गोरखपुर टेराकोटा और चक-हाओ को जी.आई. टैग

गोरखपुर टेराकोटा को जी.आई. (भौगोलिक संकेतक) टैग मिलने से यहां के मशहूर टेराकोटा शिल्प और शिल्पियों को नई पहचान मिल गई है. औरंगाबाद गांव के शिल्पियों की संस्था लक्ष्मी टेराकोटा मूर्ति कला केंद्र ने दो साल पहले जी.आई. टैग के लिए आवेदन किया था. चेन्नई में जी.आई. दफ़्तर ने जिन दो उत्पादों को जी.आई. टैग दिया है, उसमें गोरखपुर टेराकोटा के साथ ही मणिपुर का काला चावल चक-हाओ भी शामिल है.

गोरखपुर में जी.आई. टैग पाने वाला यह पहला उत्पाद है. इसी के साथ उत्तर प्रदेश में जी.आई. टैग वाले 26 उत्पाद हो गए हैं.  पूर्वांचल के कुल 13 उत्पादों को जी आई का दर्जा मिला है, जिसमें काला नमक चावल, बनारसी  साड़ी,  मेटल क्राफ्ट, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन शिल्प, चुनार बलुआ पत्थर, ग्लास बीड्स,  भदोही कालीन, मिर्ज़ापुर दरी, गाजीपुर वाल हैंगिंग, निज़ामाबाद (आजमगढ़) की ब्लैक पॉटरी और इलाहाबाद का अमरूद शामिल है.

गोरखपुर टेराकोटा के  शिल्पी और उस्ताद लक्ष्मी चंद प्रजापति  से बातचीत आप ‘संवाद’ के यूट्यूब चैनल पर सुन सकते हैं.

मणिपुर का चक-हाओ सुगंध के साथ ही ख़ास औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. एंथोसायनिन की मौजूदगी से इसे काला रंग मिलता है, साथ ही एंटी ऑक्सीडेंट के गुण भी. फाइबर और विटामिन ई के साथ ही इसमें कई और पोषक तत्व इसे विशिष्ट बनाते हैं.


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