विज्ञान | भीमबेटका में डिकिन्सोनिया जीवाश्म की खोज
भोपाल | भीमबेटका की गुफ़ा में डिकिन्सोनिया जीवाश्म की खोज इन दिनों वैज्ञानिकों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है. भीमबेटका रॉक शेल्टर्स में ऑडिटोरियम गुफ़ा की दीवार पर मिले इस जीवाश्म के बारे में ‘गोंडवाना रिसर्च जर्नल’ के फ़रवरी अंक में एक शोध पत्र छपा है.
पिछले साल भारत आए भूवैज्ञानिकों का एक दल जीएसआई (जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) के रंजीत खंगार और मेराज़ुद्दीन ख़ान के साथ भीमबेटक की गुफ़ाएं देखने गया था. ओरेगन विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञानी ग्रेगरी रेटालेक को ऑडिटोरियम गुफ़ा में कुछ ऊंचाई पर जो मद्धिम-सी छवि दिखाई दी, उसे देखकर वे चौंक गए. वह हूबहू डिकिन्सोनिया जैसी आकृति थी.
चूंकि वे सब घूमने निकले थे, इसलिए उनके पास कोई औजार नहीं थे. ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक डॉ.ग्रेगरी ने सभी संभावित कोणों से उस आकृति के ढेर सारे फ़ोटोग्राफ़ लिए और वापस लौटने पर थ्री-डी मॉडलिंग सॉफ़्टवेयर की मदद से उसे क़रीब से देखा. वह मुतमइन हैं कि 17 इंच की वह आकृति डिकिन्सोनिया जीवाश्म ही है.
‘गोंडवाना रिसर्च जर्नल’ के ताज़ा अंक में ‘डिकिन्सोनिया डिस्कवर्ड इन इंडिया एण्ड लेट इडियाक्रन बायोजिओग्राफ़ी’ शीर्षक से छपे शोध पत्र में उन्होंने लिखा है कि यह दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में पाए गए जीवाश्म की तरह ही दिखता है. डिकिन्सोनिया जीवाश्म अब तक ऑस्ट्रेलिया, रूस, उक्रेन और हाल ही में चीन में पाए गए हैं, मगर भारत में इसके पहले तक नहीं.
डिकिन्सोनिया के जीवाश्म 5580 लाख साल पुराने माने जाते हैं. दुनिया भर में अब तक ज्ञात जीवों में इसे सबसे पुराना मानते हैं. सन् 1940 में ये जीवाश्म पहली बार ऑस्ट्रेलिया में खोजे गए थे. इसके वर्गीकरण को लेकर हालांकि वैज्ञानिक अभी एकमत नहीं हैं.
बहरहाल, भीमबेटका में डिकिन्सोनिया जीवाश्म की मौजूदगी से उन अध्ययनों को मज़बूती मिलेगी जो इन चट्टानों को 800 से 900 मिलियन वर्ष पुराना मानते हैं जबकि कई विद्वानों की राय में ये अपेक्षाकृत कम पुरानी हैं. कई जीवाश्म विज्ञानी मानते हैं कि डॉ.ग्रेगरी के निष्कर्षों को प्रमाणित करने के लिए अभी और जाँच-परीक्षणों की ज़रूरत होगी.
कवर|prabhatphotos.com
डिकिन्सोनिया|गोंडवाना रिसर्च जर्नल से साभार
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