रेणु | बहुरूपिया

  • 3:25 pm
  • 4 March 2020


 

बहुरूपिया

दुनिया दूषती है
हँसती है
उँगलियाँ उठा कहती है …
कहकहे कसती है –
राम रे राम!
क्या पहरावा है
क्या चाल-ढाल
सबड़-झबड़
आल-जाल-बाल
हाल में लिया है भेख?
जटा या केश?
जनाना-ना-मर्दाना
या जन …….
अ… खा… हा… हा.. ही.. ही…

मर्द रे मर्द
दूषती है दुनिया
मानो दुनिया मेरी बीवी
हो-पहरावे-ओढ़ावे
चाल-ढाल
उसकी रुचि, पसंद के अनुसार
या रुचि का
सजाया-सँवारा पुतुल मात्र,
मैं
मेरा पुरुष
बहुरूपिया.

(फणीश्वरनाथ रेणु के जन्मदिन पर उनको याद करते हुए.)
फ़ोटोः प्रभात की ‘बहुरूपिया श्रृंखला’ से


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