कला | पिकासो की नक़ल की सच्चाई
‘मदर एंड चाइल्ड’ 1961 का लाइनोकट प्रिंट था और इसे मैंने उस ड्राइंग की मदद से बनाया था, जो 1955 में अपनी स्केच बुक में बनाई थी. यह बिल्ली और उसके बच्चे की छवि है. यह क़िस्सा 1963 का है, जब फ़ुलब्राइट स्कॉलरशिप के लिए इंटरव्यू देने मैं विशेषज्ञों की एक जूरी के सामने था.
जूरी के एक सदस्य ने यह लाइनोकट देखकर टिप्पणी की कि यह तो पिकासो के काम की ‘नक़ल’ है. यह सुनकर मैं बहुत झुंझलाया. तो मैंने उनसे कहा, “सचमुच यह एक तरह की नक़ल ही है मगर पिकासो की नहीं. प्रिंट के लिहाज़ कुछ मामूली मगर ज़रूरी बदलावों को अगर छोड़ दें तो यह सौराष्ट्र के एक गाँव में एक झोपड़ी की दीवार पर बने रेखाचित्र की हूबहू प्रतिकृति है, जो गाँव की एक अनपढ़ महिला ने बनाया था. किसान परिवार की उस महिला के लिए पिकासो, फ़्रांस, अफ़्रीका या क्यूबिज़्म जैसे शब्दों का कोई अर्थ नहीं. मुझे भला लगा कि आपको इस चित्र में ऐसी कोई समानता दिखाई दी मगर अफ़सोस इस बात का है कि अपनी ही बहुतेरी लोक परंपराओं के बारे में आपको कोई जानकारी नहीं है क्योंकि आपकी शेल्फ़ की किताबों में उनके बारे में कुछ भी लिखा हुआ नहीं है.”
(वेस्वो से एक इंटरव्यू में)
फ़ोटो | ज्योति भट्ट का लाइनोकट ‘मदर एण्ड चाइल्ड’, 1961.
चित्रकार और प्रिंटमेकर ज्योति भट्ट अपने आधुनिकतावादी काम के साथ ही गुजरात में ग्राम्य संस्कृति के फ़ोटोग्राफ़िक डॉक्युमेंटेशन के लिए भी पहचाने जाते हैं. बड़ौदा में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से पेंटिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने बनस्थली विद्यापीठ में फ़्रेस्को और भित्ति चित्रकला का अध्ययन किया. साठ के दशक की शुरुआत में नेपल्स और न्यूयॉर्क में रहकर अध्ययन किया और बाद में बड़ौदा के विश्वविद्यालय में लंबे समय तक पढ़ाते रहे है.
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