सरैया वाले तो डॉ. एगान को याद करते हैं, पर अमृता शेरगिल को नहीं जानते

  • 9:53 pm
  • 30 January 2020

यह बात सन् 1938 की है, जब डेन्यूब वाले मुल्क में जन्मा वह शख़्स अपनी पत्नी के साथ हिन्दुस्तान आया. गोरखपुर में चौरीचौरा के क़रीब सरदारनगर की मजीठिया इस्टेट डिस्पेंसरी में काम करने लगा और फिर यहीं का होकर रह गया.

आधी सदी से ज़्यादा समय तक उन्होंने इलाक़े के लोगों की सेहत का ख़्याल रखा. उस दौर में जब घरों में प्रसव का चलन था, उन्होंने मैटरनिटी अस्पताल बनाया. उस दौर के लोगों की स्मृति में उस हमदर्द डॉक्टर की छवि अब भी धुंधलाई नहीं है.

वह डॉ. विक्टर एगान थे, चित्रकार अमृता शेरगिल के पति. ब्याह के बाद हंगरी से हिन्दुस्तान लौटीं तो अमृता सरदारनगर आ गईं. यहां उनके चाचा की जायदाद थी, जो सरदारनगर चीनी मिल के मालिक भी थे. अमृता यहां कुछ समय रहीं, यहां का परिवेश और यहां के लोग भारतीय समाज को समझने में उनके मददगार हुए, यहां रहते हुए कुछ पेंटिंग भी बनाईं. वह यहां आती-जाती रहीं और अपनी मृत्यु से पहले सितम्बर 1941 में जब वह लाहौर गईं तो डॉ. एगान को भी साथ ले गई थीं. हालांकि उनकी मृत्यु के बाद में वह फिर लौट आए. अमृता के जीवन के बारे में बहुत सारा लिखा-पढ़ा जाता रहा है. इसमें डॉ. विक्टर एगान के बारे में बहुत जानकारी नहीं मिलती, उनका ज़िक्र भर मिलता है. इसके विपरीत सरदारनगर इलाक़े के गांवों में ऐसे तमाम लोग मिल जाते हैं, जो अमृता के बारे में बहुत नहीं जानते. और थोड़ा बहुत जानने वाले उन्हें डॉ. एगान की पत्नी या मैडम के तौर पर ही याद कर पाते हैं.

डॉ. एगान की डिस्पेंसरी के ठीक पड़ोस में कई साल तक रह चुके पत्रकार रमेश शुक्ल बताते हैं कि यह अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि अमृता शेरगिल दुनिया भर में मशहूर हुईं, पर सरदारनगर में उन्हें कुछ ही लोग जान पाए. वहीं डॉक्टर एगान को यहां की पुरानी पीढ़ी के तमाम लोग जानते हैं. इलाक़े के बुजुर्ग राजेंद्र बताते हैं कि अमृता शेरगिल और उनकी शख़्सियत के बारे में तो सरदारनगर के कुछ लोग तब जान पाए, जब 1940 में गोरखपुर दौरे से वक़्त निकालकर पंडित जवाहरलाल नेहरू उनसे मिलने यहां आए.

सरदारनगर की सरैया डिस्पेंसरी, जहां डॉ. एगान काम करते थे. फ़ोटोः ज्ञानप्रकाश

डुमरी ख़ास गांव के रिटायर्ड शिक्षक शिवशंकर के लिए मजीठिया इस्टेट डिस्पेंसरी के डॉ. विक्टर एगान किसी मसीहा से कम नहीं रहे. बक़ौल शिवशंकर, ‘भले ही डॉ.एगान अब इस दुनिया में नहीं हैं, पर इस इलाक़े के लोग अगर कभी भगवान के रूप में डॉक्टर का ज़िक्र करते हैं तो पहले उन्हें ही याद करते हैं.’ मजीठिया इस्टेट में नौकरी कर चुके अपने पिता के हवाले से वह यह भी बताते हैं कि डॉ. एगान ग़रीब तबके के प्रति फ़िक्रमंद अपनी पत्नी से इस क़दर प्रभावित हुए कि ख़ुद भी ग़रीब मरीज़ों के हमदर्द हो गए. उनकी तरह के ही कई और बुज़ुर्ग हैं, जो डॉ. एगान को तो जानते हैं, अमृता शेरगिल के बारे में इतना ही बता पाते हैं कि डॉ. एगान अपनी मेम से बहुत प्रेम करते थे.

कला के पारखी मानते हैं कि यहां के माहौल ने अमृता बहुत प्रभावित किया. उनकी कूची ने ग्राम्य परिवेश की महिलाओं की स्थितियों को कैनवस पर उकेरा. ‘रेड क्ले एलीफैंट’, ‘टू एसीफैंट्स’, ‘एनशिएंट स्टोरी टेलर’, ‘व्यू फ़्रॉम मजीठिया इस्टेट’ सहित उनकी कुछ और पेंटिंग्ज़ में सरैया की दुनिया नज़र आती है. ‘द विलेज ग्रुप’, ‘द स्विंग’, ‘इन लेडीज़ एनक्लोज़र’ के बारे में ख़ुद अमृता ने कहा कि ये तस्वीरें मेरी ख़ुशियों की नुमांइदगी करती हैं और इसीलिए मुझे बहुत प्रिय भी हैं. यहीं रहते हुए घर में काम करने वाली महिलाओं से उनकी दोस्ती और उनके हाव-भाव पर लगातार ग़ौर करने के चलते ही वह भारतीय स्त्रियों की विविध मनोदशाओं का सटीक चित्रण कर सकीं.

अमृता शेरगिल और डॉ. विक्टर एगान

यों अमृता की मृत्यु की वजहों पर रहस्य और विवाद की पर्तें अर्से तक छाई रही. अमृता की मां ने तो मौत को हत्या बताते हुए डॉ. एगान को ही इसका ज़िम्मेदार ठहराया था. कहा जाता है कि अमृता के पिता उमराव सिंह शेरगिल ने अपनी पत्नी के इस लांछन पर डॉ. एगान से माफ़ी भी मांगी थी. डॉ. एगान को जानने वाले लोग उन्हें बेहद हंसमुख, ज़िंदादिल और दयालु इंसान के तौर पर याद करते हैं.

डॉ. एगान ने सन् 1954 में नीना से ब्याह किया, जो उम्र में उनसे 23 साल छोटी थीं. वह लखनऊ में पली-बढ़ी थीं मगर डॉ. एगान को सरैया ही रास आ गया था. उनके यहां दो बेटियों ने जन्म लिया – इवा और जूलियट. ज़रूरतमंदों को सस्ते या मुफ़्त इलाज की सहूलियत देने वाले डॉ. एगान यों ही मसीहा थोड़े कहा गया होगा. एक चित्रकार की ज़िंदगी की कहानी में बसने वाला एक डॉक्टर उन बेशुमार लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बनकर उनके ज़ेहन पर भी छा गया, जिन्हें उनके जैसे दक्ष डॉक्टर के हाथों इलाज की ज़रूरत थी. सन् 1997 में डॉ. एगान का देहांत हो गया. उसके बाद से ही उनकी डिस्पेंसरी और कोठी सन्नाटे में डूब गई.

(कवर फ़ोटोः चुगताई म्यूज़ियम से साभार)

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