जाजमऊ का टीला | ययाति का आख्यान, और आज का हाल

हत्या की एक घटना की पड़ताल में ‘जाजमऊ का टीला’ से जुड़े अद्भुत प्रसंगों से रूबरू होने का यह मौक़ा तब है, जब इस रहस्य से परदा उठ चुका है कि चंद्रवंशी राजा ययाति के रिश्ते वाले आख्यान से शुरू होकर अब यह भू-माफ़िया की साजिशों और ख़ूनी संघर्षों में तब्दील हो चुका है. हाक़िमों और पुरातत्व विभाग को छकाकर वे अपने ढंग से नए-नए क़िस्से गढ़ते रहे हैं.

कानपुर में गंगा नदी के इस छोर पर विशालकाय टीला ही जाजमऊ का टीला है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक यहीं राजा ययाति का क़िला था. वही ययाति, जिनके राजा बनने की दास्तान से कहीं ज़्यादा दिलचस्प उनकी ज़िंदगी की कहानी है. जिन्हें एक शाप से मुक्त कराने के लिए उनके ही पुत्र पुरु ने अपना यौवन उनको दान दे दिया था. जिन्होंने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से ब्याह किया, लेकिन दैत्यराज वृषपर्वा की बेटी शर्मिष्ठा के प्रेमजाल में फंसकर उसे भी अर्द्धांगिनी बना लिया. जिन्होंने जाजमऊ को दूसरी काशी बनाने की ठानी. उन्हीं ययाति से आगे चंद्रवंश चला और अखंड भारत में उनके ही पांचों पुत्रों से जातियां बनीं.

चंद्रवंशी राजा नहुष के छह पुत्रों में दूसरे पुत्र ययाति थे. पहले पुत्र याति थे लेकिन राजकाज में अपनी विरक्ति स्वभाव के चलते वह नहुष की पहली पसंद नहीं बन सके और इस तरह ययाति के राजा बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ. ययाति के बाद सयाति, फिर अयाति, वियाति और कृति नहुष की संतानें थीं.

गंगा पर पुल के लिए टीला काटा
सत्तर के दशक में जब गंगा पर पुल बनाने का इरादा किया गया तो जाजमऊ का यही टीला बाधा बन गया. पुल के लिए जो नक्शा बना, उस पर अमल के लिए इस टीले को काटना अपिरहार्य हो गया. आख़िर यही किया गया. इसे काटने के लिए ज्यों-ज्यों खुदाई की गई, ज़मीन से 12वीं-13वीं सदी के बर्तन और कलाकृतियां निकलती गईं. भारतीय पुरातत्व विभाग के लखनऊ दफ़्तर की टीम ने शोध और कार्बन डेटिंग से इनके क़रीब 2800 साल पुराना होने की पुष्टि की है. कुषाण और गुप्त काल से जुड़े अवशेष भी मिले.

इस टीले में मौर्य काल से लेकर मुग़ल काल तक के साक्ष्य दबे होने का अंदाज़ होने पर 28 फरवरी 1968 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे अपने संरक्षण में ले लिया.

पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चला कि यह इलाक़ा मध्यकाल और प्राचीन काल में एक परगना था. पश्चिम में कन्नौज से लेकर पूर्व में इलाहाबाद के झूंसी और उत्तर-पूर्व में गंगा नदी तथा दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम में कानपुर-देहात के अकबरपुर तक इसका क्षेत्र था. शेरशाह सूरी मार्ग इधर से ही गुजरता है, जो ढाका को लाहौर से जोड़ता रहा. यह इलाक़ा गंगा यानी जलमार्ग से बंगाल की खाड़ी से भी जुड़ा था.

शोधार्थियों के लिए आकर्षण बना
लंबे शोध के बाद इतिहासकारों की राय बनी कि यह टीला जितना ऊंचा दिखाई पड़ता है, उससे भी कहीं ज़्यादा जमीन के अंदर धंसा है, कि इस पर राजा ययाति का क़िला था. इसीलिए इस पूरे क्षेत्र को जाजमऊ का क़िला के रूप में भी जाना गया.

