अभी बहुत टेनिस बाक़ी है नोवाक में
मानवीय क्षमताएं असीमित हैं. इस हद तक कि जो चीज़ें किसी समय अकल्पनीय लगती हैं, आगे चलकर वे यथार्थ में तब्दील हो जाती हैं. मानव ने अपने विकास क्रम में यह बात अलग-अलग समय पर अलग-अलग क्षेत्रों में बार-बार साबित की है.
ऐसा भी होता है कि मानव की बहुत-सी उपलब्धियां इस हद तक अविश्वसनीय होती हैं कि तर्कातीत हो जाती हैं. तब हम उनमें देवत्व का आरोपण कर देते हैं.
और खेल भी इससे अछूते कहाँ रह पाते हैं. जब सचिन या पेले या माराडोना या मेस्सी या शुमाकर या माइकेल जॉर्डन या लेब्रों जेम्स या मोहम्मद अली जैसे खिलाड़ी खेलों में मानवीय क्षमताओं के तर्कातीत मानक स्थापित करते हैं तो उन्हें भगवान का दर्ज़ा दे दिया जाता है.
पिछले इतवार को फिलिप कार्टियर अरीना पर 36 साल के नोवाक जोकोविच फ़्रेंच ओपन के फ़ाइनल में कैस्पर रड को 7-6(7-1),6-3,7-5 से हराकर जब अपना 23वां ग्रैंड स्लैम जीत रहे थे तो कुछ ऐसा ही अविश्वसनीय कर रहे थे. कि उस उपलब्धि को बयान करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं हो सकता था. उसके लिए कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था.
नोवाक अपने प्रतिद्वंद्वी राफा के 22 ग्रैंड स्लैम से एक ख़िताब अधिक जीत रहे थे, तो राफा नोवाक को बधाई देते हुए ट्वीट कर कह रहे थे, “23 एक नंबर है, जिसके बारे में कुछ समय पहले तक सोचना भी असंभव था, तुमने इसे कर दिखाया.”
निःसंदेह वे कुछ असंभव ही कर रहे थे. कुछ समय पहले तक के अकल्पनीय को हक़ीक़त में तब्दील कर रहे थे. वे टेनिस ही नहीं, पूरे खेल इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे थे. एक खिलाड़ी की क्षमताओं की नई परिभाषा गढ़ रहे थे, जिसका एक छोर असंभव और अविश्वसनीय शब्दों को छूता है.
याद कीजिए 2002 का यूएस ओपन. आंद्रे अगासी को हराकर पीट सम्प्रास अपना 14वां ग्रैंड स्लैम जीत रहे थे, तो टेनिस के जानकार और प्रसंशक विस्मय से भर उठे थे. वे कह रहे थे इससे अब कौन पार पाएगा. तब रोज़र फ़ेडरर आए. उन्होंने पहले 14 की बराबरी की और 20 पर जाकर रुके. लोगों को लगा ये असंभव है और तब राफा आए. 22 पर रुके. लगा ये संख्या असंभव है. लेकिन जो 22 को असंभव मान रहे थे, वे एक भूल कर रहे थे. वे नोवाक को या तो विस्मृत कर रहे थे या ख़ारिज़. और तब नोवाक आए. हां, उनके आगे कौन पर लगा प्रश्रचिन्ह असीमित समय तक लगा रह सकता है, यह यक़ीन मानिए.
इस बात पर ग़ौर कीजिए कि नोवाक 23 पर रुके नहीं है. वे कहां तक जाएंगे, वे कौन-सी संख्या पर रुकेंगे, यह भविष्य तय करेगा. जिस तरह की उनकी फ़िटनेस है और जिस तरह से वे खेल रहे हैं, कोई भी संख्या असंभव नहीं है. 30 भी नहीं.
उनके 23 ग्रैंड स्लैम जीत में दो बातें उल्लेखनीय हैं. एक, आख़िरी 11 खिताब उन्होंने 30 साल की उम्र के बाद जीते हैं. दो, इन सालों में उन्होंने 05 ग्रैंड स्लैम मिस किए. एक ऑस्ट्रेलियन और एक अमेरिकन कोविड टीकाकरण न कराने की वजह से, एक विंबलडन कोरोना की वजह से हुआ ही नहीं और एक विम्बलडन थकान के कारण छोड़ दिया. जबकि एक अमेरिकन क्वार्टर फ़ाइनल में गेंद बॉल बॉय को मारने के कारण डिसक्वालिफ़ाई कर दिए गए. अन्यथा आप समझ सकते हैं कि वे इस समय कहाँ पर होते!
