बठिंडा | रेतीली आंधियों वाले शहर को मिली रोशनी की पहचान भी ख़त्म!

  • 1:44 pm
  • 24 June 2020

पंजाब मंत्रिमंडल की बैठक में बठिंडा के गुरु नानक देव थर्मल प्लांट की 1764 एकड़ ज़मीन बेचने को मंज़ूरी दे दी गई है. पचास साल पहले गुरु नानक देव के जन्मोत्सव के मौक़े पर शुरू यह थर्मल प्लांट बठिंडा और मालवा की पहचान बन गया था. बलवंत गार्गी, गुरदयाल सिंह, रामस्वरूप अणखी, प्रो.अजमेर सिंह औलख, जसवंत सिंह कंवल तो अब हयात नहीं हैं. सो यह नहीं जाना जा सकता कि इस फ़ैसले पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती? उनकी प्रतिक्रिया का महत्व और प्रसंग इसलिए कि इन तमाम महान लेखकों के किसी न किसी रचना में इस थर्मल प्लांट का ज़िक्र ज़रूर आया है.

सत्तर के दशक तक मालवा निहायत रेतीला इलाक़ा हुआ करता था. इसे ‘टिब्बों’ का इलाक़ा कहा जाता. अप्रैल में आंधी चलने की शुरुआत होती तो जून की जानलेवा लू तक रफ़्तार पकड़ती ही रहती थी. बेहाल बाशिंदे मारे-मारे फिरते. रोज़मर्रा की ज़िंदगी एकबारगी पटरी से उतर जाती. बाक़ी पंजाब में घोड़े चलते थे तो इस इलाक़े में ऊंट. ऊंट-गाड़ियां. तांगे तक घोड़ों-खच्चरों की बजाए ऊंटों से जोड़े जाते थे. खेती में भी ऊंट ही इस्तेमाल होते. यों भी बठिंडा की सीमाएं रेगिस्तानी प्रकृति के राजस्थान से सटी हुईं हैं. रहने-सहने-देखने वाले बताते हैं कि धूल भरी आंधियों का कुछ पता नहीं चलता था. किसी भी महीने के दिन या रात में चलने लगती थीं. दौर वह भी था जब बठिंडा को उत्तर भारत का ‘काला पानी’ कहा जाता था. उन दिनों बठिंडा में सैकड़ों साल पुराना एक किला था – जीर्ण-शीर्ण हाल में अब भी है – जिसमें रज़िया सुल्ताना को भी क़ैद रखा गया था. पचास साल पहले तक बठिंडा की एक बड़ी खूबी बताने के लिए यह क़िला एक प्रतीक था या फिर बठिंडा का रेलवे जंक्शन. थर्मल प्लांट बना तो मालवा और बठिंडा का छवि सिरे से बदल गई. शहर के भीतर 1764 एकड़ ज़मीन पर एक नए शहर ने आकार लिया. हज़ारों लोगों को नौकरी मिली हालांकि बेशुमार किसान बर्बाद भी हुए क्योंकि उनकी खेती की ज़मीनें चली गईं. थर्मल प्लांट पहले सिख गुरु गुरु नानक देव को समर्पित किया गया. तब उनका 500वां प्रकाश पर्व था और अब जब थर्मल प्लांट का पूरी तरह से भोग डाला जा रहा है तो उनके आगमन को 550 साल हो गए हैं.

थर्मल प्लांट बनने के पहले भी मालवा में बिजली के खंभे थे, तार थे और शहरों-कस्बों के अधिकांश घरों में बल्ब भी थे लेकिन बहुधा सूखे पत्तों-से लटकते हुए, क्योंकि इलाक़े में बिजली कई बार पखवाड़े तक ग़ायब रहती. पूरे मालवा का यही हाल था. बेशक हरित क्रांति दहलीज़ पर थी और योजना आयोग गांव-देश को एक-एक ज़रूरी सहूलियत देने के दावे दिल्ली में जोर-शोर से किया करता था लेकिन पंजाब के मालवा खित्त्ते के गांवों में बिजली एक ख़्वाब थी. बठिंडा के थर्मल प्लांट ने पूरे मालवा को रोशनी बांटी. औद्योगिक, लघु-औद्योगिक युग की नींव रखी. गांवों को ‘लालटेन युग’ से मुक्त कराया. देखते-देखते बठिंडा और मालवा की रेतीले टिब्बे शानदार हरियाली में बदल गए. हज़ारों लोगों को रोजगार मिला और काम-धंधे की बेहतर स्थितियां. किसानों की किसानी और ज़िंदगी की दशा-दिशा एकदम बदल गई. बलवंत गार्गी ने एक बार कहा था कि एक थर्मल प्लांट ने एक शहर और पूरे इलाक़े की ज़िंदगी में ऐसा बदलाव किया, जो अकल्पनीय था. बेशक आज भी है.

