संस्मरण | अनजान को चांस दिलाने के लिए दो गाने छोड़े थे योगेश ने

  • 8:31 pm
  • 29 May 2020

ढाई-तीन हफ़्ते पहले गायक मित्र सत्येन्द्र त्रिपाठी से फ़ोन पर देर शाम बात हुई थी. वह योगेश जी के साथ साये की तरह रहते थे. एक बेटे की तरह. हमारी बातचीत का मुद्दा कुछ और था, लेकिन ऐसा संभव ही नहीं था कि सत्येन्द्र से बात हो और योगेश जी का ज़िक़्र न आए.मैंने योगेश जी की सेहत के बारे में पूछा और बताया कि बहुत दिन से उनसे बात नहीं हुई है, उनसे बात करने का बहुत मन है. इस पर सत्येन्द्र ने कहा- तो कर लो न!

तब तक रात के नौ बज चुके थे. मैंने उस वक़्त बात करना मुनासिब नहीं समझा. सोचा, सो न गए हों, बेहतर होगा कल कर लूं. लेकिन कल कहां आता है!

अभी कुछ देर पहले योगेश जी के जाने की सूचना मिली. मन बैठ गया है. उनके साथ बिताया हर लम्हा, उनसे की गई हर बात याद आ रही है. उनकी सादगी याद आ रही है, उनका स्नेह याद आ रहा है, सड़क पर मुझे देखकर उनका आवाज़ देकर बुला लेना याद आ रहा है.

मुंबई के गोरेगांव इलाक़े की जिस सोसायटी में योगेश जी घर है, एक दिन मैं उसके नीचे सड़क पर से गुज़र रहा था, तो योगेश जी भी किसी काम से नीचे आए हुए थे. उन्होंने मुझे देखा और आवाज़ देकर रोक लिया…बड़ी बात यह कि तब तक मुझे उनसे मिले ज़्यादा वक़्त भी नहीं हुआ था और हम दो बार ही मिले थे.

योगेश जी से मेरी पहली मुलाक़ात साल 2013 में हुई थी, जब मैं ‘नई दुनिया’ अख़बार के लिए उनसे एक लंबे साक्षात्कार के सिलसिले में उनके घर पर मिला था. पहली मुलाक़ात में ही उन्होंने अपनी निजी तस्वीरों में से कुछेक मुझे बेखटके सौंप दी थीं, ताकि मैं उन्हें स्कैन करके अपने लेख के लिए इस्तेमाल कर सकूं. इनमें से दो-एक तस्वीरें भारतीय सिनेमा इतिहास के कुछ अनछुये पलों की भी थीं. इस पहली ही मुलाक़ात में ही योगेश जी से एक अलग-सा, अपनत्व भरा रिश्ता बन गया था. वह इन्सान ही ऐसे थे. बेहद विनम्र और स्नेही.

उनका पूरा नाम योगेश गौड़ था. मूलतः लखनऊ के रहने वाले थे. भारतीय सिनेमा के उस दौर का एक अभिन्न अंग, जब हिंदी फिल्मों में शैलेन्द्र, अनजान, गुलशन बावरा, नक़्श लायलपुरी और गुलज़ार जैसे नाम अपनी कलम के जादू से माधुर्य भर रहे थे. वैसे गीतों के चर्चित होने पर भी गीतकार का नाम अमूमन पीछे छूटा रह जाता है. ऐसे में योगेश जी का नाम अगर जाना-पहचाना नहीं लग रहा हो, तो एकबारगी उनके लिखे कुछ चुनींदा गीतों की सूची पर नज़र डाल लेते हैं….

कहीं दूर जब दिन ढल जाए (आनन्द), रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन (मंज़िल), ज़िंदगी, कैसी है पहेली हाय (आनन्द), रजनीगंधा फूल तुम्हारे, महके मन के आंगन में (रजनीगंधा), आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन (मिली), कई बार यूं भी देखा है, ये जो मन की सीमारेखा है (रजनीगंधा), कहां तक ये मन को अंधेरे छलेंगे (बातों बातों में), बड़ी सूनी-सूनी है ज़िंदगी, ये ज़िंदगी (मिली), न बोले तुम न मैंने कुछ कहा (बातों बातों में), मैंने कहा फूलों से, हंसो तो वो खिलखिला के हंस दिये (मिली), न जाने क्यूं होता है ये ज़िंदगी के साथ (छोटी-सी बात)..!!

ये वो गीत हैं जो काल की सीमाओं से परे हैं; जो इतने सरल हैं कि ज़बान और दिल से उतरने का नाम नहीं लेते. और इतने ही गहरे भी हैं कि आपको ज़िंदगी का हिस्सा-सा लगते हैं. मैं अक्सर सोचता था कि कोई भी इन्सान ऐसा कैसे लिख पाता है जो अमर हो जाए और पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखे. इसका जवाब मुझे योगेश जी की सहजता, सरलता और विनम्रता में मिल गया था. आपका मन यदि सादा व सरल हो तो फिर आपसे लिखा भी बिना किसी लाग-लपेट के जाता है और ऐसे लिखे हुए की ख़ुशबू दूसरों के मन में हमेशा के लिये रची-बसी रह जाती है.

