अंबरांतः संवेदना जगाती अनंत की कलाकृतियां

अंबरांत ..# अर्थात क्षितिज . क्षितिज – एक बिंदु, ऐसा स्थान, जहां पर धरती और अम्बर मिलते हुए प्रतीत होते है, किन्तु जिसकी कोई सीमा नहीं होती या यूं कह सकते हैं कि जो अनंत हो..
कल्पना और यथार्थ दोनों ही जहां पर एक होते हुए प्रतीत होते हैं, वही क्षितिज, वही अंबरांत ही तो होती है, कला. है न!

और यही ख़ासियत है अनंत के सृजन में, जहां कल्पना और यथार्थ एक दूसरे का आलिंगन करते हैं.
भागती-दौड़ती और हांफती हुई ज़िंदगी….कितना कुछ तो छूट जाता है.
और हम मनुष्य सिर्फ़ जीवन जीने के साधन जुटाने में व्यस्त होकर अपना मूल्यवान जीवन गंवा बैठते हैं. धीमे-धीमे व्यक्ति, समाज, रिश्ते और स्वयं के प्रति संवेदनशीलता को किसी गहरे गड्ढे में फेंककर उस पर भौतिक संसाधन रूपी कचरा इकट्ठा करते जाते हैं. इस तरह दम तोड़ती हुई संवेदनशीलता को रेस्क्यू करती हुई दिखाई देती हैं अनंत की तस्वीरें. एक सृजन जो हमें झकझोरता है गहरे अंधकार, अज्ञानता, नींद से जगाता है, हमसे बातें करता है.

अपने सृजन के गंभीर और सारगर्भित होते हुए भी अनंत उसे सरल-सहज रखते है, जो आसान नहीं है. सरलता ही हमारे समय में सबसे दुर्लभ है. बेहतर मनुष्य होने के लिए जरूरी है जागृत संवेदना. और इन्हीं संवेदनाओं को जगाती हुई कलाकृतियों की प्रदर्शनी है – अंबरांत..#

इस प्रदर्शनी में शामिल कलाकृतियां अपने आप में एक पूरी कहानी की तरह हैं और देखने वाले को बरबस ही अपनी ओर खींचती हैं. ‘ज़ीरो आवर्स’ शीर्षक के ऐचिंग प्रिंट में संसद का भवन लाल दिखाया गया है और बाक़ी हिस्सा गहरा काला. लाल रंग अग्नि के प्रतीक के रूप में प्रयोग में लाया गया है, संसद भवन में विनय और शालीनता से देश की जनता की समस्याओं पर ही अर्थपूर्ण चर्चा और निराकरण की उम्मीद की जाती है लेकिन तमाम बार हालात इसके एकदम उलट देखे गए हैं, क्रोध और हिंसा आग के गोले की तरह जनता पर बरसकर उन्हें झुलसा रहे हैं. वहीं ‘सीक्रेट ऑफ सोसाइटी’ नाम के चित्र वह हमारे दौर के जनमानस और ज़रूरी मुद्दों से भटकाव पर कटाक्ष करते हुए हमें जागृत करने का जतन करते हैं.

उनके शिल्प में पशु-पक्षी ठीक उन पशुओं की तरह नहीं दिखते, जैसे कि दरअसल वे होते हैं. उनके रूपाकर या भाव-भंगिमा से कई बार मनुष्य या उसके चरित्र की पहचान झलकती मिलती है. ग़ौर करेंगे तो आप महसूस ज़रूर कर सकेंगे. उनकी कला का सार जानना चाहें तो ख़ुद उनसे बेहतर कौन कह पाएगा,‘मेरी हमेशा कोशिश रही है कि मेरी कला क़ुदरत के क़रीब हो और इसे महसूस करने के लिए थोड़ा क़ुदरती और वैसा ही अनगढ़ होने भर से काम चल जाएगा.’

(इंदौर की देवलालीकर कला वीथिका में अनंत की कलाकृतियों की प्रदर्शनी चल रही है. उद्घाटन मशहूर चित्रकार अनीस नियाज़ी ने किया.)


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