सृजन | सविता द्विवेदी के चित्रों का संसार
अस्सी बरस की उम्र में भी कुछ नया करने-सीखने की इच्छा बनी रहे तो इसे अपवाद ही माना जाएगा. उदयपुर की सविता द्विवेदी ने लॉकडाउन के दिनों में ऊब से बचने के लिए चित्र बनाने की शुरुआत की. अब तक दो सौ से ज़्यादा चित्र बना भी चुकी हैं. उन्हें जीजी पुकारने वाले बेटे ने माँ के सृजन संसार पर यह टिप्पणी हमारे आग्रह पर लिखी है.
…..कोविड की दस्तक के साथ ही, यानी मार्च 2020 से उन्होंने अपने जीवन में पहली बार चित्रकला का सहारा लिया. घर में ही रहना है तो क्या कीजे! मुझे कहा गया कि एक फ़ाइल ओर पेंसिल लाकर दे दो. उन्होंने दो-चार छोटे रेखाचित्र ही बनाए होंगे जब मुझे यह लग गया था कि साथ में कलर पेंसिल भी रखी जा सकती हैं! ..बस, वो दिन है और आज का दिन. जीजी तब से संभवतः हर रोज़ चित्र बनाती है. और बेशक उनके चित्रों की गढ़न में लगातार बेहतर बदलाव भी देखे जा सकते हैं.
डेढ़ वर्ष के अंतराल में वह क़रीब 200 चित्र बना चुकी हैं.
83 वर्ष की इस उम्र में रोज़ शाम को चार से सात बजे तक का उनका समय चित्रकला को समर्पित रहता है. कई बार रात को नींद नहीं आने पर वह चित्र ले के बैठ जाती है. सतत् काम में ख़ुद के जीवन से ही उन्हें अपने चित्रों के विषय मिल जाते हैं, जिससे तादात्म्य और मुखर होता है. तीज-त्योहार, शुभ-प्रसंग, मेले, उत्सव, यादें, पुरानी फ़िल्म्स, आचार-विचार, जीवन और उसकी ऊर्जा – सब कुछ दिख जाता है जीजी के सृजन में.
सबसे महत्वपूर्ण अकादमिक पहलू यह है कि आज जीजी के अपने चित्रों का एक ख़ास शैलीगत आग्रह बन चुका है, जहां आकृति, रंग, हाव-भाव और दूसरे चित्रात्मक पहलू का तौर-तरीक़ा पहचाना जाने लगा है.
निःसंदेह, स्त्री स्वयं सर्जक होती है, जननी होती है और शायद माँ के साथ यही हुआ कि उसने अपनी वैचारिकी को सौंदर्य और प्रयोग सिद्धि के साथ एक ख़ास अंदाज में प्रस्तुत किया और अब भी उसी नशे में हैं.
माँ के अपने रंग हैं – चटख़, प्रफ्फुलित और राजस्थान की रंगतों से सराबोर.
मुझे याद आता है कि माँ ने यदा-कदा दीवारों पर सीलन के दाग-धब्बों में, या ऐसे ही कभी-कभार बादलों में आकृतियां देखने जैसी दिलचस्पी दिखाई है और शायद वह अन्तःप्रेरणा ही अब उभर कर सामने आई है.
अब, सुबह से रोज़मर्रा के अपने सारे कामकाज निबटाने के पीछे जैसे शाम के चार बजे का इंतज़ार होता है उनको! ..नशे में है अब सृजन के. कहती भी हैं कि भाई कमाल का विषय है – चित्रकला !!!…जब कभी इस यात्रा में भी कुछ नया चाहती हैं तो लोकगीत गाती हैं, रिकॉर्ड कराती हैं, साथ ही उसे सहेज कर रखने भर की हिदायत भी देती जाती है.
(हेमंत द्विवेदी उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कला विभाग में प्रोफ़ेसर और मानविकी संकाय के चेयरमैन हैं.)
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