शाहरुख़ न सलमान, इस बार फीका रहा चित्रकूट का मेला
चित्रकूट | दिवाली के अगले रोज़ मंदाकिनी नदी के किनारे जुटने वाला गधों का मेला इस बार बहुत फीका रहा अलबत्ता मेले की ऐतिहासिकता और रवायत बनी रही.
कहते हैं कि गधों और खच्चरों की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए हर साल जुटने वाला यह मेला औरंगज़ेब के ज़माने से लगता आया है. तब मुग़ल फ़ौजों की ज़रूरत पूरी करने के लिए खच्चर यहां से ख़रीदे जाते थे.
फ़िलहाल यहाँ से खच्चर ख़रीदने वाले जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तक व्यापार कर आते हैं और बांदा, महोबा, हमीरपुर और राजापुर में नदियों के किनारे बसे इलाक़ों में बालू की ढुलाई करने वाले गधे ख़रीदने के लिए यहाँ पहुंचते हैं. यों नदियों के किनारे जुटने वाले मेलों में नखासा (पशु बाज़ार) लगने की परंपरा रही है. पास ही कड़ा मानिकपुर में भी गधों का मेला लगता है मगर चित्रकूट का यह मेला बहुत बड़े पैमाने पर जुटता रहा है.
पशुओं की नस्ल और उनकी उपयोगिता समझने वाले इतने दाम भी लगाते रहे हैं कि आम आदमी को अजूबा-सा लगे. इस बार गधों की क़ीमत अपेक्षाकृत काफ़ी कम रही. यों पिछले साल इसी मेले में आया सलमान के नाम वाला गधा दस लाख और शाहरुख़ के नाम का गधा 11 लाख रुपये में बिकने की ख़ूब चर्चा रही थी. ऋतिक और रणवीर के नाम वाले गधों के दाम आठ लाख रुपये लगे थे.
महामारी के ख़तरे के चलते इस बार बहुत भीड़ नहीं रही वरना यूपी और मध्य प्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड से भी सैकड़ों व्यापारी यहां जुटते रहे हैं. उसी अनुपात में पशुओं के दाम मिलते और कारोबार भी होता.
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