पंजाब | इन गाढ़े दिनों की कटु स्मृतियां मगर कैसे भूलेंगे

  • 8:40 pm
  • 7 April 2020

जालंधर | हालिया महामारी के दिनों को जब भी इतिहास में दर्ज किया जाएगा, इंसानी संवेदना और समाजी सरोकार पर इसके असर का ज़िक्र भी होगा. मुश्किल से मुश्किल दौर में अमन और आपसी सद्भाव पंजाबियत की पहचान रहा है. और देश के दूसरे हिस्सों की तरह ही बेशुमार लोग इस मुश्किल दौर में भी मदद के लिए आगे आए हैं. इसके बावजूद हाल के कई ऐसे वाकये हैं, जिनसे लगता है कि सोशल मीडिया के मार्फ़त फैल रहा फ़िरकापरस्ती का ज़हर यहां भी असर करने लगा है. सूबे में कर्फ़्यू है, कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की तादाद 79 हो गई है और इसके संक्रमण से आठ लोगों की जान चली गई है.

सात अप्रैल को लुधियाना के शिमलापुरी मोहल्ले की रहने वाली 69 वर्षीय सुरेंद्र कौर की संक्रमण की वजह से मृत्यु हो गई तो उनके परिवार ने देह लेने से भी इंकार कर दिया. आख़िरकार ड्यूटी मजिस्ट्रेट तहसीलदार जगसीर सिंह ने उनकी देह रिसीव की. स्वास्थ्य विभाग और पुलिस के कर्मचारियों को साथ लेकर उन्होंने शव अनाज मंडी के श्मशान घाट पहुंचाया. घर वाले सौ मीटर दूर गाड़ियों में बैठे रहे. अफ़सरों ने श्रीमती कौर के बेटे से कहा कि दूर से ही कोई रस्म करनी हो तो कर सकते हैं, लेकिन कोई इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ. अंत्येष्टि से पहले पूछा गया कि अगर कोई मुखाग्नि देना चाहे तो उसे पीपीई किट मुहैया करा सकते हैं. मुखाग्नि देने के लिए बारह फ़ीट लंबे बांस का इंतज़ाम किया गया है. आख़िर अफ़सरों ने श्मशान घाट के माली को इसके लिए तैयार किया. इस तरह सुरेंद्र कौर की अंत्येष्टि हुई. अंतिम अरदास का ज़िम्मा भी तीन अफ़सरों एडीसी इकबाल सिंह संधू, एसडीएम अमरिंदर सिंह मल्ली और डीपीआरओ प्रभदीप सिंह नत्थोवाल ने उठाया है. एडीसी संधू के मुताबिक गुरुद्वारा बाबा दीप सिंह में श्री अखंड पाठ साहिब का प्रकाश कराया जाएगा और अंतिम अरदास शनिवार को होगी. अफ़सर इसका ख़र्च ख़ुद ही करेंगे. दिवंगत सुरेंद्र कौर लोक इंसाफ पार्टी के रहनुमा विधायक सिमरजीत सिंह बैंस की रिश्तेदार भी थीं.

पांच रोज़ पहले हजूरी रागी निर्मल सिंह खालसा की संक्रमण से मौत के बाद उनके शव को अमृतसर के वेरका श्मशान घाट ले गए तो वहां पार्षद ने श्मशान घाट के गेट पर ताला लगवा दिया. उनकी अंत्येष्टि शामलाट जमीन पर हुई. निर्मल सिंह खालसा ग़ुलाम अली के शागिर्द और दुनिया भर में मशहूर रागी थे. कई बरसों तक वह श्री स्वर्ण मंदिर साहिब के हजूरी रागी रहे. पांच सौ सबद वह पक्के रागों पर गाते थे. भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से नवाज़ा था और उन्हें ‘पंथ का अनमोल हीरा’ कहा जाता रहा. उन्हें श्मशान में जमीन इसलिए मयस्सर नहीं हुई क्योंकि वेरका के लोगों का तर्क था कि उन्हें वहां अग्निभेंट किया गया तो संक्रमण फैल जाएगा. अफ़सरों और डॉक्टरों के समझाने पर भी वे लोग नहीं माने.

