अनुराग जौली | रेखाओं-रंगों से बड़ी उम्र में दोस्ती
बरेली | बड़ी उम्र के लोगों की ज़बान पर अक्सर दवाओं के नाम होते हैं या फिर गुज़रे दौर के क़िस्से. जिस्म थकने लगता है तो कुछ सीखने-सिखाने की ललक भी चुक गई होती है. अनुराग जौली मगर उन लोगों में शामिल हैं, जिनका हौसला उम्र की गिनती को पीछे छोड़ देता है. जो हुनर का पौधा रोपते हैं फिर उसे वृक्ष बनता देखने का सुख पाते हैं. यह सुख बांटते हैं. हाल ही में राज्य ललित कला अकादमी (लखनऊ) में उनकी पेंटिंग को पुरस्कार मिला है. झोली भर मेडल रखे हैं घर में लेकिन वह कहती हैं कि इन तमगों से ज़्यादा उन्हें अपनी पेंटिंग प्यारी लगती हैं.
रामपुर गार्डन की अनुराग जौली की उम्र 72 साल की है. कुछ अर्सा पहले तक पेंटिंग से उनका दूर का भी रिश्ता नहीं था. हां, हमेशा ही कुछ न कुछ करते रहने का शौक़ ज़रूर था. ख़ाली बैठकर समय बर्बाद करना उनकी फ़ितरत कभी न रही. बच्चे काम पर चले जाते तो किताबें पढ़तीं. कोई नई डिश तैयार करतीं. या कढ़ाई करने लगतीं.
पांच साल पहले उनकी पोती अनुष्का ने उन्हें प्रेरित किया कि वह चाहें तो पेंटिंग बना सकती हैं. तब पहली बार उन्होंने ब्रश थामा. शुरुआती पाठ के तौर पर नाक, कान, हाथ और आंखें बनाना सीखीं. फिर दो-तीन चेहरे बनाए – लाजमी है कि कुछ अनगढ़ से. धीरे-धीरे उन्होंने रंग बरतने शुरू किए. तब लगा कि स्वाध्याय के अलावा और जानने की ज़रूरत है. तो बरेली कॉलेज में चित्रकला विभाग की डॉ.अनिला रंजन से करीब डेढ़ साल तक रंग और रेखाओं को समझा-सीखा.
युवाओं के बीच बैठकर सीखा
अनुराग बताती हैं कि कोचिंग का वह दौर काफ़ी दिलचस्प रहा. शिष्या बुज़ुर्ग थी और गुरु युवा. डॉ. अनिला रंजन उम्र में उनसे काफ़ी छोटी थीं. उनकी कोचिंग में आने वाले विद्यार्थी 20-25 साल के थे और अनुराग जौली 67 की. वह जब डॉ.अनिला रंजन के पास गईं तो उनका पूछा था,’आपको बुरा तो नहीं लगेगा इन बच्चों के साथ सीखते हुए?’ और जवाब था,’मुझे तो बुरा नहीं लगेगा लेकिन आप देख लो आपको तो बुरा नहीं लगेगा मुझे सिखाते हुए.’
लड़कियों को लग रहा था कि बूढ़ी अम्मा कुछ सीख नहीं पाएंगी लेकिन वह उनसे कई क़दम आगे निकल गईं. उनकी तस्वीरें प्रदर्शनी में भी जगह पाने लगीं. शहर में युगवीणा की आर्ट गैलरी में हुई प्रदर्शनियों में उनकी तस्वीरों को सराहा गया, पुरस्कार मिले. उनकी तस्वीरें दिल्ली और लखनऊ का सफ़र भी कर चुकीं. वह अब तक सवा सौ से ज़्यादा पेंटिंग्स बना चुकी हैं.
हर दर्द हार जाता है
कहती हैं कि धीरे-धीरे उम्र भी अपना रंग दिखा रही है, मगर पेंटिंग्स बनाने का शौक़ पूरी तरह स्वस्थ है. इसलिए जब कैनवस के सामने होती हैं तो बड़ी उम्र की तक़लीफें जाने कहां बिला जाती हैं. लॉकडाउन के दिनों में जब लोग घरों में कैद जैसे-तैसे वक़्त बिता रहे थे, तब भी वह रंगों की अपनी दुनिया में ख़ुश थीं.
उपहार में पेंटिंग
अनुराग जौली ने बताया कि अब वह लोगों को उपहार में अपनी पेंटिंग देती हैं. कई बार तो लोग ख़ुद भी इसरार करते हैं. हाल ही में वह अपनी बचपन की एक सहेली से मिलीं. सोचा – उसे क्या तोहफा दूं. तो बचपन का स्कूल का फ़ोटो खोज निकाला, और उसे देखकर पेंटिंग बनाई. सहेली ने जब पेंटिंग देखी तो उसे यक़ीन ही नहीं हुआ.
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सृजन | सविता द्विवेदी के चित्रों का संसार
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