पृथ्वी दिवस | डरा मनुष्य ही है धरा के काम का
22 अप्रैल | पृथ्वी दिवस
कोरोना का कोहराम. अनगिनत मौतें. लॉकडाउन. दुनिया की रफ़्तार पर लगाम.
अनुसंधान करने वाले बता रहे हैं – नदियां पहले से ज्यादा साफ़ हुई हैं.
तस्वीरें आ रही हैं – जंगलों से निकलकर जानवर सड़कों पर विचरते दिख रहे हैं.
बेल्ज़ियम की रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी के वैज्ञानिकों ने पहली बार धरती में होने वाले कंपनों में कमी महसूस की है.
सेटेलाइट की तस्वीरों में प्रदूषणकारी गैस नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की मात्रा कम दिख रही है.
जल, वायु, ध्वनि के प्रदूषण का स्तर घट रहा है.
दुनिया पहले के मुक़ाबले ज्यादा शांत है. सचमुच की शांति.
डर के कारण ही सही, मानव का सिमटना धरती के लिए एक तरह से संजीवनी साबित हुआ है.
‘मानव रहित पृथ्वी’ की निधि सक्सेना की परिकल्पना …
‘क्या हो गर पृथ्वी यकायक
मानव रहित हो जाये
बमों के धमाके बन्द
आतंक का कहर ख़त्म
धर्मान्ध अतिवाद खत्म
बलात्कार के किस्से ख़त्म
कन्या भ्रूण का कचरे में मिलना ख़त्म
एसिड के हमले ख़त्म
ग़रीबी भुखमरी का अंत
निकृष्ट राजनेता ख़त्म
पर्यावरण का विनाश ख़त्म
हम और आप ख़त्म
कृत्रिम रोशनी की गैरहाजरी में
धरा कुछ देर असमंजस में रहेगी
इधर उधर देखेगी
अजीब सा दर्द उभरेगा उसके सीने में
फिर मनुष्य को न पा
राहत की सांस लेगी
उठेगी सूर्य की रोशनी में नहाएगी
अपनी अनावृत देह के जख़्म सहलायेगी
अपनी बिखरी रूह समेटेगी
घीरे धीरे अपने आघातों पर हरे रंग का मरहम रखेगी
शुद्ध हवा में सांस लेगी
शुद्ध जल का आचमन करेगी
कुछ ही वर्षों में पुनः हरी चुनरिया ओढ़ लेगी
उसकी भोर पक्षियों के कलरव से गूँजेगी
धरा पर रंग बिरंगे पशु दौड़ेंगे
सागर जीवन से भर जाएगा
शोख़ चंचल धरा
मनुष्य के बगैर
फिर मुस्कुराएगी
लजायेगी..
खुद को सँवार लेगी
पुरसुकूँ बरसों बरस आबाद रहेगी
शायद धरती के जीवनदान के लिए
मनुष्य का लुप्त होना मूलभूत हो.
आवरण चित्र | Dietmar Rabich / Wikimedia Commons / “Dülmen, Wildpark — 2018 — 1458-62” / CC BY-SA 4.0
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