भरत व्यास | हिंदी की ताक़त पर भरोसा करने वाला गीतकार

  • 6:14 pm
  • 6 January 2021

हिंदी सिनेमा में बीती सदी का पचास और साठ का दशक गीत-संगीत का स्वर्णिम दौर रहा है. इस दौर में एक से एक नायाब गीतकार आए, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट गीतों से हिंदी की फिल्मों को समृद्ध किया, साथ ही श्रोताओं की रूचियों का परिष्कार भी. भरत व्यास ऐसे ही बेमिसाल गीतकार थे.

ऐ मालिक तेरे बंदे हम‘, ‘ज्योत से ज्योत जगाते चलो’, ‘निर्बल से लड़ाई बलवान की..’, ‘ये कौन चित्रकार है’ जैसे अर्थपूर्ण और भावप्रवण गीत रचे. सफलता का नया इतिहास बनाया. उन दिनों रंगमंच से लेकर फ़िल्मों तक उर्दू ज़बान का बोलबाला था. फिर भी प्रदीप, पं.नरेन्द्र शर्मा और शैलेन्द्र थे, जिन्हें हिंदी और हिंदी ज़बान की ताक़त पर एतबार था. भरत व्यास भी इसी परंपरा के थे.

तीन दशक लंबे कॅरिअर में उन्होंने अपने गीतों में भाषा से कभी समझौता नहीं किया. फ़िल्मी दुनिया के लोगों को बताया कि हिंदी में भी उत्कृष्ट गीत रचे जा सकते हैं. और ये गीत भी श्रोताओं को उतने ही पसंद आएंगे, जितने कि उर्दू या हिंदुस्तानी ज़बान के गीत. 1943 से 1960 के दौर में भरत व्यास ने जिन गीतों का सृजन किया, उनकी मिठास पर सुनने वाले अब भी बलिहारी जाते हैं.

भरत व्यास की शुरूआती तालीम चूरू में हुई. कविता-गीत लेखन, नाटक और अभिनय से उनका लगाव बहुत कम उम्र का था. 17-18 साल की उम्र में कविता लिखना शुरु कर दिया. तुकबंदी और फ़िल्मी गानों की पैरोडी बनाने में दक्ष हो गए. साथ ही नाटकों में भी शरीक होने लगे. बीकानेर के डूंगर कॉलेज पढ़ने गए तो कविता लिखने और अभिनय का सिलसिला वहाँ भी जारी रहा.

पढ़ाई पूरी करके नौकरी की तलाश में कलकत्ता पहुंच गए और पारसी थिएटर के मशहूर ग्रुप ‘अल्फ्रेड थिएटर’ से जुड़ गए. इस ग्रुप के लिए उन्होंने ‘रंगीला मारवाड़’, ‘रामू चनणा’, ‘ढोला मारवाड़’ और ‘मोरध्वज’ आदि नाटक लिखे. ‘मोरध्वज’ में तो उन्होंने राजा मोरध्वज की भूमिका भी की. दूसरी आलमी जंग शुरू हुई, तो बीकानेर लौट आए.

कुछ अर्से बाद बंबई गए, जहां उनके भाई अभिनेता और फ़िल्म निर्देशक बी.एम. व्यास पहले से ही मौजूद थे. ज़ाहिर है काम के शुरुआती मौक़े उन्हें भाई की फ़िल्मों में मिले. उन्होंने कुछ फिल्मों में पटकथा लिखीं. सन् 1943 में आई फ़िल्म ‘दुहाई’ से वे गीतकार बन गए. उनका लिखा पहला गीत था, ‘आओ वीरो हिल मिल गायें वंदे मातरम’. इस फ़िल्म में भरत व्यास ने नौ गीत लिखे.

बाद में वे कुछ समय तक वह ‘शालीमार’ फ़िल्म कंपनी में रहे. जहां जोश मलीहाबादी, सागर निजामी, कृश्न चंदर और रामानंद सागर जैसे गुणीजन पहले से मौजूद थे. भरत व्यास ने शालीमार की कई फ़िल्मों ‘प्रेम संगीत’, ‘मन की जीत’, ‘पृथ्वीराज संयोगिता’ और ‘मीराबाई’ आदि के लिए गीत लिखे. ‘पृथ्वीराज संयोगिता’ में उन्होंने ‘चंदबरदाई’ का रोल भी निभाया. 1944 में आई फ़िल्म ‘मन की जीत’ में उन्होंने दो गीत ‘ए चांद ना इतराना…’ और ‘आते हैं मेरे सजन…’ लिखे. दोनों ही गीत खूब कामयाब हुए.

गीतों के मामले में उन्हें उम्मीद से कहीं ज्यादा क़ामयाबी मिली. उनकी क़लम से निकले गीतों की आभा अब भी बनी हुई है – ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ (दो आंखें बारह हाथ), ‘जरा सामने तो आओ छलिए’ (जनम जनम के फेरे), ‘आधा है चंद्रमा रात आधी’ (नवरंग)’, ‘आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं’ (रानी रूपमती)’, ‘सारंगा तेरी याद में नैन हुए बेचैन’ (सारंगा)’, ‘दिल का खिलौने हाय टूट गया’ (गूंज उठी शहनाई) और ऐसे ही न जाने कितने ऐसे गीत हैं, जो आज भी मुहब्बत औऱ एहतराम से गुनगुनाए जाते हैं.