दरअसल, दिनांक 11 अप्रैल, 2023, दिन रविवार, को पेरिस के स्थानीय समय के अनुसार लगभग शाम के चार बजे फ़िलिप कार्टियर अरीना पर फ़्रेंच ओपन के फ़ाइनल मुक़ाबले के लिए अहर्ता पाने वाले दो खिलाड़ी अलग-अलग भाव भंगिमाओं से मैदान में प्रवेश कर रहे थे.
24 साल के युवा खिलाड़ी नॉर्वे के कैस्पर रड का चेहरा आत्मविश्वास से दमक रहा था. वे क्ले कोर्ट के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं और जैसा वे दो सालों से खेल रहे थे, उससे उनका आत्मविश्वास आसमान पर न होता तो कहां होता. वे अब इस साल के संभावित विजेता माने जा रहे थे क्योंकि कार्लोस अलकराज सेमीफ़ाइनल में हार चुके थे.
दूसरी और सर्बिया के 36 साल के किशोर नोवाक जोकोविच सारी दुनिया जहान की मासूमियत अपने चेहरे में समेटे प्रवेश कर रहे थे. लेकिन उनके मन की बेचैनी और उद्विग्नता को उनकी सारी मासूमियत भी मिलकर छिपाने में असमर्थ हो रही थी. यह इतिहास रचने की बेचैनी थी. एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंचने की उद्विग्नता थी, जहां तक कोई नहीं पहुंचा था. उस आसमान को छूने की लालसा थी जिसे कभी किसी ने न छुआ हो और न ही कोई छू सके.
खेल शुरू हुआ. पहले सेट का दूसरा गेम लगभग 11 मिनट चला. रड ने नोवाक की सर्विस ब्रेक की और अपना गेम जीतकर स्कोर 3-0 किया. लेकिन चौथे गेम में रड ने एक ओवरहेड शॉट मिस किया. यहां से मोमेंटम शिफ़्ट हुआ. नोवाक रंग में आने लगे. उनके शक्तिशाली फ़ोरहैंड शॉट्स का अब रड के पास कोई जवाब नहीं रह गया था. पहला सेट टाई ब्रेक में गया. नोवाक ने टाई ब्रेक 7-1 से जीता. फिर अगले दो सेट आसानी से जीत लिए. जो नोवाक पहले सेट में थके से लग रहे थे. इस सेट की जीत ने उनमें अपूर्व उत्साह भर दिया. वे अगले दो सेटों में उससे एकदम अलग अपनी ऊर्जा और अपने खेल को उस ऊंचाई पर ले गए, जिस तक रड नहीं पहुंच सकते थे और नहीं पहुंच पाए.
तीन घंटों के संघर्ष के बाद नोवाक के चेहरे की मासूमियत और मायूसी रड के चेहरे पर नमूदार हो गयी थी और नोवाक का चेहरा आत्मविश्वास और खुशी से दहक रहा था. लाल मिट्टी पर लाल जूतों और लाल टी शर्ट के साथ उनका चेहरा भी रक्तिम हुआ जाता था. हां, इन सब के बीच उनका काला शॉर्ट्स किसी नजरबट्टू सा उन्हें बुरी नज़र से बचाता नज़र आता था.
उस जीत के बाद नोवाक नोवाक कहां रह गए थे. उनका चेहरा असीमित खुशी से दीप्त हो रहा था. वे टेनिस जगत के आकाश में सूर्य से चमक रहे थे जिसके सामने टेनिस जगत के सारे सितारे श्रीहीन हुए जाते थे. और रोलां गैरों की लाल मिट्टी नोवाक के प्रेम में पड़कर लजाती हुई कुछ और अधिक लाल हुई जाती थी.
उनकी जीत दरअसल एक डिफ़ाईनिंग मोमेंट था. एक निर्णायक पल. निर्णायक मोमेंट उस त्रिकोणीय संघर्ष का जिसके दो अन्य कोण फेडरर और राफा बनाते थे. 2003 में शुरू हुए फेडरर और राफा की प्रतिद्वंद्विता को 2010 में नोवाक त्रिकोणीय आयाम देते हैं और फिर तीनों मिलकर पिछले बीस सालों के काल को टेनिस इतिहास के स्वर्णिम काल में बदल देते हैं.
