कैफ़ियात | कैफ़ी आज़मी की तीन नज़्में

कैफ़ी आज़मी की नज़्मों-ग़ज़लों का एक संग्रह है – कैफ़ियात. बहुत पहले इसी से एक ऑडियो-बुक बनी थी, जिसमें कैफ़ी आज़मी ने अपनी नज़्में ख़ुद पढ़ी हैं. उनको सुनते हुए नज़्मों के अर्थ यकायक बड़े और व्यापक मालूम होने लगते हैं. कैफ़ियात से चुनी हुई तीन नज़्में,

 

काफ़िला तो चले

ख़ारो-ख़स तो उठें, रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया, काफ़िला तो चले

चाँद-सूरज बुजुर्गों के नक़्शे-क़दम
ख़ैर बुझने दो इनको, हवा तो चले

हाकिमे-शहर, ये भी कोई शहर है
मस्जिदें बन्द हैं, मयकदा तो चले

इसको मज़हब कहो या सियासत कहो
ख़ुदकुशी का हुनर तुम सिखा तो चले

इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा
आज ईंटों की हुरमत बचा तो चले

बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें
मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले

 

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी.

ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी,
पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने,
इन मकानों को ख़बर है न, मकीनों को ख़बर
उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हमने.

हाथ ढलते गए साँचों में तो थकते कैसे,
नक़्श के बाद नए नक़्श निखारे हमने,
की ये दीवार बुलन्द, और बुलन्द, और बुलन्द,
बाम-ओ-दर और ज़रा और निखारे हमने.

आँधियाँ तोड़ लिया करतीं थीं शामों की लौएँ,
जड़ दिए इस लिए बिजली के सितारे हमने,
बन गया कस्र तो पहरे पे कोई बैठ गया,
सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश-ए-तामीर लिए.

अपनी नस-नस में लिए मेहनत-ए-पैहम की थकन,
बन्द आँखों में इसी कस्र की तस्वीर लिए,
दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक,
रात आँखों में खटकती है सियाह तीर लिए.

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी.

मकीनों – मकानों में रहने वाले | बाम-ओ-दर – छत और दरवाज़े | कस्र – महल |  शोरिश – हंगामा |
तामीर – रचना/ सृजन  | मेहनत-ए-पैहम – लगातार मेहनत | सियाह  – काला, अंधेरा

इब्ने-मरियम

तुम ख़ुदा हो
ख़ुदा के बेटे हो
या फ़क़त अम्न के पयंबर हो
या किसी का हसीं तख़य्युल हो
जो भी हो मुझ को अच्छे लगते हो
जो भी हो मुझ को सच्चे लगते हो.

इस सितारे में जिस में सदियों से
झूठ और किज़्ब का अंधेरा है
इस सितारे में जिस को हर रुख़ से
रंगती सरहदों ने घेरा है.

इस सितारे में, न जिस की आबादी
अम्न बोती है जंग काटती है.

रात पीती है नूर मुखड़ों का
सुबह सीनों का ख़ून चाटती है.

तुम न होते तो जाने क्या होता

तुम न होते तो इस सितारे में
देवता राक्षस ग़ुलाम इमाम
पारसा रिंद रहबर रहज़न
बिरहमन शैख़ पादरी भिक्षु
सभी होते मगर हमारे लिये
कौन चढ़ता ख़ुशी से सूली पर.

झोंपड़ों में घिरा ये वीराना
मछलियाँ दिन में सूखती हैं जहाँ
बिल्लियाँ दूर बैठी रहती हैं
और ख़ारिशज़दा से कुछ कुत्ते
लेटे रहते हैं बे-नियाज़ाना
दम मरोड़े के कोई सर कुचले
काटना क्या ये भौंकते भी नहीं.

और जब वो दहकता अंगारा
छन से सागर में डूब जाता है
तीरगी ओढ़ लेती है दुनिया
कश्तियाँ कुछ किनारे आती हैं
भांग गांजा चरस शराब अफ़ीम
जो भी लायें जहाँ से भी लायें
दौड़ते हैं इधर से कुछ साये
और सब कुछ उतार लाते हैं.

गाड़ी जाती है अदल की मीज़ान
जिस का हिस्सा उसी को मिलता है.

तुम यहाँ क्यों खड़े हो मुद्दत से

ये तुम्हारी थकी-थकी भेड़ें
रात जिन को ज़मीं के सीने पर
सुबह होते उँडेल देती है
मंडियों दफ़्तरों मिलों की तरफ़
हाँक देती ढकेल देती है
रास्ते में ये रुक नहीं सकतीं
तोड़ के घुटने झुक नहीं सकतीं.

इन से तुम क्या तवक़्क़ो रखते हो
भेड़िया इन के साथ चलता है.

तकते रहते हो उस सड़क की तरफ़
दफ़्न जिस में कई कहानियाँ हैं
दफ़्न जिस में कई जवानियाँ हैं
जिस पे इक साथ भागी फिरती हैं
ख़ाली जेबें भी और तिजोरियाँ भी.

जाने किस का है इंतज़ार तुम्हें

मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ
जिस को कोड़ों की छाँव में दुनिया
बेचती भी ख़रीदती भी थी.

मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ
जिस को खेतों में ऐसे बाँधा था
जैसे मैं उन का एक हिस्सा था
खेत बिकते तो मैं भी बिकता था.

मुझ को देखो के मैं वही तो हूँ
कुछ मशीनें बनाई जब मैंने
उन मशीनों के मालिकों ने मुझे
बे-झिझक उनमें ऐसे झौंक दिया
जैसे मैं कुछ नहीं हूँ ईंधन हूँ.

मुझ को देखो के मैं थका हारा
फिर रहा हूँ युगों से आवारा.

तुम यहाँ से हटो तो आज की रात
सो रहूँ मैं इसी चबूतरे पर

तुम यहाँ से हटो ख़ुदा के लिये

जाओ वो विएतनाम के जंगल
उस के मस्लूब शहर जख़्मी गाँव
जिन को इंजील पढ़ने वालों ने
रौंद डाला है फूँक डाला है
जाने कब से पुकारते हैं तुम्हें.

जाओ इक बार फिर हमारे लिये
तुम को चढ़ना पड़ेगा सूली पर.

 इब्न – बेटा, मरियम का बेटा यानी ईसा मसीह | फ़क़त – सिर्फ़ | अम्न – शांति | पयंबर – अवतार |  तख़य्युल – सुंदर कल्पना | किज़्ब –  झूठ/ झूठा पारसा | पवित्र  | रिंद- शराबी| रहबर – रास्ता दिखाने वाला | रहज़न – लुटेरा | बे-नियाज़ाना – निस्पृह/ निश्चिंत | अदल –  न्याय | तवक़्क़ो –  उम्मीद  मस्लूब –  जिसे सूली पर चढ़ाया गया हो |
इंजील – बाइबिल 

 

 

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