योग्यता आपका नाम बड़ा करती है और विनम्रता आपका क़द बड़ा कर देती है. आज योगेश जी चले गए हैं, तो उनसे जुड़ी हर बात उमड़-घुमड़कर मन के आसमान पर छा रही है. मुझे याद है, एक बार मैंने शाम को उन्हें यूं ही फोन किया था. तो उन्होंने बताया कि किसी संगीतकार से मिलने वह चारकोप आ रहे हैं. चूंकि मैं भी चारकोप में रहता हूं, तो तय हुआ कि वहां पहुंचकर वह मुझे बताएंगे और मैं उनसे मिलने चला आऊंगा. लेकिन उनका फोन नहीं आया. मैंने भी सोचा कि बुजुर्ग इन्सान हैं, भूल गए होंगे. अचानक तीन दिन बाद फ़ोन की घंटी बजी तो उधर योगेश जी थे. बोले- “माफ़ी चाहता हूं अजय, तुम्हें उस दिन फ़ोन करने की बात दिमाग़ से ही निकल गई.”

इतना सुनते ही मेरे मन में उनके लिये सम्मान और गहरा हो गया. होना ही था. मैं उस शहर में रहता हूं, जहां गली-कूचे का कलाकार भी ख़ाली होने के बावजूद व्यस्तता का दिखावा करने का कोई मौक़ा नहीं चूकता, और कहीं ग़लती से दो-एक बार इधर-उधर नाम आ जाए तो फिर आपके मैसेज तक का जवाब देने में हेठी महसूस करता है.

गीतकार होने के साथ योगेश जी कमाल के क़िस्सागो थे. अपनी ज़िन्दगी से जुड़े क़िस्सों को बेहद मज़ेदार तरीके से, मज़े ले-लेकर सुनाते थे. उन्होंने प्रेम विवाह किया था. तब उन्हें बंबई में आए ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ था. जवानी के दिन थे, प्रेम कर बैठे. उन दिनों ओशिवारा के राममंदिर इलाक़े में कहीं रहते थे. गीतकार गुलशन बावरा और अनजान उनके घनिष्ठ मित्रों में से थे और सब आस-पास ही रहा करते थे. जिस लड़की से प्यार हुआ, वह एक सिख परिवार की थी. लड़की वालों को मंज़ूर नहीं था कि एक ऐसे इन्सान से लड़की ब्याह दी जाए, जिसके काम-धंधे और कमाई का कुछ तय ही नहीं है. तो योगेश जी अपनी होने वाली पत्नी को घर से भगा लाए और साथ रहने लगे. और उधर तमाशा यह हुआ कि लड़की वाले तलवारें लेकर दोनों को तलाशने निकल पड़े. गुलशन बावरा को यह बात पता चली तो आए दोस्त के पास भागते हुए और बोले- “भई योगेश, कहीं और निकल लो, वरना जान के लाले पड़ जाएंगे.” हालांकि, वक़्त बीतने के साथ यह रिश्ता स्वीकार कर लिया गया, लेकिन उससे पहले योगेश जी को पत्नी के साथ कहां-कहां जाकर छुपते नहीं फिरना पड़ा.

योगेश जी दिल के भी बहुत बड़े थे; अपने दोस्तों के सच्चे दोस्त. एक क़िस्सा और उन्होंने साझा किया था मेरे साथ. उन्हें गीतकार के तौर पर पहला मौका संगीतकार रॉबिन बनर्जी ने दिया था, फ़िल्म ‘सखी रॉबिन’ के लिए. रॉबिन दा के लिए फिर उन्होंने कई गीत लिखे. तो, रॉबिन दा से उनके अच्छे संबंध हो गए थे. उन्हीं दिनों उनकी मुलाक़ात लालजी पांडेय नामक अपने से उम्र में कुछ साल बड़े एक युवक से हुई, जो जल्दी ही दोस्ती में बदल गई. लालजी भी गीतकार थे और किसी अच्छे मौके की तलाश में थे. उन दिनों रॉबिन दा की एक फ़िल्म में योगेश जी को चार गीत लिखने का अनुबंध मिला था. कुल मेहनताना तय हुआ दो हज़ार रुपए. उधर, लालजी भी काफी क़ाबिल थे, लेकिन उन्हें तब तक ज़्यादा मौका नहीं मिला था कुछ कर दिखाने का. तो योगेश अपने इस दोस्त को रॉबिन दा के पास ले गए और बोले, “दादा, दो गाने इनसे लिखवा लो, बाकी दो मैं लिख दूंगा.” रॉबिन दा हैरान थे कि यह कैसा बंदा है जो अपने मेहनताने में हिस्सा डाल रहा है. उन्होंने पहले तो ना-नुकर की, लेकिन योगेश जी की ज़िद के आगे हार गए. यही लालजी पांडेय बाद में गीतकार अनजान के तौर पर हिन्दी फ़िल्मों में एक बड़ा नाम बने.

योगेश जी 77 बरस की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहकर गए हैं. लेकिन यह लखनवी गीतकार इस उम्र में भी जीवंतता, ऊर्जा और लगातार कुछ करते रहने के जज़्बे से भरा हुआ था. एक ऐसी शख़्सियत कि जिनसे मिलने के बाद आप उनसे प्रेरित हुए बिना नहीं रह सकते थे.


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