अगर आप ध्यान से देखेंगे तो ये प्रतिद्वंद्विता खेल शैलियों भर की नहीं है,बल्कि तीन अलग-अलग व्यक्तित्वों की भी है. वे अपनी खेल शैली और अपने पूरे व्यक्तित्व से तीन अलग वर्गों का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं. आप इन तीनों के व्यक्तित्व का आकलन कीजिए तो पाएंगे कि रोजर फ़ेडरर मैदान में और मैदान के बाहर अपनी शालीनता, अपने ग्रेस और एस्थेटिक सेंस में कुलीन प्रतीत होते हैं. टेनिस ख़ुद ही अपने चरित्र में कुलीन है. टेनिस खेल और फेडरर का टेनिस दोनों क्लासिक हैं और क्लासिकता को पोषित करते हैं. फ़ेडरर टेनिस के मानदंडों के क़रीब क्या, वे स्वयं मानदंड हैं. वे टेनिस के सबसे प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं. जबकि राफा अपने चेहरे-मोहरे, वस्त्र विन्यास और अपने चपल, चंचल, अधीर स्वभाव जिसमें हर शॉट पर ज़ोर से आवाज़ करना और हर हारे या जीते पॉइंट पर प्रतिक्रिया करते मध्य वर्ग के प्रतिनिधि से प्रतीत होते.
इन दोनों से अलग नोवाक जातीय भेदभाव का शिकार होते हैं और अपने क्रियाकलापों और हाव-भाव से सर्वहारा वर्ग के प्रतीत होते हैं. वैसे भी उनका बचपन बेहद विषम परिस्थितियों में गुज़रा है. उनका पूरा बचपन बाल्कान संघर्ष के बीच बीता है. जब वे बड़े हो रहे थे तो वे अपना समय बंकर में बिता रहे थे. परिस्थितियों ने उन्हें अजेय योद्धा बनाया. वे खेल मैदान में अंतिम समय तक संघर्ष करते हैं और अंतिम समय तक हार नहीं मानते.
उनकी अपनी सोच और मान्यताएं उन्हें विवादास्पद और अलोकप्रिय के साथ-साथ आम से जोड़ती है. वे कोविड टीकारण के ख़िलाफ़ थे. वे कोसोवा के उस मंदिर में शक्ति और शांति पाने जाते हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि वो एक दैवीय स्थल है. वे पिछले 10 वर्षों से ग्लूटन रहित खाना खा रहे हैं. जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
लेकिन आप कह सकते है कि वे अपनी मान्यताओं के प्रति वफ़ादार हैं. उसके लिए कोई भी क़ीमत चुकाने के लिए तैयार हैं. वे टीका नही लगवाने के फ़ैसले पर डटे रहे. इसकी क़ीमत दो ग्रैंड स्लैम थी.
ट्रॉफ़ी प्रेजेंटेशन सेरेमनी में वे लाल-काली जैकेट में आए, जिसकी दाईं ओर 23 लिखा था. विक्ट्री स्टैंड पर एक हाथ में मस्केटियर ट्रॉफ़ी थी और दूसरे हाथ से 23 नंबर की ओर इशारा कर रहे थे.
वे बता रहे थे कि टेनिस इतिहास में ये एक अनोखी, अद्भुत और अविश्वसनीय संख्या है. और ये भी कि मैं नोवाक हूँ. मुझे जान लीजिए. ये संख्या मैंने और केवल मैंने अर्जित की है.
और
और, वे बता रहे थे कि मैं आप की तरह हाड़-मांस का बना इंसान हूँ. मुझे भगवान मानने की भूल मत करना. और ये भी कि निश्चिंत रहिए मुझमें अब भी बहुत टेनिस बाक़ी है. नई पीढ़ी को अभी और क़ाबिलियत हासिल करनी है. पुरानों का समय अभी ख़त्म नहीं हुआ है. हम ऐसे वटवृक्ष हैं, जिनके साये से निकलने में बहुत मेहनत लगती है.
फिलहाल तो 23वें ग्रैंड स्लैम की बधाई स्वीकार करो, दोस्त!
कवर | नोवाक के ट्वीटर हैंडिल से साभार
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