किताब उत्सव | शब्द बचे रहेंगे मनुष्य के रहने तक

  • 9:33 pm
  • 12 January 2024

लखनऊ | राजकमल प्रकाशन की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित ‘किताब उत्सव’ की शुरुआत शुक्रवार को हुई. प्रतिष्ठित साहित्यकार नरेश सक्सेना, अखिलेश, मोहसिन ख़ान, वीरेंद्र यादव, रमेश दीक्षित, वन्दना मिश्र और रूपरेखा वर्मा ने भी उद्घाटन समारोह में शिरकत की.

इस मौक़े पर जाने-माने कथाकार और ‘तद्भव’ के सम्पादक अखिलेश ने कहा कि यह ऐसा उत्सव है जो आपको ख़ुशी तो देता ही है, समझ भी देता है. कात्यायनी ने कहा कि पढ़ने की संस्कृति को बढ़ाने के लिए राजकमल प्रकाशन का लखनऊ में किताब उत्सव का आयोजन सराहनीय है. प्रतिष्ठित उपन्यास ‘अल्लाह मियां का कारख़ाना’ के लेखक मोहसिन खान ने कहा कि किताबें हमारे लिए बेहद ज़रूरी हैं. मैं दुआ करता हूं कि किताब उत्सव की आवाज़ बहुत दूर तक जाए.

सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने कहा कि यह आयोजन जिस दौर में किया जा रहा है, उसमें किताबों की चिंता कोई नहीं करता. हालांकि हमें किताबों की ओर लौटने की बेहद ज़रूरत है. प्रतिष्ठित आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि आज के दौर में पुस्तकों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. ऐसे में जब हिंदी का सबसे बड़ा प्रकाशक इतना बड़ा किताब उत्सव करता है तो यक़ीनन इसे अच्छी शुरुआत माना जाना चाहिए.

अख़बारनवीस और संस्कृतिकर्मी वन्दना मिश्र ने कहा कि यह शहर मुंशी नवल किशोर का शहर है. जिसने इतिहास बनाया है, यह उसका शहर है. लखनऊ हमेशा से ही किताब प्रेमियों का शहर रहा है. किताबें हमें तो बदलती ही हैं, पूरी दुनिया को भी बदल डालती हैं.

शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता प्रो.रमेश दीक्षित ने कहा कि किताबों की वजह से ही मैं बोलना सीख पाया. राजकमल ने विभिन्न विषयों की किताबें छापकर महत्वपूर्ण काम किया है. अच्छी से अच्छी किताबें लाने के लिए वे हमेशा प्रतिबद्ध रहे है. किताबें पढ़ने का सिलसिला हमेशा से चलता आया है और आगे भी चलता रहेगा.

कथाकार अखिलेश और दूसरे मेहमान.

साहित्यकार नरेश सक्सेना ने कहा कि किताब में शब्द होते हैं, और शब्द अक्षय होते हैं. कविता जब बोलती है तो चोट करती है. कुछ लोग कहने लगे हैं कि किताबों से कुछ नहीं होता है, ऐसे लोगों से पूछा जाना चाहिए कि तो फिर उन्हें जलाया क्यों जाता है? जब तक मनुष्य है, शब्द बचे रहेंगे. फ़ेसबुक जैसे मंच कोई संकट नहीं, बल्कि ताक़त है. किताब उत्सव के लिए उन्होंने राजकमल को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने लेखकों को पाठकों से रूबरू होने का यह मौक़ा मुहैया किया है. यह आवाज़ उठाने का वक़्त है, आवाज़ उठाते रहें. धन्यवाद ज्ञापन राजकमल प्रकाशन के सीईओ आमोद महेश्वरी ने दिया.

उद्घाटन के बाद अगला सत्र ‘हमारा शहर हमारे गौरव’ का था. इसमें यशपाल के लेखन और जीवन पर बातचीत की गई. प्रीति चौधरी ने यशपाल की रचना के अंशों का पाठ किया. आलोचक वीरेन्द्र यादव ने यशपाल के लेखन पर वक्तव्य दिया और कुमार पंकज ने उनके जीवन के विविध पक्षों के संदर्भ में यशपाल को याद किया. उन्होंने कहा कि यशपाल गंगा- जमुनी तहज़ीब के लेखक थे. यशपाल ने ‘क्यों फंसे’ उपन्यास समय से बहुत पहले लिख दिया था. इस सत्र का संचालन नाज़िश अंसारी ने किया.

किताब उत्सव के पहले दिन के अंतिम सत्र में सुभाष चंद्र कुशवाहा, सुधीर विद्यार्थी और फ़िरोज़ नक़वी ने प्रताप गोपेन्द्र की किताब ‘चंद्रशेखर आज़ाद’ का लोकार्पण किया. प्रताप गोपेन्द्र ने अपने लेखकीय वक्तव्य में चंद्रशेखर आज़ाद के व्यक्तित्व पर सारगर्भित वक्तव्य दिया. संचालन अशोक शर्मा ने किया.

कल यानी शनिवार को दोपहर एक बजे से कार्यक्रमों की शुरुआत होगी. पहले सत्र में ‘आधुनिक अवधि कविता’ विषय पर परिचर्चा होगी. दूसरे सत्र में राकेश कबीर के कविता संग्रह ‘तुम तब आना’ और तीसरे सत्र में राज कुमार सिंह के कविता संग्रह ‘उदासी कोई भाव नहीं है’ का लोकार्पण होगा. चौथे सत्र में ‘पोस्ट ट्रुथ के दौर में पत्रकारिता’ विषय पर परिचर्चा होगी. पाँचवें सत्र में राकेश मिश्र के कविता संग्रह ‘कवि का शहर’ का लोकार्पण होगा. छठे और अन्तिम सत्र में विपिन गर्ग की किताब ‘चलो टुक मीर को सुनने’ का लोकार्पण और उस पर बातचीत होगी.

किताबों के जश्न का यह सिलसिला गोमती नगर के अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में 16 जनवरी तक चलेगा. किताब उत्सव में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई है. प्रवेश नि:शुल्क है.

(विज्ञप्ति)


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