बकस्वाहा रॉक पेंटिंग्ज़ के बारे में हाईकोर्ट ने रिपोर्ट मांगी

बांदा | छतरपुर में जिस बकस्वाहा जंगल को हीरा खनन के लिए पचास साल के पट्टे पर दे दिया गया, वहाँ मानव सभ्यता के विकास की कितनी ही कहानियाँ रॉक पेंटिंग की शक्ल में हज़ारों सालों से महफ़ूज़ हैं. रॉक पेंटिग्ज़ को नुकसान और उनके वजूद के ख़तरे के बारे में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सूबे के सांस्कृतिक मंत्रालय, खनिज मंत्रालय तथा पुरातत्व विभाग से जवाब मांगा है.

नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के अध्यक्ष और पर्यावरण संरक्षण के पैरोकार डॉ. पीजी नाज पांडेय ने हाल ही में हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. याचिका में कहा गया है कि बकस्वाहा के जंगल में क़रीब 25 हजार साल पुरानी रॉक पेंटिग्ज़ मौजूद हैं.

ये पेंटिंग्ज़ पाषाण युग की मानव जाति की जानकारियों का महत्वपूर्ण स्रोत हैं. इन्हें पुरातात्विक संपदा घोषित किया जाना चाहिए. याचिका में केंद्र सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और वहां के खनिज विभाग तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को पक्षकार बनाया गया है.

शुक्रवार को इस याचिका पर सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश की बेंच ने पुरातत्व विभाग को आदेश दिया कि बकस्वाहा के शैल चित्रों की सच्चाई सामने लाएं और हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश करें. हाईकोर्ट ने केंद्र तथा मध्य प्रदेश सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय, खनिज मंत्रालय और पुरातत्व विभाग (भोपाल सर्किल) से भी जवाब दाखिल करने को कहा है.

पुरातत्व विभाग ने हाईकोर्ट को बताया कि उसे हाल ही में बकस्वाहा के शैलचित्रों के बारे में मालूम हुआ है. वहां टीम भेजी जा रही है. याचिका की पैरवी अधिवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने की. इस मामले में अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने बकस्वाहा के जंगलों को हीरा खनन के लिए बिड़ला ग्रुप की एक्सल माइनिंग एडं इंड्रस्ट्रीज कंपनी को 50 साल के लिए पट्टे पर दे दिया है. इससे दो लाख से ज्यादा पेड़ों के कटने का ख़तरा है. साथ ही बेहद दुर्लभ शैल चित्रों के नष्ट होने की आशंका है.

देश भर में पर्यावरणविदों ने इतनी बड़ी तादाद में पेड़ों के कटान के बारे में चिंता जताते हुए बकस्वाहा के जंगल बचाने की मुहिम छेड़ रखी है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल 30 जून को इस मामले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पेड़ों के कटान पर रोक लगा दी थी. ट्रिब्यूनल में 27 अगस्त को सुनवाई होनी है.


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