अवाम के बीच दोस्ती की पहल के 25 साल

  • 10:33 am
  • 13 August 2021

पंजाब के लिए अगस्त अब भी उजाड़े के साल की याद लिए आता है. उन बेशुमार परिवारों की यादों के झरोखों से दुःख और अवसाद की बारिश करता रहता है, जो अपना सब कुछ पीछे छोड़ कर ख़ाली हाथ उधर से इधर चले आए थे. और वहाँ से चले हुए सारे लोग भी यहाँ तक कहाँ पहुंच पाए.

तक़्सीम के बाद दोनों मुल्कों ने तीन लड़ाइयाँ लड़ीं और तीस साल का छदम् युद्ध अब भी जारी है. पंजाब के सीमांत ज़िले अमृतसर में सुरक्षा बलों के आरडीएक्स बरामद करने की ख़बर आई, कि ड्रोन के ज़रिये ये विस्फोटक सीमा पार से गिराया गया. बॉर्डर के इलाक़ों में ड्रोन उड़ने की कितनी ही ख़बरें आईं – कभी पठानकोट, कभी जम्मू, कभी फ़िरोज़पुर तो कभी गुरदासपुर के सीमा वाले इलाक़े में ड्रोन देखे गए.

इन हालात में भी दोनों मुल्कों के अवाम को साथ जोड़ने और दोस्ती के जज़्बे के इज़हार के इरादे से अगर थोड़े से लोग हाथों में मोमबत्तियां थामे पिछले 25 सालों से 14 अगस्त की रात को बार्डर पर जाकर अंधेरे के ख़िलाफ़ कोई संदेश देते हैं, दोतरफ़ा सन्नाटे को तोड़ते हुए उस पार भी कुछ मोमबत्तियों की लौ चमकती दिखाई पड़ती है तो क्या?

नफ़रतों के इस दौर में दोस्ती की थोड़ी-सी मोमबत्तियां क्या कर पाएंगी? यह सवाल भी पिछले 25 साल से मौजूं है. ऐसी कोशिशों के असर को समझने-आंकने का कोई पैमाना तो यक़ीनन नहीं हो सकता पर असर होता ज़रूर है, इससे भला किसे इन्कार होगा!

लेखक-पत्रकार कुलदीप नैयर ने सन् 1996 में इसकी पहल की. उनकी अगुवाई में बने हिंद पाक दोस्ती मंच से वाबस्ता थोड़े से हमख़्याल लोगों ने 14 अगस्त की शाम ढलते ही वाघा बॉर्डर पर पहुंचकर मोमबत्तियाँ जलाईं, वाघा-अटारी के बीच लकीर खिंचने के बाद इधर से उधर और उधर से इधर जाने-आने वालों को याद करते हुए मैत्री और सद्भावना का संदेश दिया.

जानकार बताते हैं कि सीमा पार से इस पहल पर मिली प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक नहीं थी, या यों कहें कि बेहद निराश करने वाली थी. इधर से मोमबत्तियों की लौ दिखी तो उधर बत्तियाँ बंद हो गईं. इधर हिंद-पाक अवाम की दोस्ती ज़िंदाबाद के नारे लग रहे थे मगर यह आवाज़ दूर तक जाने से रोकने के लिए रेंजरों ने अपनी तरफ़ की मस्जिद के स्पीकर की आवाज़ तेज़ कर दी.

उस रात वाघा से लौटते हुए थोड़े-से निराश दिख रहे कुलदीप नैयर ने कहा था – कोई बात नहीं. सरकारें तो दोनों तरफ़ की ही कमोबेश अपनी-अपनी नीति पर ही चलेंगी पर हमें अवाम को प्रेम का संदेश देना था, सो दे दिया.

अगले बरस जब यह मौक़ा आया तो वाघा सरहद पर मेले-सी भीड़ जुटी. जिन लोगों को लगता था कि यह सिर्फ़ थोड़े-से बुद्धिजीवियों की पहल है, उन्होंने देखा कि इस आयोजन में आम लोगों ने बड़ी तादाद में शिरकत की.

इधर से पंजाब के सुरीले-सूफ़ी गायक हंस ने जब तान छेड़ी – इह हद्दां तोड़ देओ, सरहद्दां तोड़ दियो, एधर यमला मेरा है ओदर आलम मेरा है, ओधर नुसरत मेरा है – एधर पूरण मेरा है (इन नफ़रतों से बनी हदों और सरहदों को तोड़ दो, इस तरफ यमला जट्ट मेरा है तो उधर आलम लोहार मेरा है, उधर नुसरत फ़तेह अली खां मेरा है तो इधर पूरण शाहकोटी मेरा है.) तो समां जैसे ठहर गया.

सरहद पार से भी पाकिस्तान-हिंदुस्तान की दोस्ती ज़िंदाबाद की आवाज़ें सुनने को मिलीं. इसके बाद तो हर साल यह किसी मेले का मौक़ा ही बन गया. इसमें शरीक होने वाले लोगों की फ़ेहरिस्त यूं बहुत लंबी है – निखिल चक्रवर्ती, गुलज़ार, विनोद मेहता, राज बब्बर, महेश भट्ट, नंदिता दास, हरकिशन सिंह सुरजीत, सीताराम येचुरी, जस्टिस राजेंद्र सच्चर और कितने ही अमनपसंद लोगों की मौजूदगी रही.

हंसराज हंस तो 11 साल तक इस मौक़े पर पहुंचते रहे और अपनी जादू भरी आवाज़ का जलवा बिखेरा. इसी तरह भगवंत मान कई सालों तक वहां पहुंचकर अपनी प्रस्तुति देते रहे. बेशुमार नामवर हस्तियां भारत से पहुंची तो पाकिस्तान के सैंकड़ों सांसद भी इस मौक़े पर आए.

पाकिस्तान में मानवाधिकार की सबसे मुखर आवाज़ अस्मां जहांगीर कई बार शरीक हुईं. पाकिस्तान के मंत्री एहजाद अहसन, मदीहा गौहर, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की बेटियां, इम्तियाज़ आलम, मौलाना फ़जलुर रहमान के सबसे क़रीबी नेताओं से लेकर पाकिस्तानी कलाकारों ने भी इस मेले में पूर गर्मजोशी के साथ शिरकत की.

डॉ.सईदा हमीद अभी इस संस्था की अध्यक्ष हैं. हिंद-पाक दोस्ती मंच के महासचिव और ‘अजीत’ के समाचार संपादक सतनाम सिंह माणक का कहना है कि महामारी के चलते पिछले दो सालों में यह समारोह सांकेतिक तौर पर ही मनाया गया. इस बार भी सांकेतिक आयोजन ही होंगे.

बक़ौल सतनाम सिंह, दोस्ती मंच दोनों देशों के अवाम के बीच मैत्री की पक्षधर है. वाघा पर होने वाले आयोजनों का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं दिखाई देगा मगर करतारपुर कॉरीडोर जैसी प्राप्ति के मूल में इस तरह की सह्रदयता भरी कोशिशों की भी भूमिका होती है.

कवर | अर्जुन शर्मा

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