इसी क़िले से राज करने वाले ययाति के बारे में कहते हैं कि जवानी में ही वृद्धावस्था को प्राप्त होने के बाद युवा अवस्था में लौटने के लिए उन्हें अपने पुत्रों के आगे हाथ फैलाना पड़ा था. ग्रंथों में राजा ययाति के एक सहस्र वर्ष तक भोग-लिप्सा में लिप्त रहने का उल्लेख मिलता है. ययाति की शादी दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से हुई थी और देवयानी की सहेली शर्मिष्ठा शुक्राचार्य के ययाति पर कुपित होने की वजह बनी.

मूसानगर का कुआं देवयानी-ययाति के प्रथम मिलन का गवाह बना, ययाति ने वहां सरोवर बनवा दिया. इस समाचार से प्रसन्न शुक्राचार्य ने कहा था- जब तक धरती रहेगी, यह सरोवर रहेगा. मूसानगर अब कानपुर देहात जिले का अंग है. आज भी वहां एक सरोवर है, जहाँ पितृपक्ष में लोग पिंडदान करने आते हैं.

ययाति के ब्याह का आख्यान
कहते हैं शिकार पर निकले राजा ययाति को एक कुएं से आती चीखें सुनाई दीं. ययाति ने अपने सैनिकों को रोका. कुएं में एक युवती को मौत से लड़ते देख कर उन्होंने छलांग लगा दी और युवती को बचा लाए. वह देवयानी थी. देवयानी अपनी प्राण रक्षा करने वाले ययाति पर आसक्त हो गई. देवयानी-ययाति की शादी हुई, पर उसके बाद उत्पन्न स्थितियों के बारे में न कभी देवयानी ने सोचा न ययाति ने.

इस आख्यान के मुताबिक भ्रमण पर निकले दैत्यगुरु शुक्राचार्य वर्तमान के मूसानगर वाले इलाक़े में आए थे. साथ में बेटी देवयानी और दैत्यराज वृषपर्वा की बेटी राजकुमारी शर्मिष्ठा भी थी. दोनों थीं तो सहेलियां, लेकिन नदी में स्नान के समय हुई एक घटना ने दोनों के बीच खाई पैदा कर दी. नदी के तट पर कपड़े और जेवर रख कर दोनों नहा रही थीं. तभी मौसम गड़बड़ाया, तेज आंधी आई और कपड़े उड़कर इधर-उधर हो गए. नदी से निकलकर शर्मिष्ठा ने बिना देखे देवयानी के कपड़े पहन लिए. देवयानी मज़ाक में बोल उठी – तुमने तो अपने पिता के गुरु की बेटी के कपड़े पहन लिए.

शर्मिष्ठा को ग़लती का अहसास हुआ, लेकिन मज़ाक बुरा लगा. गुस्से में कह गई – तुम्हारे पिता मेरे पिता के सामने सिर झुकाते हैं. मेरे पिता के दिए टुकड़ों पर ही तुम पलती हो. तुम्हें अपनी जगह पता होनी चाहिए. फिर वह देवयानी को कुएं में धकेलकर चली गई. इसी दौरान ययाति उधर से गुज़रे और उन्होंने देवयानी को बचाया. बात विवाह पर आई तो ययाति को शुक्राचार्य की यह शर्त माननी पड़ी कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिससे देवयानी को पीड़ा पहुंचे, उसकी आंखों में आंसू आएं.

दैत्यगुरु के कोप के भागी ययाति
महारानी बन देवयानी ने जाजमऊ क़िले में रहने आई. शर्मिष्ठा को वह अपनी ख़ास दासी बनाकर साथ ले आई. शर्मिष्ठा इसके लिए मजबूर थी. कुएं में गिरकर भी जान बचने के बाद देवयानी शर्मिष्ठा से प्रतिशोध लेने पर उतारू थी. वह पिता के पास पहुंची और रो-रोकर वाक़या सुनाया. फिर जिद की कि शर्मिष्ठा को सबक सिखाना जरूरी है. तब शुक्राचार्य ने दैत्यराज से कहा कि देवयानी का अपमान हुआ है. इसके बदले राजकुमारी शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनना होगा. शुक्राचार्य की मांग मानने को दैत्यराज विवश हो गए.

