लॉक डाउन डायरी | भूख से बदहाल मजदूर सड़कों पर
पंजाब में सरकार का यह दावा निहायत झूठा साबित हो रहा है कि महामारी के चलते पैदा हुए गंभीर आर्थिक संकट में किसी को एक पहर भी भूखा नहीं रहने देंगे. जैसे ही लॉकडाउन हुआ और कर्फ्यू लगा, श्री अकाल तख्त साहिब से लेकर राधा स्वामी सत्संग ब्यास तक तमाम धार्मिक संस्थाएं और एनजीओ अन्न के भरे-पूरे भंडारों के साथ आगे आए और लंगर की सदियों पुरानी परंपरा कायम रखते हुए हर भूखे तक खाना पहुंचाया. लेकिन पखवाड़े भर पहले राज्य सरकार ने तमाम संस्थाओं के अपनी तरफ़ से लंगर बांटने पर सख़्ती से रोक लगा दी.
वजह वाजिब थी. लंगर बांटने वाले कुछ सेवक संक्रमित पाए गए. तथ्य मिले कि उनके जरिए वायरस आगे फैला. तब जो काम छोटी-बड़ी संस्थाएं कर रही थीं, सरकारी अमले ने उसे अपने हाथों में ले लिया. लेकिन इस मोर्चे पर सरकारी अमला नाकाम साबित हो रहा है. सूबे में वायरस के साथ-साथ अब भूख का दानव भी बेतहाशा फैल रहा है और सरकार के पास इसे रोकने के लिए फिलहाल कोई ठोस कार्यनीति नहीं है. नतीजा यह है कि अभावग्रस्त लोग भूख से बिलबिला रहे हैं. कर्फ्यू की सख़्ती के बावजूद सड़कों पर आकर रोष-प्रदर्शन करते हुए रोटी मांग रहे हैं. दूसरे सूबों से यहां लोग अब भी जिद कर रहे हैं कि अफ़सर उन्हें पैदल ही अपने घर जाने की इजाजत दे दें. इसलिए भी कि अब पंजाब में न रोजगार है, न रोटी और न ही आगे कोई उम्मीद! हकीकत है कि प्रवासी मजदूरों के साथ ही स्थानीय मजदूरों का तबका भी अब यह मानने लगा है कि संक्रमण से मरें या नहीं, लेकिन यही हाल रहा तो भूख से ज़रूर मर जाएंगे. दफ़न-कफ़न के लिए पैसे भी नहीं होंगे. श्रमिक अपने ठिकानों से बाहर आकर जिस तरह और जिन तेवरों के साथ रोष जाहिर कर रहे हैं, वह व्यवस्था के ख़िलाफ उनका अविश्वास ज़ाहिर करने के लिए काफी है. सूबे के एक से दूसरे कोने तक यही हाल है. और इस राज्य में ऐसा पहली बार हुआ है.
23 अप्रैल, जालंधर में दोपहर का मंजर: गदाईपुर के राजा गार्डन में भूख से आजिज क़रीब पांच सौ मजदूर अपने परिवार के साथ सड़कों पर आ गए. महिलाएं हाथों में खाली थालियां लेकर सड़कों पर बैठ गईं और पुरुष ऊंची आवाज में लगातार दोहराते रहे – हमें राशन दो या गांव भेजो. हमें भूखे नहीं मरना. इनमें से कुछ रो रहे थे. दरअसल राजा गार्डन और गदाईपुर इलाके में 15 हजार से ज्यादा प्रवासी श्रमिक रहते हैं. इनके घरों में कई दिनों से राशन ख़त्म है. इन इलाकों में पहले लंगर चलता था लेकिन प्रशासन ने बंद करा दिया है. पांच लोगों के परिवार के मुखिया नीरज महतो कहते हैं, “अगर यही हाल रहा तो लोग बच्चों के साथ ख़ुदकुशी कर लेंगे क्योंकि कोई भी अपने बच्चों को भूख से तड़पकर मरते हुए नहीं देख सकता.” मौके पर मौजूद कई मजदूरों ने बताया कि कहने को अफ़सरों ने जरूरतमंदों के लिए फोन नंबर दे रखे हैं. लेकिन बार-बार के बताने के बाद भी कोई सुध लेने वाला नहीं है.
इस इलाके के क़रीब एक लाख मजदूर अब बंद पड़ी 15 हज़ार फैक्ट्रियों में काम करते थे. तालाबंदी के बाद से ये सारे घर बैठे हैं. जमा-पूंजी सारी ख़त्म हो गई और कर्फ्यू की सख़्ती के मारे गांव लौट भी नहीं कर पा रहे. सरकार की तरफ़ से आयद नए नियम-क़ायदे ऐसे हैं कि फैक्ट्रियां खुलने के आसार भी नहीं हैं. फैक्ट्रियों से तनख़्वाह मिलने का सवाल ही नहीं और सरकार कोई इमदाद दे नहीं रही. और देना तो दूर हुक्मरान इस बाबत शायद सोच भी नहीं रहे हैं. पहले एनजीओ वाले लोग दिन में दो बार इन्हें खाना दे जाते थे, फिर सरकारी आदेशों के बाद यह सिलसिला भी बंद हुआ.
