आबाद होने लगे हैं पहाड़ों के वीरान गांव
पौड़ी | महामारी की वजह से हुए ‘रिवर्स माइग्रेशन’ का नतीजा है कि अर्से से वीरान हो चुके गांवों में हलचल दिखाई देने लगी है. ज़िले के ऐसे ही एक गांव में तीन परिवार लौट आए हैं. गांव के ही दो और परिवार लौटने की तैयारी में हैं.
कल्जीखाल ब्लॉक का चौंडली गांव सन् 2013 में पूरी तरह ख़ाली हो गया था. बारह से ज़्यादा परिवारों वाले इसे गांव के लोग स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधाओं के अभाव में धीरे-धीरे गांव छोड़कर चले गए. सन् 2013 में बुजुर्ग दम्पति प्रेम सिंह और उनकी पत्नी उर्मिला देवी ही गांव में रह गए थे.
जंगल के बीच गांव की बसाहट और रात-बिरात जानवरों के ख़तरे को देखते हुए वे भी अपने बच्चों के पास दिल्ली रहने चले गए. इस दम्पति के जाने के बाद गांव पूरी तरह ख़ाली हो गया था.
महामारी की दूसरी लहर के दौरान तीन परिवार लौट आए हैं. जगदीश सिंह, मनमोहन सिंह और जगमोहन सिंाह के कुनबे में 15 लोग हैं. चौंडली लौटे इन परिवारों ने सब्ज़ी उगाना शुरु किया है. उनके आने की ख़बर पाकर डीएम तीन किलोमीटर पैदल चलकर उनसे मिलने गए. उन्होंने गांव तक सड़क, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केंद्र बनवाए जाने का भरोसा दिया है.
कोरोना की पहली लहर में 3.57 लाख से ज़्यादा प्रवासी अपने गांवों को लौटे थे. दूसरी लहर में भी 5 मई तक 53,092 लोग लौट आए हैं. उत्तराखंड ग्राम्य विकास और पलायन आयोग ने ‘रिवर्स माइग्रेशन’ पर अपनी सिफ़ारिशें सरकार को सौंप दी हैं. इन पर अमल और गांव लौटे प्रवासियों को आजीविका के मौक़े मुहैया कराना अब सरकार के ज़िम्मे है.
कवर | चौंडली गांव के प्रेम सिंह और उर्मिला देवी की पुरानी तस्वीर.
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