लॉक डाउन डायरी | ग़रीब की ख़ाक को भी अपना देस कहां नसीब

15 अप्रैल

शहर से ख़ासा दूर चौरीचौरा इलाक़े का डुमरी खुर्द गांव. दोपहर के 12 बजे होंगे. अचानक दलित बस्ती के राधेश्याम के घर से उठी चीखों से बस्ती का सन्नाटा टूटता है. पड़ोस के लोग दौड़े तो मालूम हुआ कि राधेश्याम का छोटा बेटा सुनील नहीं रहा. सुनील दिल्ली में रहता था और टाइल्स लगाने वाले एक ठेकेदार के यहां मजदूर था.

सुनील के ठेकेदार नवल ने चार रोज़ पहले फ़ोन करके उसके बीमार होने की इत्तिला दी थी. इतना कहते राधेश्याम का गला भर आया और कंधे पर रखे गमछे से वह आँखें पोछने लगते हैं. फिर बताया कि ठेकेदार से सुनील को घर भिजवाने की इल्तिज़ा की थी,  मगर उसने भरोसा दिया था कि वहीं ढंग से इलाज कराएगा. इसके बाद कई बार सुनील से फ़ोन पर बात करने की कोशिश की तो उसका फ़ोन उठा नहीं, फिर फ़ोन स्विच ऑफ मिलने लगा. आज किसी पुलिस वाले ने फ़ोन पर सुनील की मौत की ख़बर दी. राधेश्याम सुनील के बच्चों की तरफ इशारा करते हैं, और फिर ख़ामोश हो जाते हैं.

सुनील की बड़ी बेटी अपनी मां के पास बैठी सुबक रही है, उसकी तीन बहनें गुमसुम बैठी हैं और एक साल का छोटा भाई कभी माँ के पास जाता है तो कभी दादा के पास. सुनील की मां बेहोश पड़ी है और उसकी बीवी पूनम की चीखें अब सिसकियों में तब्दील हो चुकी हैं.

राधेश्याम के घर पहुंचे बस्ती के लोग तमाम चर्चाओं के बाद इस सवाल पर अटके हैं कि सुनील की मिट्टी का क्या होगा. इसी बीच एक किशोर किसी से फ़ोन पर बात करने के बाद बताता है कि मिट्टी लाने के लिए गाड़ी का इंतजाम हो जाएगा लेकिन इसके लिए 25 हजार देने होंगे. बेटे को आख़िरी बार देख पाने की यह क़ीमत सुनकर राधेश्याम की हैसियत जवाब दे जाती है, पूनम की आँखों की वीरानी और गहरा गई.

दिन ढल चुका है, अँधेरा बढ़ता जा रहा है, घर के साथ राधेश्याम उनकी पत्नी और सबसे ज्यादा सुनील की बेवा के ज़ेहन में भी.

 

16 अप्रैल

सुबह अख़बारों में सुनील की मौत और लॉकडाउन में उसके परिवार की दुश्वारियों की ख़बर आई तो हाक़िमों में भी हलचल हुई. दोपहर के वक़्त एसडीएम और तहसीलदार मातहतों के साथ डुमरी खुर्द में राधेश्याम के घर पहुँचे. अफ़सरों ने ग्राम प्रधान से राधेश्याम के परिवार को राशन और कुछ रक़म दिलाने की ताकीद की. हालांकि, सुनील की मिट्टी अपनी मिट्टी तक कैसे पहुंचे, उसके घर वालों के लिए अब भी यह बड़ा सवाल बना हुआ था.

एसडीएम ने सुनील के ठेकेदार से बात करने के बाद दिल्ली के पंजाबी बाग में रहने वाले सुनील के मकान मालिक जुनेजा से भी संपर्क किया. जुनेजा ने बताया कि शव फिलहाल पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उन्होंने सुनील के परिवार की हामी पर दिल्ली में ही अंतिम संस्कार कराने का भरोसा दिया. अफ़सरों ने राधेश्याम और सुनील की पत्नी के सामने सुनील के मकान मालिक का प्रस्ताव बढ़ा दिया. साथ ही सरकारी इमदाद के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट की ज़रूरत बताई.

क़ायदा बताकर अफ़सर लौट गए. और अफ़सरों के जाने के साथ पास-पड़ोस के लोग भी. सुनील की मिट्टी और उसके अंतिम संस्कार की उधेड़बुन में डूबे राधेश्याम और उनका कुनबा अब घर में अकेले रह गए. सुनील की बीवी के सामने एक तरफ़ तो पति को आख़िरी बार देख पाने, उससे लिपट कर रो लेने की तड़प थी, दूसरी तरफ़ उनके चार बच्चों की परवरिश और बुजुर्ग सास-ससुर की दो वक्त की रोटी के इंतज़ाम की फ़िक्र भी थी. इसी द्वंद्व में एक और रात गुज़र गई.

 

17 अप्रैल

प्रधान ने राधेश्याम को अनाज तो दिला दिया लेकिन घर का चूल्हा नहीं जला. पड़ोसियों ने बच्चों के खाने का इंतज़ाम कर दिया. अफ़सरों की आमद ने एक राह तो दिखाई लेकिन बेबसी का दर्द कम नहीं हुआ.

एसडीएम और तहसीलदार आज फिर इलाक़े में लॉकडाउन का हाल देखने निकले तो राधेश्याम के दरवाज़े पर जा पहुंचे. अफ़सरों ने बताया कि ठेकेदार नवल ने राधेश्याम के खाते में मदद के 10 हजार रुपये भेजे हैं.

अब तक सुनील की पत्नी अपनी बेकसी पर सब्र की चादर डाल चुकी थी. उसने अफसरों से दिल्ली में ही सरकारी ख़र्च पर अंतिम क्रिया करा देने की गुज़ारिश की. एसडीएम ने दिल्ली पश्चिम के एसीपी को फ़ोन करके ग़रीब परिवार की दुश्वारियां बताईं और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भिजवाने की सिफ़ारिश की.

सुनील की पत्नी ने पति की मिट्टी की अंतिम क्रिया कराने के लिए अफ़सरों को अर्जी दे दी है. गाँव में सुनील का पुतला बनाकर अंतिम क्रिया की रस्म पूरी की जाएगी… और फिर वही ज़िन्दगी की कश्मकश.

 

आवरण फ़ोटो | प्रभात की इरोज़न श्रृंखला से

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