फ़िल्म की सिचुएशन और मांग के हिसाब से उन्होंने न सिर्फ़ हिंदुस्तानी ज़बान में गीत लिखे बल्कि जब मौका लगा तो शुद्ध हिंदी में भी गीत रचे. इन गीतों में उनकी काव्यात्मक अभिव्यक्ति इतनी शानदार होती कि निर्देशक या संगीतकार भी उनसे ‘न’ नहीं कह पाते. कई ऐसे फ़िल्मी गीत हैं, जो साहित्यिक दृष्टि से कमतर नहीं हैं. ‘तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धरा की धूल हूं’, ‘श्यामल श्यामल बरन कोमल कोमल चरण’ (नवरंग), ‘बादलों बरसो नयन की कोर से’ (संपूर्ण रामायण), ‘जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है’ (सम्राट पृथ्वीराज चौहान), ‘आया ऋतुराज बसंत है’ (स्त्री) और ‘डर लागे गरजे बदरिया’ (राम राज्य) जैसे गीत बानगी भर हैं.

फ़िल्मी गीतों के लिए हिंदी भाषा को ज़रिया बनाने के बारे में एक इंटरव्यू में उनकी कैफ़ियत थी, ‘‘मेरा विश्वास है कि हिंदी में हर तरह के भाव या रस को प्रकट करने का पूरा सामर्थ्य है. जहां तक क्लिष्ट भाषा की बात है, यदि ये गीत जनता की समझ में नहीं आते तो फिर भला इतना लोकप्रिय कैसे हो गए?’’ उनके गीतों की कामयाबी ने उनकी बात को बार-बार सही साबित किया.

संगीत की उनकी समझ का फ़ायदा यह होता कि गीत लिखते हुए चुटकियों में वह उसकी तर्ज भी बना देते थे. फ़िल्म ‘जनम-जनम के फेरे’ का एक गीत ‘जरा सामने तो आओ छलिए..’ अपने ज़माने में बहुत हिट हुआ. इस गीत के बनने के पीछे एक दिल दुखाने वाला किस्सा है. भरत व्यास ने यह गाना अपने बेटे के बिछड़ने के गम में लिखा था. उनका बेटा नाराज़ हो कर घर से चला गया था. इस वाकये और अपने जज़्बात को उन्होंने गीत में ढाल दिया. गीत बाद में फ़िल्म में इस्तेमाल हुआ.

‘दो आंखें बारह हाथ’ का सदाबहार गीत ‘ए मालिक तेरे बंदे हम’ की रचना के बारे में व्ही. शांताराम ने अपनी आत्मकथा में विस्तार से लिखा है. संगीतकार वसंत देसाई और गीतकार भरत व्यास बंबई से उनके पास कोल्हापुर पहुंचे, तो उन्होंने बताया कि वे ऐसा प्रार्थना गीत चाहते हैं, जो सभी मजहब के लोगों को अपना लगे. अगले दिन भरत व्यास गीत का मुखड़ा लिख कर लाए, तो उन्होंने उसे सुनकर तपाक से कहा, ‘‘वाह भरतजी वाह, क्या कहने. आपका यह गीत अमर होने वाला है.’’ व्ही. शांताराम की यह बात एकदम सही साबित हुई. आज भी यह गीत देश के कई स्कूलों में प्रार्थना सभा के दौरान गाया जाता है. सभी धर्मों के लोगों को यह गीत अपना सा लगता है. गीत बच्चों से लेकर बड़ों तक में एक नई उम्मीद, नया हौसला जगाता है.

पचास के दशक में उन्होंने बिमल रॉय, व्ही. शांताराम और विजय भट्ट जैसे चोटी के निर्देशकों के संग काम किया. ख़ासतौर पर व्ही. शांताराम और भरत व्यास की जोड़ी सफलता की गारंटी मानी गई. उन्होंने कई दिग्गज संगीतकारों के लिए गीत लिखे, मगर उनकी जोड़ी बसंत देसाई और एस. एन. त्रिपाठी के साथ ख़ूब जमी.

भरत व्यास ने ‘गुलामी’, ‘पृथ्वीराज संयोगिता’ और ‘आगे बढ़ो’ फ़िल्मों में अभिनय किया. वहीं कुछ फ़िल्मों ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’, ‘ढोला मरवड़’, ‘रामू चनड़ा’ की कथा, पटकथा और संवाद भी लिखे. ‘रंगीला राजस्थान’, ‘ढोला मरवड़’ का निर्देशन किया और ‘स्कूल मास्टर’ में संगीत दिया, मगर पहचान उनको गानों से ही मिली. सौ से ज्यादा फ़िल्मों में उनके लिखे क़रीब दो हज़ार गाने हैं. प्रणय-निवेदन, विरह-वेदना, संयोग-वियोग, भक्ति व दर्शन जैसे भावों को उन्होंने बहुत सुंदर तरीके से अपने गीतों में पिरोया. हिंदी के साथ ही उन्होंने राजस्थानी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे.

मंच के कवि के तौर पर भी उन्हें देश भर में विशिष्ट पहचान मिली. समय मिलने पर वे कवि सम्मलनों में शिरकत करते थे. ‘केसरिया पगड़ी’, ‘दो महल’, ‘बंगाल का दुष्काल’, ‘राणा प्रताप के पुत्रों से’, ‘अहमदनगर का दुर्ग’, ‘मारवाड़ का ऊंट सुजान’ उनकी चर्चित कविताएं हैं. ‘ऊंट सुजान’, ‘मरुधरा’, ‘राष्ट्रकथा’, ‘रिमझिम’, ‘आत्म पुकार’ और ‘धूप चांदनी’ उनके प्रमुख काव्य संग्रह. ‘तेरे सुर मेरे गीत’ और ‘गीत भरा संसार’ उनके गीत संग्रह और ‘रंगीला मारवाड़’, ढोला मारू’ एवं ‘तीन्यू एकै ढाल’ नाटक हैं.

सम्बंधित

असद भोपाली | वो जब याद आए बहुत याद आए

शैलेंद्र | राजकपूर के पुश्किन और आम आदमी की आवाज़


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.