विवशता इसलिए थी कि मृतकों को जीवित करने की विद्या केवल शुक्राचार्य जानते थे. देवों और असुरों के बीच चल रहे युद्ध में जब कोई असुर मारा जाता तो शुक्राचार्य उसे जीवित कर देते. इसीलिए वृषपर्वा की फौज जस की तस बनी थी.

देवयानी ने प्रतिशोध, शर्मिष्ठा ने संकल्प पूरा किया
शादी के बाद ययाति और देवयानी की संतान यदु हुई. शर्मिष्ठा को इससे जलन हुई. उसने देवयानी को सबक सिखाने का संकल्प कर डाला. ख़ुद को देवयानी से ज्यादा आकर्षक बनाकर ययाति की निकटता पाने में जुट गई. ययाति उस पर रीझ उठे और दोनों में गुपचुप प्रेम हो गया. शर्मिष्ठा की कोख से पुरु का जन्म इसी प्रेम की परिणिति था. यही पुरु कुरु वंश का जनक बना. देवयानी को इस प्रेम-प्रसंग और पुरु जन्म से तगड़ा आघात पहुंचा. वह मायके चली गई.

जब यह बात शुक्राचार्य तक पहुंची तो इतने कुपित हुए कि दामाद को जवान से बूढ़ा हो जाने का शाप दे दिया. तत्काल बुढ़ापे की ओर बढ़ चले ययाति ने आख़िर दैत्यगुरु से क्षमा मांगी. लेकिन उन्हें मनाने में ययाति को अपने ही पुत्र की जवानी दान में लेनी पड़ी. शुक्राचार्य ने शर्त रखी कि अगर उनका कोई पुत्र उन्हें अपनी जवानी दे दे तो वह दोबारा जवान हो सकते हैं.

पुरु ने पिता को अपना यौवन दान किया
शुक्राचार्य से मिलकर राजमहल लौटे ययाति ने सबसे पहले बड़े बेटे देवयानी के पुत्र यदु के आगे झोली फैलाई कि वह अपनी जवानी उनको दान कर दे. यदु ने यह कहकर साफ मना कर दिया कि आपने मेरी मां को धोखा देकर दूसरा विवाह कर लिया. हरिवंश पुराण के अनुसार, यदु के जवाब पर ययाति कुपित हो गए और उसे शाप दे दिया कि तुम कभी राजा नहीं बन पाओगे.

फिर उन्होंने अन्य पुत्रों से आग्रह किया. पुरु को छोड़ अन्य सभी ने पिता के आग्रह को ठुकरा दिया. पितृभक्त पुरु के आग्रह स्वीकार करते ही ययाति की जवानी लौट आई और पुरु वृद्धावस्था को प्राप्त हो गया. राजकाज में लिप्तता के साथ आनंद से रह रहे ययाति को बाद में पुरु के प्रति अन्याय का अहसास हुआ. वह पुरु के पास पहुंचे और दान में ली हुआ यौवन वापस देकर उसे राजा भी घोषित कर दिया. पुरु जवानी में लौट आया, जबकि ययाति पुन: वृद्धावस्था को प्राप्त होकर ब्रह्म की उपासना करने जंगल चले गए.

वेद-पुराणों में है कि यदु और तुर्वसु देवयानी के पुत्र थे. द्रुह, पुरु और अनु दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा के. इन्हीं पांचों पुत्रों का जो वंश चला, वह पुरु वंश, यदु वंश, तुर्वसु वंश, अनु वंश और द्रुह वंश कहलाया. 7200 ईसा पूर्व इन्हीं पुत्रों का राज था.

