स्त्री-2 : बेहद मनोरंजक

  • 10:01 pm
  • 15 August 2024

पिछले दशक में आई फ़िल्मों पर ग़ौर करें तो ऐसी उत्तर-कृति (सीक्वल) बहुत कम याद कर सकेंगे जो क़ामयाब हुई हों और साथ ही मनोरंजक भी. सीक्वेल अपनी पहली कड़ी की बदौलत चर्चा में रहते हैं, भीड़ खींचते हैं लेकिन रुपहले पर्दे पर उनका सफ़र वैसा दिलचस्प नहीं होता है, आमतौर पर चारों तरफ़ जितना शोरगुल सुनाई देता है. धूम-3 जैसी कुछ फ़िल्मों को छोड़ दें तो सीक्वेल्स ज़्यादातर निराश ही करते हैं. मगर स्त्री-2 के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है.

हास्य, हॉरर व रोमांचक कहानी के साथ-साथ दर्शकों का एड्रेनेलिन बढ़ता ही चला जाता है, फ़िल्म शुरू से आख़िर तक बांधे रखती है. मूल फ़िल्म स्त्री (2018) की उत्तर-कृति उससे कहीं ज़्यादा आगे निकल गई है. बेहतरीन पटकथा, हास्य की परिस्थितियां और गुदगुदाते संवाद, कसा हुआ संपादन और मज़बूत तकनीकी पक्ष (वी.एफ.एक्स., पार्श्व संगीत, कैमरावर्क इत्यादि) के साथ उम्दा अदाकारी. और यह सब कुछ एक जगह हों तो किसी भी बड़ी या छोटी फ़िल्म को ख़ास बना देते हैं, वैसे ही जैसे कि इनका अभाव फ़िल्म को कमज़ोर, बेअसर व नीरस बना देता है.

स्त्री-2 की ख़ूबी यह भी है कि इसका पहला हिस्सा जितना दिलचस्प है, उतना ही दूसरा हिस्सा भी. हालिया रिलीज़ सभी फ़िल्मों से यह इस वजह से भी अलग है. इधर आई फ़िल्मों के साथ अमूमन यह हुआ है कि पहले हिस्से का रोमांच दूसरे हिस्से में जारी नहीं रह पाया. स्त्री-2 की कहानी चंदेरी नाम के इलाक़े की है, जहाँ इस बार सिरकटे नाम के शैतान का आतंक है. अपारशक्ति खुराना की प्रेमिका की गुमशुदगी से शुरू हुई स्त्री-2 तमन्ना भाटिया की गुमशुदगी व बरामदगी पर जाकर पूरी होती है. इस गुमशुदगी और बरामदगी के बीच अनगिनत हँसाते, डराते व चौंकाते दृश्य हैं, जिन्हें पंकज त्रिपाठी के वन लाइनर्स और भी ज़्यादा दिलकश बना देते हैं. और पूरी मेहनत से उनका साथ निभाया है, राजकुमार यादव (स्क्रीन-नेम राव), अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बैनर्जी और श्रद्धा कपूर ने. इन कलाकारों का आपसी तालमेल फ़िल्म को ऊँचे दर्जे तक ले जाता है. और जब कहानी के दूसरे भाग में एक बड़े कलाकार का कैमयो होता है जो ख़ुद भी बहुत अच्छी कॉमेडी करते हैं तो कहानी का लुत्फ़ और अधिक बढ़ जाता है.

फ़िल्म का क्लाइमेक्स मज़ेदार है लेकिन थोड़ा खींचा हुआ सा लगता है, लेकिन वहाँ तक पहुंचते-पहुंचते हँसने-हँसाने का दौर बना रहता है और इसके चलते फ़िल्म देखने वालों पर इसका बहुत असर नहीं होता और दर्शक मुस्कुराते हुए सिनेमाघऱ के बाहर आते हैं. बतौर लेखक निरेन भट्ट डिस्टिंक्शन से पास होते हैं. हेमंती सरकार के संपादन की ख़ूबी यह कि कहानी की रफ़्तार की सधी लय बनी रहती है. अमर कौशिक का निर्देशन आला दर्जे का है. ये उनका ही हुनर है कि साधारण सिचुएशन्स को भी उन्होंने दिलचस्प व असरदार बना दिया है. आबा (शॉर्ट फ़िल्म) से शुरू हुआ अमर कौशिक का सफ़र स्त्री-2 के कारण उनसे भविष्य में और भी अच्छी फ़िल्मों की उम्मीद जगाता है.


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