अलिज़े कॉर्नेट | पहले कोर्ट पर खेल जीता और फिर दिल भी

खेल मैदान पर कई बार खिलाड़ी कुछ ऐसे अद्भुत दृश्य अपनी भावनाओं की कूंची से उकेर देते हैं, जिन्हें केवल और केवल महसूस किया जा सकता है.
आज रॉड लेवर कोर्ट पर चौथे दौर के मैच में फ़्रांस की 32 वर्षीय अलिज़े कॉर्नेट ने पूर्व विश्व नंबर एक खिलाड़ी सिमोना हालेप को 6-4,3-6,6-4 से हरा दिया. वे अपने कॅरिअर में पहली बार क्वार्टर फ़ाइनल में पहुंचीं. मैच के बाद इंटरव्यू के दौरान अलिज़े कॉर्नेट और उनका इंटरव्यू करने वाली पूर्व खिलाड़ी और कमेंटेटर जेलेना डाकिच दोनों के गले भावनाओं से रुंधे थे. भावनाओं को शब्दों में तब्दील होने में मुश्किल हो रही थीं. और इसलिए दोनों अब गले मिल रही थीं. दोनों की आंखें एक दूसरे के सम्मान में और प्रेम में आर्द्र हो रही थीं.

कमाल की बात ये है कि किसी समय ये दो प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी हुआ करती थीं. वे आज इस रूप में आमने-सामने थीं. इस समय वे दोनों समय के बहाव में विपरीत दिशा में बह रही थीं. दोनों साल 2009 में पहुंच गई थीं. इसी कोर्ट पर कोर्नेट अपना चौथे दौर का मैच रूस की दियारा सफीना के विरुद्ध खेल रही थीं और तीसरे और निर्णायक सेट में 5-1 से आगे थीं. लेकिन वे यह सेट 7-5 से हार कर अपना मैच भी हार गईं. यदि वे मैच जीत जातीं तो उनका मुक़ाबला जेलेना डोकिच से होता. वे आमने-सामने एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में होतीं. नियति ने उसी मैदान पर ठीक 13 साल बाद उन दोनों को आमने-सामने ला कर खड़ा किया था. और भावनाएं थीं कि उफन-उफन आ रही थीं.

याद कीजिए 2017 के यूएस ओपन के महिला एकल फ़ाइनल को. यह मुक़ाबला दो एफ़्रो-अमेरिकन खिलाड़ी स्लोअने स्टीफेंस और मेडिसन कीज के बीच था. स्टीफेंस ने कीज को जैसे ही 6-3,6-0 से हराया, दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया. दोनों की आंखों की से आंसुओं की अविरल धारा बह रह थी. वे एक दूसरे को ऐसे जकड़े हुए थीं कि मानो उन्हें जुदा ही नहीं होना है. या फिर 2021 के टोक्यो ओलंपिक में इटली के जी ताँबेरी और क़तर के बरशिम का एक-दूसरे से लिपट कर ज़ार-ज़ार रो लेना. ज़ब भी भावनाएं उफान पर होती हैं और उनके बाहर निकलने का कोई रास्ते नहीं मिलता तो आंखों के रास्ते आंसुओं में बह निकलती हैं. आज भी ऐसा ही हो रहा था.

कोर्नेट के लिए ये मैच महज एक मैच भर नहीं था. खेल ज़िंदगी का अभी तक का सबसे बड़ा हासिल था. उन्होंने अपना पहला ग्रैंड स्लैम मैच 15 साल की उम्र में पेरिस में फ्रेंच ओपन खेला था. इस बरस ये ऑस्ट्रेलियन ओपन उनका लगातार 60वां और कुल मिलाकर 63वां ग्रैंड स्लैम था. और वे कभी भी चौथे दौर से आगे नहीं बढ़ पाई थीं. लेकिन उन्होंने कभी ‘गिवअप’ नहीं किया किया, कभी हार नहीं मानी. अब वे 32 साल की हैं. इस पकी उम्र में उन्होंने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ हासिल किया. मैच जीतने के बाद उन्होंने कहा ‘इट्स नेवर लेट टू ट्राई’.

उनकी जीत और जुनून ने एक बार फिर सिद्ध किया कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती’ और यह भी कि उम्र का मतलब आंकड़े से ज़्यादा और कुछ नहीं.

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