जंगली फूल | लोक कथाओं से इतर आदिपुरुष का नया रूप

  • 1:23 pm
  • 18 December 2023

जोराम यालाम नाबाम का उपन्यास ‘जंगली फूल’ यों तो न्यीशी समाज में कही-सुनी जाने वाली ‘तानी कहानियों’ को आधार बनाकर कही गई ऐसी कथा है, जिसे प्रेम-कथा कहने को लेकर लेखक ख़ुद ही मुतमइन नहीं है. प्रचलित अर्थों में कही जाने वाली प्रेम-कथाओं सरीखी यह है भी नहीं. मगर पूरे उपन्यास में अलग-अलग ढंग इसी भाव की अभिव्यक्ति हुई है – प्रेम के तमाम रूपों की छवियाँ बनती है. और ये छवियाँ सिर्फ़ दो मनुष्यों के प्रेम संबंधों की नहीं हैं, इसमें नदी, जंगल, पहाड़, परिंदे, पशु, खेत, अनाज, गीत और गान है, या कहें कि पूरी काइनात शामिल है. प्रकृति से प्रेम और समभाव के साथ ही आदिवासी समाज के विश्वास, उनकी परम्परा और आचार-विचार के साथ ही तानी समुदाय के लोगों का जीवन-दर्शन भी इसमें झलकता है.

अरुणाचल प्रदेश में राजीव गांधी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर जोराम यालाम नाबाम चूंकि ख़ुद भी न्यीशी समुदाय का हिस्सा हैं, और अर्से से अरुणाचल के आदिवासी समुदायों की ज़िंदगी को लेकर लगातार लिखती भी रही हैं, इस नाते ‘दोन्यी तानी’ की लोक कथाओं को नई रोशनी में देखने-बताने और एकदम नया नज़रिया देने के लिए वह अधिकृत भी हैं. उपन्यास की प्रस्तावना में तानी के बारे युगों से चली आ रही लोक कथाओं के हवाले से वह लिखती हैं कि तानी समुदाय के लोगों के लिए बहुत कुछ करने वाले उस पुरखे को पिता तक कहा गया, उसकी ताक़त और अक़्लमंदी का लोहा माना, फिर भी उसका किरदार स्त्री को भोगने के लिए लोलुप किसी लंपट जैसा मालूम होता है. यह कि उसने अनगिनत पत्नियाँ रखीं, आवारा था सो प्रेम किसी से नहीं किया. ऐसा बदनाम फूल जो औरत को हासिल करने के लिए कुछ भी कर गुज़रता.

यह उपन्यास उस पुरखे की बदनाम छवि को चुनौती है, आदिवासी समाज के तमाम अंधविश्वासों और अतार्किक अनुष्ठानों-मान्यताओं पर सवाल है, प्रकृति के प्रति अनुराग से भरा और स्त्री प्रेम के नाना रूपों में पगा दिलचस्प आख्यान है. प्राकृतिक सौंदर्य हो या किसी उत्सव-अनुष्ठान की तैयारी, लेखक ने उसके इतने सूक्ष्म ब्योरे मुहैया किए हैं कि उन्हें पढ़ते हुए आप उनके कल्पना लोक का हिस्सा बन जाते हैं. तानी घरों की बनावट और उनकी व्यवस्था के बारे में पढ़ते हुए कितनी ही बार मुझे थारू लोगों के घरों की याद आई, उनमें काफ़ी साम्य नज़र आता है. रहस्य भरे जंगलों, पारदर्शी पानी वाली नदी, ज़बरदस्त तूफ़ान और बारिश के ब्योरे पढ़ते हुए बार-बार बर्गमैन और तारकोव्स्की की फ़िल्मों के फ़्रेम ज़ेहन में उभर आते, ख़ासतौर पर तारकोव्स्की की ‘मिरर’ याद आती रही. उपन्यास में सिमांग की ज़िंदगी के एकाध प्रसंग पढ़ते हुए तो लगा कि ‘मिरर’ की मारिया पर्दे से उतरकर पन्नों में चली आई हो.

बक़ौल लेखक, उनके नज़दीक जंगली होने का मतलब प्रकृति से जुड़ाव है, उसका अटूट हिस्सा होना है. लिखती हैं कि जंगल पक्षपाती नहीं होता. उसमें जो जीवन है, वह तटस्थ है. वहाँ खिलने वाले फूलों की अपनी मर्ज़ी और मौज होती है. न मोह, न आसक्ति और न त्याग. सभी तरह के बंधनों से मुक्त स्वतंत्रता का नाम जंगल है. वह स्वतंत्रता, जो परम अनुशासन से उत्पन्न होती है. सतर्कता का नाम जंगल है. चुनौती का नाम जंगल है.