◆ यदु वंश में श्रीकृष्ण हुए.
◆ पुरु वंश में महाप्रतापी राजा शांतनु हुए. भीष्म शांतनु के ही पुत्र थे. अर्जुन भी इसी वंश के थे, आगे चलकर राजा परीक्षित भी.
◆ तुर्वसु वंश में वह्नि, भर्ग, भानुमान, त्रिभान, करंधम और मरूत थे. महाभारत के युद्ध में इन्होंने कौरवों का साथ दिया था.
◆ द्रुह के वंशज राजा गांधार हुए. ये आर्यावर्त में रहते थे. पुराणों में द्रुहुओं के राजा प्रचेतस का ज़िक्र है कि अफ़ग़ानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और उनको म्लेच्छ कहा गया.
◆ अनु के वंश के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि रावी नदी क्षेत्र में बसे इस कबीले में सौवीर, कैकेय और मद्र क़बीले हुए.

किताबें कहती हैं कि जाजमऊ को दूसरी काशी बनाने को ययाति ने यज्ञ शुरू किए थे. 99 यज्ञ पूरे हो चुके थे और सौवां यज्ञ पूरा होते ही जाजमऊ को दूसरी काशी का दर्जा मिल जाता, लेकिन हवनकुंड में हड्डी गिरने से किया-धरा बेकार हो गया. जनश्रुति यह भी है कि राजा ययाति ने ही जाजमऊ में सिद्धनाथ मंदिर की स्थापना की थी.

मानते हैं कि ययाति का शासन वर्तमान अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा, थाईलैंड तक फैला था. उन्होंने जाजमऊ को अपनी राजधानी बनाया था और गंगा के किनारे अपना महल.

टीले पर माफिया वास: अवैध बस्ती बस गई
अब यहां कोई महल नहीं, मिट्टी का ऊंचा टीला है. टीले पर मकान हैं, बस्ती है और ज़ाहिर है कि सब की सब अवैध हैं. इसीलिए लोग सवाल करते हैं कि 50 वर्षों से भी ज्यादा समय से संरक्षण का दायित्व निभा रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने आखिर इस टीले के लिए क्या किया?

2015 में कमिश्नर रहे इफ़्तिख़ारुद्दीन ने इस अवैध बस्ती की जांच के आदेश दिए थे, मगर भूचाल 2017 में आया, जब अधिवक्ता संदीप शुक्ला ने अवैध क़ब्ज़ों के ख़िलाफ़ चकेरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पहली बार टीले पर ‘माफिया वास’ का खुलासा हुआ और इसे आज़ाद कराने की भी मांग उठने लगी.

चार साल बाद अब बसपा नेता पिंटू सेंगर की हत्या के बाद से फिर हलचल है. पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने टीले से माफिया वास उजाड़ने के अपने इरादे तो जताए हैं, मगर माफिया को बचाने वाले उन्हीं के विभाग के लोग बेनकाब भी हुए. हत्या के आरोपी भू-माफिया और उसके कुछ साथी भी जेल में हैं और पुलिस कुर्की की कार्रवाई में लगी है, लेकिन इस दुस्साहस का अंत अब भी नहीं है कि 16 बीघा क्षेत्रफल वाले टीले के पांच बीघे क्षेत्रफल से लोग क़ब्ज़ा छोड़ने को तैयार नहीं हैं.

माफिया के करीबियों ने तो आसपास की ज़मीनों को भी बेधड़क बेच दिया है. राजस्व दस्तावेजों से भी छेड़छाड़ हुई है. 7 मई 2018 को इसकी शिकायत तत्कालीन अपर नगर मजिस्ट्रेट पीसी लाल श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में डीएम से की थी. तब से तमाम प्रशासनिक और पुलिस कार्यवाही समय-समय पर चलीं और कुंद होती रहीं. हालात जस के तस हैं… अब देखिए होता है क्या?

फ़ोटो | गौरव कन्नौजिया


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