और बारां फ़ारूक़ी ने ख़ालिद जावेद के नॉवेल ‘नेमतख़ाना’ के कुछ हिस्से पढ़े. उन्होंने इस नॉवेल का अंग्रेज़ी तर्जुमा ‘द पैराडाइज़ ऑफ़ फूड’ के नाम से किया है.
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
अपना मुल्क
-
हालात की कोख से जन्मी समझ से ही मज़बूत होगा अवामः कैफ़ी आज़मी
-
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
-
सहारनपुर शराब कांडः कुछ गिनतियां, कुछ चेहरे
-
अलीगढ़ः जाने किसकी लगी नज़र
-
वास्तु जौनपुरी के बहाने शर्की इमारतों की याद
-
हुक़्क़ाः शाही ईजाद मगर मिज़ाज फ़क़ीराना
-
बारह बरस बाद बेगुनाह मगर जो खोया उसकी भरपाई कहां
-
जो ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’... तक पढ़े हैं, जो क़यामत का भी संपूर्णता में स्वागत करते हैं