अपनी स्मृतियों की किताब ‘गाय-गेका की औरतें’ में यालाम ने राँची के अखिल भारतीय आदिवासी लेखिका सम्मेलन का ज़िक्र किया है, जिसमें संचालिका ने उनका परिचय देते हुए कवियित्री भी कहा था. यालाम ने लिखा है कि उन्होंने कभी कोई कविता नहीं लिखी और ग़लती से भी कविता-संग्रह का सपना नहीं देखा. पर ‘जंगली फूल’ में कई जगह कवितायें भी आती हैं, ‘मिरर’ में आने वाली अर्सेनी तारकोव्यस्की की कविताओं की तरह, ऐसी कविताएं जो रूपकों, संकेतों, संदर्भों, प्रतीकों, अमूर्त छवियों के हवाले से आत्म की अभिव्यक्ति हैं. हालांकि वह कहती हैं कि उनकी संस्कृति में गाँव वाले आज गाकर अपने भावों की अभिव्यक्ति करते हैं. ऐसा तब होता है, बात कहने के लिए जब कोई और युक्ति कारगर नहीं रह जाती. भावों का अतिरेक ही गीत बनकर फूट पड़ता है. कौन ढूँढता है तुझको/ मिलने को रूह से तेरे/ कौन तरसता है/ शब्दों में गीत घोलता है/ बिखर गया है तू/ बिखरा हूँ मैं भी/ देख तो कौन आया है.

वह आदिपुरूष जो उनके उपन्यास का नायक है, ज़िद्दी है मगर संवेदनशील है, बहादुर है मगर दयालु है, वह तो दूसरे गाँव के हत्यारे तापी को भी नहीं मारता, जिसकी हत्या के लिए ही लोग उसे बुलाकर ले गए थे, प्रेम करता है मगर विवेक हाथ से नहीं जाने देता वरना सिंमाग के पति तापिक का बंदी बनकर क्यों रहता, कोमल हृदय है, मिथुन मारना तो दूर, धनी परिवार से आई अपनी ब्याहता का दास-दासियाँ ख़रीदने का विचार भी उसे नहीं सुहाता, दूसरों का दुःख उसे द्रवित करता है, अपने लोगों की भूख उसे दुःखी करती है, उनकी हिफ़ाज़त का ख़्याल उसे हमेशा रहता. उनकी भूख हरने के लिए ही तो धान के अमृत बीजों की तलाश में वह अनजान जगहों की यात्रा करता है और निज का सब कुछ गँवाकर आख़िरकार बीज लेकर ही लौटता है.

तानी की लोक कथाओं से मैं अब तक वाकिफ़ नहीं हूँ मगर यालाम के रचे इस आख्यान को पढ़कर किसी को भी उस पुरखे की बहादुरी पर नाज़ और उसके मन की सुन्दरता पर श्रद्धा ही होगी. कहाँ-कहाँ लिख दूँ मैं इस कहानी को/ बिन बादल बरते इन बूँदों को?/ चाँद पर लिख दूँ/ दाग़ों के बदले प्रेम लिख दूँ?/ पानी में लिख दूँ?/ कोई मिटा न सके/ साँसों की वह रवानगी लिख दूँ?

‘जंगली फूल’ का मूल स्वर प्रेम है, आसीन, सिंमाग, रुंगिया, जीत और दोलियांग जैसे स्त्री पात्र तानी से प्रेम करते हैं, मगर उनकी स्वतंत्र पहचान उनके अपने गुण हैं, दुनिया की बेहतरी का सपना देखने वाली ये बेख़ौफ़ औरतें प्रेम करती हैं, और प्रेम की बातें भर नहीं करती उसे पूरी तरह जीती हैं, वे प्रेम की अपेक्षा रखती हैं तो विद्रोह करना भी जानती हैं, ज़रूरत होने पर अपने और दूसरों के हक़ के लिए लड़ना जानती हैं, त्याग की उनकी भावना इतनी निस्पृह है कि मोहती है, वे बुद्धिमान हैं और अपनी राह आप चुनने का हौसला रखती हैं.

उपन्यास में न्यीशी समुदाय के लोगों के प्रकृति प्रेम, उनकी संस्कृति, मान्यताओं और रीति-रिवाज़ों का ऐसा अद्भुत समन्वय है, जिससे बाक़ी का समाज क़रीब-क़रीब अन्जान ही है, और जो किसी नृतत्वशास्त्री की क़लम के रूखे बयान के उलट सरस और रोचक भी है, यालाम की कहन और ज़बान इसे और दिलचस्प बनाती है. यह कथा पाठकों को अनुभव समृद्ध करते हुए उसके सामने एक दुनिया खोलती है.

किसी जंगल में एक रजनीगंधा खिली थी
खुशबू रात-दिन महकती थी
अन्धकार में खूब खिलती थी
साँसों में उतर
मीठी नींद में आसमानी सपने देती
चाँद जब आसमान में चमकता नहीं था
तब भी वह महकती थी
श्वेत, शुभ्र रंगों वाली चादर में
शिशु-सा कोई किलकारियाँ करता था
वही फूल ‘आबोतानी’ कहलाया
वह नीबो था
वही तानी था…

तानी समुदाय के लोग प्रेम की सन्तान हैं. वे स्वतंत्रता की सन्तान हैं. वे जंगली फूल हैं.

किताब | जंगली फूल
लेखक | जोराम यालाम नाबाम
प्रकाशक | राधाकृष्ण पैपरबैक्स

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‘साक्षी है पीपल’ (कहानी-संग्रह); ‘जंगली फूल’ (उपन्यास); ‘गाय-गेका की औरतें’ (संस्मरण); ‘न्यीशी समाज : भाषिक अध्ययन’ (शोध) और ‘तानी कथाएँ : अरुणाचल के तानी आदिवासी समाज की विश्वदृष्टि (लोक कथा विश्लेषण). 2014 में एक और कहानी संग्रह ‘‘तानी मोमेन’’ (लोक कथाएँ). ‘जंगली फूल’ यालाम का पहला उपन्यास है. दो साल पहले इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी छप चुका है.
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