अफ़सर ख़ुद भी मानते हैं कि तमाम ज़रूरतमंदों तक राशन पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौती बन गया है. दावा है कि पुलिस और वॉलंटरियों के जरिए फिलहाल हर रोज़ 60 हजार लोगों तक राशन पहुंचाया जा रहा है लेकिन ज़रूरतमंदों की तादाद के हिसाब से देखें तो यह नाकाफी है. अफ़सरों का कहना है कि जालंधर में ढ़ाई लाख के करीब ऐसे परिवार हैं, जिन्हें नीले कार्ड पर आधारित आटा-दाल स्कीम के तहत अनाज पहुंचाया गया है लेकिन फैक्ट्रियों के मजदूर, रेहड़ी वाले और दुकानों इत्यादि पर काम करने वाले जो श्रमिक आकस्मिक बेरोजगार हुए हैं, सरकारी मदद उन तक नहीं पहुंच रही. मजदूरों तक पहुंचे राशन के पैकेट भी ज़्यादा से ज़्यादा हफ्ता भर चलता है. अभी का हाल यह है कि एक पैकेट से पांच-पांच परिवार गुजारा कर रहे हैं. इस इलाके का हर तीसरा मजदूर परिवार स्वैच्छिक पलायन की जिद पकड़े हुए है या फिर खुदकुशी की मानसिकता का शिकार है. अवसाद में तो ख़ैर हर कोई है ही. स्थानीय पंजाबी मजदूर भी बड़े पैमाने पर इन्हीं हालात में से गुजर रहे हैं. भवन निर्माण के काम में दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले बस्ती बावा खेल के नछत्तर सिंह के मुताबिक कर्फ्यू के बाद उसके परिवार को तीन दिन में एक बार खाना नसीब होता है. पहले गुरुद्वारे से आता था. नछत्तर कहते हैं कि देखना भूख से ज्यादा लोग मरेंगे!
लुधियाना के ताजपुर रोड की महावीर कॉलोनी: बिहार और यूपी के सैकड़ों मजदूरों का यहां बसेरा है. एक बड़े डेरे में पास की बंद हो गई धागा मिल में काम करने वाले 45 मजदूर परिवार रहते हैं. 35 बिहार के हैं और 10 यूपी के. बीते बीस दिन से खीरे और मूली खा कर जैसे-तैसे दिन काट रहे थे. इनमें से एक मजदूर सोनू ने दिल्ली के एक माध्यम के जरिए इस पत्रकार से मदद की उम्मीद में संपर्क किया. लुधियाना से लेकर चंडीगढ़ तक सरकारी-गैरसरकारी कवायद तथा दबाव के बाद किसी तरह इन्हें एक हफ्ते का राशन नसीब हुआ. बेशक वह नाकाफी है. सोनू अब भी बार-बार कह रहा है कि किसी तरह उन्हें यहां से अपने गांव-घर भेजने का बंदोबस्त कर दिया जाए. सोनू और उसके साथियों सरीखे मजदूरों की बड़ी तादाद है. लुधियाना में भी मजदूर दो जून की रोटी के लिए रोज़ सड़कों पर धरना दे रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं. रोटी मिले या नहीं, पुलिस के हाथों फ़जीहत ज़रूर हो जाती है.
गौरतलब है कि एशिया का मैनचेस्टर कहलाने वाला लुधियाना लॉकडाउन से पहले क़रीब आठ लाख प्रवासी श्रमिकों को रोजी-रोटी देता था. तालाबंदी ने इन्हें भूख की भट्टी में झोंक दिया. इनमें से एक चौथाई तो पैदल ही अपने घरों को निकल दिए थे. बाक़ी को उम्मीद ने रोक लिया या फिर सख़्ती ने. उम्मीद की लौ तो अभ बुझ गई है अलबत्ता सख़्ती कायम है. पहले-पहल लुधियाना और आसपास के बेरोजगार हुए श्रमिकों को भी ‘लंगर’ का आसरा था. लेकिन अब पूछने वाला कोई नहीं. कुछ इसलिए भी कि ये असंगठित मजदूर हैं और यहां इनके वोट भी नहीं हैं. पंजाब में हर जगह उन प्रवासी श्रमिकों की थोड़ी-बहुत परवाह जरूर हो रही है, जो यहां वोट डालते हैं. वजह साफ़ है. बाकी के लावारिस हैं.
बेरोजगार हुए बेशुमार प्रवासी मजदूर इस दिक्कत से भी जूझ रहे हैं कि मालिक उनसे उनके किराए के घर, डेरे या ठिकाने जबरन खाली करा रहे हैं. सरकारी रैन बसेरों में जगह नहीं है. गुरुद्वारे, मंदिर, आश्रम और धर्मशालाएं फौरी पनाहगाह हो सकती थीं लेकिन उनके कपाट अब बंद हैं. रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों तथा मैदानों-पार्कों से पुलिस खदेड़ देती है. ऐसे में कहां जाएं?
देर रात को कुछ मजदूर साइकिलों से निकलने की कोशिश अब भी करते हैं तो कुछ पैदल. खैर, ताजा सूचना यह है कि साइकिल या पैदल जाने वाले प्रवासी मजदूरों को पंजाब-हरियाणा सीमा से वापस लौटाया जा रहा है. सैकड़ों मील चलने के बाद वे वापस लुधियाना, जालंधर और अमृतसर लौट रहे हैं. 23 अप्रैल की रात पुलिस ने मंडी गोबिंदगढ़ में एक मुखबिर की सूचना पर एक ऐसा ट्रक पकड़ लिया, जिसमें सवार 40 मजदूर यूपी जा रहे थे. ट्रक चालक ने हर एक से 1500 रुपये वसूले थे. मजदूरों से भरे ट्रक की वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई.
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