कानपुर | साल भर में एक दिन खुलने वाला दशानन मंदिर

कानपुर | शिवाला यहां तो शिवभक्त रावण का मंदिर भी यहीं. इसे भगवान, भक्त और भक्ति का अद्भुत संगम स्थल कहा जाता है. उन्नाव के महाराजा गुरु प्रसाद शुक्ल को कानपुर के लोग इसीलिए तो याद करते हैं कि यह शिव के प्रति उनकी आस्था, श्रद्धा व समर्पण का प्रतिफल है – दुनिया में अपनी तरह का अनूठा.

मेट्रो के काम की वजह से अव्यवस्थित चल रहे बड़ा चौराहे के ऐन बगल में शिवाला मार्केट है. उससे आगे बढ़ें तो शिवाला, यानी कैलाश मंदिर. इसी मंदिर के परिसर में देवी छिन्नमस्तिका का मंदिर है और उसके प्रवेश द्वार पर दशानन मंदिर.

रोचक प्रसंग है कि जिस दिन रावण का जन्म हुआ, उसी दिन राम के हाथों उसका वध भी. इसीलिए दशहरे पर प्रचलित रामलीलाओं में रावण-वध या उसके जलते हुए पुतले को देखने का मौक़ा तमाम लोग गंवाना नहीं चाहते तो रावण के भक्त उसका जन्मदिन मनाने का मौक़ा भी नहीं चूकते.

विजयादशमी की सुबह धरती पर जब सूर्य की किरणें बिखरती हैं तो दशानन मंदिर के कपाट दर्शन के लिए खोल दिए जाते हैं और उसी दिन शाम को ये कपाट फिर साल भर के लिए बंद कर दिए जाते हैं. यह परंपरा है, जो बरसों से चली आ रही है. इस बार मंदिर 15 अक्तूबर की सुबह खुलेगा.

जन्मोत्सव पर रावण की प्रतिमा का भव्य शृंगार
मंदिर के रखरखाव के लिए तैनात पुजारी के.के.तिवारी के मुताबिक – जिस दिन रावण को मोक्ष मिला, जन्म का दिन भी वही होने के कारण यहां दशानन का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस बार आठ दिनों के नवरात्र के बाद 15 अक्तूबर को विजयादशमी है. उस रोज़ सुबह मंदिर को फूलों से सजाया जाएगा. मंदिर का कपाट खुलने पर हमेशा की तरह दशानन को गंगाजल, दूध व शहद से स्नान कराएंगे, फिर भव्य श्रृंगार और पीले फूलों से पूजन होगा. रात क़रीब नौ बजे आरती के बाद मंदिर के दरवाज़े साल भर के लिए बंद कर दिए जाएंगे.

देवी छिन्नमस्तिका के प्रहरी के नाते 1868 में बना मंदिर
दशानन मंदिर बनवाने वाले महाराजा गुरु प्रसाद शुक्ल करीब 35 किलोमीटर दूर उन्नाव से हर रोज़ कानपुर आकर शिवाला में पूजा-अर्चना करते थे. उन्होंने ही कैलाश मंदिर परिसर में देवी छिन्नमस्तिका की प्रतिष्ठापना कराई. सन् 1868 के उस दौर में तब उनके मन में खटक पैदा हो गई कि शिव के सबसे बड़े भक्त के बिना यह स्थान अधूरा है और रावण से बड़ा शिवभक्त कोई है नहीं, तो क्यों न यहां दशानन की प्रतिमा लगवाई जाए.

इस विचार भर ने ही उनके दिलोदिमाग़ को ख़ूब मथा. बाद में उन्होंने देवी छिन्नमस्तिका के प्रहरी के रूप में उनके मंदिर के द्वार पर दशानन का मंदिर बनवा दिया. इस तर्क के साथ कि रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देवी छिन्नमस्तिका की आराधना करता था. देवी छिन्नमस्तिका ने प्रसन्न होकर वरदान दिया था कि उसकी पूजा तभी सफल होगी, जब भक्त ख़ुद उसकी भी पूजा करेंगे. अब साल में एक दिन ही सही, यहां जन्मोत्सव मनाते हुए रावण की पूजा होती है.

रावण की विद्वता के क़ायल लोग दशमी पर यहां आकर रावण की पूजा करते हैं और सरसों के तेल के दीए जलाकर मन्नतें भी मांगते हैं. बक़ौल पुजारी केके तिवारी, रावण प्रकांड ज्ञानी और चारो वेदों का ज्ञाता था. उसके दर्शन से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बुद्धि और विवेक का विकास होता है.

जब सारे धर्मस्थल बंद थे, दशानन मंदिर खुला
कोविड की वजह से पिछले साल नवरात्र-विजयादशमी पर सारे धर्मस्थल बंद होने पर भी दशानन मंदिर एक दिन के लिए खोला गया था. इलाक़े के लोगों ने बताया कि छिन्नमस्तिका मंदिर पहले नवरात्र की सप्तमी को खुलता था, मगर बीते कई सालों से यह मंदिर नहीं खुल रहा है, जबकि विजयादशमी पर रावण का मंदिर खोला जा रहा है.

इन जगहों पर भी रावण के मंदिर

जोधपुर में रावण-मंदोदरी का विवाह स्थल: राजस्थान में मंदोदरी नाम से मंदोदरी और रावण का विवाह स्थल है. दंतकथाओं के मुताबिक रावण ने मंदोदरी से यहीं ब्याह किया था. प्रमाण के तौर पर वह छतरी बताई जाती है, जिसके नीचे विवाह हुआ. चांदपोल इलाक़े में यह छतरी आज भी है, जिसे चवरी कहते हैं. यहीं रावण का मंदिर भी बनवाया गया है.

मंदोदरी रावण रुंडी की बेटी तो रावण दामाद इसीलिए पूजा: मध्यप्रदेश में विदिशा से सटे मंदसौर के खानपुरा इलाक़े के क़रीब रावण रुंडी में रावण का बड़ा मंदिर है. किंवदंतियों के मुताबिक मंदोदरी यहीं की रहने वाली थीं. दामाद होने के नाते यहां रावण की पूजा होती है.

कोलार में रावण की शोभायात्रा की परंपरा: कर्नाटक के कोलार में हर साल फ़सल उत्सव को लंकेश्वेर महोत्सव के रूप में मनाते हैं. रावण की पूजा करते हैं, उसकी शोभायात्रा निकाली जाती है. यहां रावण का बड़ा मंदिर है.

◆ रावण की तपस्थली इसलिए दशहरा नहीं मनाते: शिवनगरी के नाम से विख्यात कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के बैजनाथ क़स्बे में न दशहरा मनाते हैं और न ही रावण-दहन करते हैं. यहां रावण की पूजा होती है. मान्यता है कि रावण ने यहां शिव की तपस्या कर मोक्ष का वरदान पाया था.

कवर | अर्पण


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.