दूसरे शहरों और ख़ासतौर से हरियाणा और राजस्थान से लोग-बाग थर्मल प्लांट देखने के लिए बठिंडा आया करते. जिस इलाक़े में आंधियां चलती थीं, वहां थर्मल प्लांट के साथ बनी विशाल झील ने करिश्मा-सा करते हुए मौसम का रुख बदल दिया. प्लांट और उसके बीचों-बीच बहती झील बठिंडा की पहचान बन गई. छुट्टियों के दिन इस झील के किनारे मेला-सा लग जाया करता. शहरों के स्कूल अपने विद्यार्थियों को इसे और थर्मल प्लांट दिखाने के लिए ख़ासतौर पर बठिंडा लाते थे. ‘पिकनिक’ और ‘लोकल टूरिज़्म’ क्या होता है, यह बठिंडा ने तब जाना. इसी थर्मल प्लांट की बदौलत बठिंडा में थ्री स्टार होटल बने, जो बाद में फाइव स्टार में तब्दील हो गए. यह उस शहर में हुआ, जहां कभी क़ायदे के रेस्टोरेंट और ढाबे भी नहीं थे. पंजाबी के कई ख्यात रचनाकारों ने, यह बताने के लिए कि किस तरह एक बेहतर सोच इलाक़े की ज़िंदगी बदल सकती है, कहानियां लिखीं. चिमनियों से धुआं निकलता था और बगल से झील बहती थी. लंबे अरसे तक धुआं आकाश को छूता रहा और ज़मीन पर झील अनवरत बहती रही. किनारे बने पेड़ों पर परिंदों का बसेरा रहा. प्रवासी पंछी भी आते.

पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार में यह सुगबुगाहट उठी कि दशकों तक मालवा को रोशनी देता रहा थर्मल प्लांट अब उम्र पूरी कर चुका है. बड़े बादल इसी मालवा के हैं. मुख्यमंत्री थे. उन्होंने 751 करोड़ रुपए का प्रावधान किया कि ‘बूढ़े’ होते थर्मल प्लांट का नवीकरण किया जाए और बठिंडा की पहचान को बचाया जाए. तब सरकारी दावे थे कि सन् 2031 तक यह काम करता रह सकता है. डेनमार्क की एक कंपनी की सेवाएं भी ली गईं. लेकिन सरकार में उपमुख्यमंत्री और सर्वोपरि प्रकाश सिंह बादल के फरजंद सुखबीर सिंह बादल निजी बिजली कंपनियों के मोह में फंस गए. बठिंडा के थर्मल प्लांट की चिमनियां सुस्त होते-होते आखिरकार ख़ामोश हो गईं. प्रकाश सिंह बादल से अलहदा होकर नई राह अख्तियार करने वाले मनप्रीत सिंह बादल तब मलवइयों के साथ मिलकर प्लांट बंद करने के विरोध में संघर्ष किया करते थे और वादे कि कांग्रेसी की सरकार आने के बाद इन चिमनियों से फिर धुआं उठने लगेगा.

दिन बदले. 2017 में कांग्रेस की सरकार बन गई. मनप्रीत सिंह सरकारी ख़जाने के वजीर बने. वादे दफ़न हो गए और जिन लोगों ने बठिंडा थर्मल प्लांट को पूरी तरह बंद करने की मुहर लगाई उनमें मनप्रीत प्रमुख थे. अब कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने थर्मल प्लांट की ज़मीन बेचने का फैसला किया है. कॉलोनाइज़रों और मुनाफ़ाख़ोर राजनीतिज्ञों की नज़रें प्लांट पर लग गईं हैं. विरोध करने वाले जमकर विरोध कर रहे हैं. पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. थर्मल कॉलोनी को उजाड़ा जा रहा है. हज़ारों कर्मचारी मामूली मुआवज़ा देकर रुख़सत कर दिए गए हैं. अब वे क्या करेंगे-कहां जाएंगे, ख़ुद वे भी नहीं जानते? बहरहाल, बठिंडा की यह पहचान मिट गई.

कवर | विकीमीडिया कॉमन्स


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