कर्फ़्यू में जिलों की सीमाएं सील हैं, पुलिस और अर्द्धसैनिक बल तैनात हैं, फिर भी सैकड़ों गांवों में लोगों ने अपने तौर पर नाकेबंदी कर रखी है. पड़ोसी गांव के लोगों को भी आने पर पाबंदी है और किसी मजबूरी के चलते बाहर निकले लोग भी मुसीबत झेलते हैं. ऐसे तमाम नाकों पर बैठे नौजवानों के लिए फ़िलहाल यह रौब ग़ालिब के ठिकाने बने हुए हैं. ऐसी सामाजिक दूरी तो लोगों ने 1984 के कर्फ़्यू के दिनों में भी नही झेली थी. बेशक संक्रमण के ख़तरे के चलते लोग एकांतवास में हैं. पेशे से डॉक्टर और पटियाला से पूर्व सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के ख़ौफ़ के चलते सूबे में मनोरोगियों की तादाद बेहिसाब बढ़ी है. इसी हफ़्ते वायरस से ख़ौफ़ज़दा तीन लोगों ने ख़ुदकुशी कर ली. हालांकि उन्हें कोई मामूली बीमारी भी नहीं थी. तीनों के सुसाइड नोट से मालूम हुआ कि उन्होंने संक्रमण की आशंका से डरकर जान दे दी. जालंधर के एक नौजवान ने सात अप्रैल को ख़ुदकुशी की कोशिश की. वह दिहाड़ी मजदूर है और किराये के लिए अपने मकान-मालिक के दबाव से परेशान था. अब वह अस्पताल में है.

सूबे के कई बाशिंदों ने दिल्ली के मरकज में हुए जलसे में शिरकत की थी. उनकी चिकित्सीय जांच भी हो रही है. मगर जुनूनी लोग पंजाब में वर्षों से दूध का कारोबार करने वाले गुर्जरों को निशाना बनाने लगे हैं, हालांकि उनका जमात से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं. कई जगह गुर्जरों का सार्वजनिक बहिष्कार हो रहा है और दूध लेकर उन्हें इलाक़े में घुसने नहीं दिया जा रहा. होशियारपुर के तलवाड़ा इलाके के कई गांवों में गुर्जरों के घूमने-फिरने पर पाबंदी लगा दी गई है. वहां के वरिष्ठ पत्रकार दीपक ठाकुर बताते हैं कि कई जगह गुर्जरों के ‘डेरों’ को घेरकर उनसे मारपीट की गई. सोमवार को तलवाड़ा और हाजीपुर गांव के कई लोगों को को पीटा गया. तलवाड़ा की बीबीएमबी कॉलोनी में दूध बेचने गए फरमान अली, नूर और अली हुसैन से बदसलूकी की गई. ये लोग अर्से से इस कॉलोनी में दूध बेचते आए हैं, लेकिन सोशल मीडिया के जरिये फैल रही नफ़रत ने इनका कारोबार बंद करा दिया है. उनको पशुओं के लिए चारा भी नहीं मिल पा रहा है. तलवाड़ा के पास के गांव कमलूह में भी गुर्जरों की पिटाई करके उन्हें चले जाने को कहा गया. होशियारपुर के एसएसपी के मुताबिक इन तमाम घटनाओं की फ़ौरी तौर पर उन्हें कोई जानकारी नहीं है. गुर्जर अर्से से सूबे में रहते आए हैं, तमाम जगह उनके ‘डेरे’ हैं. कई जिलों से तो ऐसी खबरें भी मिल रही हैं कि लोग-बाग गलियों-मोहल्लों में फल-सब्जियां बेचने वालों से उनका मजहब पूछ रहे हैं. कपूरथला की एक पॉश कॉलोनी में इस पत्रकार ने ख़ुद यह देखा-सुना.

लॉकडाउन और कर्फ़्यू के चलते हालत यहां तक पहुंच गई है कि अर्थियों को चार कंधे नसीब नहीं हो रहे और पुलिस के मुलाजिम इस काम के लिए आगे आ रहे हैं. तमाम लोगों के पास फ़िलहाल रोजगार नहीं है और न ही अपनों के अंतिम संस्कार के लिए पैसे. ऐसे में प्रदेश भर में स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आई हैं. अंतिम अरदास, प्रार्थना, क्रिया स्थगित हैं. घरों में भी लोगों के जुटने पर प्रतिबंध है. इस ख़ौफ़नाक दौर को तो देर-सबेर गुज़र ही जाना है, लेकिन इन गाढ़े दिनों की ये कटु स्मृतियां कैसे जाएंगी!

आवरण फ़ोटोः अमर उजाला डॉट कॉम से साभार

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