गोरखपुर | खिचड़ी का मेला कल से

  • 11:33 am
  • 13 January 2021

गोरखपुर। गोरखनाथ मंदिर में जुटने वाला खिचड़ी मेला मकर संक्राति के दिन शुरू होगा. महीने भर तक चलने वाला यह मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला माना जाता है. मंदिर के परिसर में तमाम तरह के स्टॉल और झूले लग गए हैं. मेला घूमने वाले भी आने लगे हैं. आज से गोरखपुर महोत्सव की शुरुआत भी हो रही है.

खिचड़ी मांगते यहां पहुंचे गुरु गोरखनाथ
मान्यता है कि त्रेता युग में महान योगी गुरु गोरखनाथ घूमते हुए कांगड़ा ज़िले में ज्वाला देवी के स्थान पर पहुंचे. गोरखनाथ को आया देख कर देवी स्वयं प्रकट हुईं और भोजन करने का आमंत्रण दिया. गोरखनाथ ने खिचड़ी खाने की इच्छा प्रकट की. इस पर देवी ने कहा, तुम खिचड़ी मांगकर लाओ, मैं अदहन गरम कर रही हूं. अपना खप्पर खिचड़ी से भरकर लौटने की बात कहकर महायोगी वहां से चल पड़े.

भिक्षा मांगते हुए गुरु गोरखनाथ वहाँ पहुंचे, जहां आज मंदिर बना हुआ है. तब वहाँ चारो तरफ जंगल था, लेकिन यह बेहद शांत, सुंदर और मनोरम जगह थी. यहाँ की प्रकृति से प्रभावित होकर गुरु गोरखनाथ यहीं समाधिस्थ हो गए. समाधि लिए गुरु गोरखनाथ के खप्पर में लोग खिचड़ी चढ़ाते रहे. लेकिन न कभी खप्पर भरा और न वह वापस कांगड़ा लौटे. तभी से यहाँ गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.

कांगड़ा मंदिर का कुण्ड
कहते हैं कि कांगड़ा में देवी के स्थान पर अब तक अदहन खौल रहा है. ज्वाला देवी के मंदिर में आज भी खौलते हुए पानी का कुंड है. इसमें पोटली में बांधकर रखने से चावल पक जाता है. कहा जाता है कि यह देवी का चढ़ाया अदहन है, जिसे अब तक गुरु गोरखनाथ के लौटने का इंतजार है.

पहली खिचड़ी नेपाल नरेश की
मकर संक्रांति वाले दिन मंदिर आने वाले श्रद्धालु गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं. सबसे पहले नेपाल नरेश की ओर से हर साल भेजी जाने वाली खिचड़ी उन्हें अर्पित किए जाने की परंपरा है. नेपाल राजवंश में गुरु गोरखनाथ राजा के गुरु के रूप में पूजे जाते हैं. इसीलिए नेपाल के राजमुकुट और मुद्रा पर गुरु गोरखनाथ का नाम और उनकी पादुका अंकित मिलती है.

कवर | खिचड़ी मेले की फ़ाइल फ़ोटो

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