चाय हमारा नेशनल ड्रिंक है, कोई शक!
हम दुनिया में सबसे ज़्यादा चाय पीने वाले मुल्क हैं, सबसे ज़्यादा चाय उगाने वाले दुनिया के दूसरे मुल्क. औपचारिक रूप से भले न हो, मगर व्यवहार में चाय हमारा नेशनल ड्रिंक है, यह मानने में भला किसे शक होगा. चाय की पत्ती को इस्तेमाल करके इस पेय के जितने स्वाद हमने ईजाद किए, दुनिया में शायद ही कहीं और मिलें.
फ़ुटपाथ से लेकर फ़ाइव स्टार होटल तक, दुनिया की बेहतरीन क्रॉकरी से लेकर कुल्हड़ तक में मिलने हमारी चाय के ज़ाइक़े की दाद पीने वाला ही दे सकता है. अंग्रेज़ी तरीक़ा दरकिनार करके दूध-चीनी के अलावा दालचीनी, इलायची, तुलसी पत्ता, तुलसी के बीज, काली मिर्च, पत्थर फूल, मुलेहठी और भी जाने क्या-क्या मिलाकर औटाने के बाद जो पेय हम गिलास में छानते हैं, उसे चखे बग़ैर दाद भला कैसे दी जा सकती है?
असम और दार्जलिंग, नीलगिरी और मुन्नार, त्रिपुरा और सिक्किम, दुआर्स-तराई और कांगड़ा – चाय बाग़ान के कितने ही ठिकाने हैं हमारे मुल्क में. हरी पत्ती, सूखी पत्ती, साबित पत्ती, टूटी पत्ती और पत्ती का पाउडर चाय का क्लासिफ़िकेशन दरअसल कारोबारियों के काम की चीज़ हैं. मगर अलग-अलग जलवायु और अलग मिट्टी में पैदा चाय का रंग-स्वाद और महक़ भी अलग-अलग होती है, जो उनको विशिष्ट पहचान देती है. और पारखी तो अलग-अलग जगह की चाय पत्ती को ख़ास अनुपात में मिलाकर ख़ास तरह के ज़ाइक़े वाली चाय भी बना डालते हैं.
चीन से चाय के तेरह हज़ार पौधे और दस हज़ार बीज स्मगल करके हांगकांग होकर कलकत्ते पहुंचे रॉबर्ट फ़ॉर्च्युन ने न केवल ब्रिटिश कारोबारियों की क़िस्मत बदल दी थी बल्कि हिंदुस्तान में विस्तृत चाय-संस्कृति की बुनियाद भी रख दी. हिंदुस्तान में चाय उगाने की शुरुआत हालांकि इसके काफ़ी पहले हो चुकी थी और अंग्रेज़ों के चाय का स्वाद जानने के दो हज़ार बरस पहले से चीनी इसे उगा और बरत रहे थे.
हिंदुस्तान के पहाड़ी इलाक़े चाय उगाने के लिए एकदम मुफ़ीद थे और उपनिवेश होने के नाते अंग्रेज़ों को श्रम मुफ़्त में उपलब्ध था. इस कारोबार और हिंदुस्तान में चाय को लोकप्रिय बनाने की अंग्रेज़ी चाल के बाबत बीबीसी संवाददाता जस्टिन राउलेट की एक शोधपरक रिपोर्ट है – ‘द डार्क हिस्ट्री बिहाइंड इंडिया एण्ड द यूके’ज़ फ़ेवरिट ड्रिंक‘. मन करे तो शीर्षक पर क्लिक करके आप यह रिपोर्ट पढ़ भी सकते हैं.
कवर फ़ोटो | pixabay.com
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