किताबों की दुनिया में बतकही का तीसरा दिन
- 11:30 pm
- 14 January 2024
लखनऊ | ‘किताब उत्सव’ के तीसरे दिन भी कुछ नई किताबों का लोकार्पण हुआ और कई किताबों पर बातचीत भी हुई. पहला सत्र बिहार की पहली महिला आईपीएस अधिकारी मंजरी जारुहार की आत्मकथा ‘मैडम सर’ पर केंद्रित रहा. इस सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार बी.एस.एम. मूर्ति और शैलेंद्र सागर ने मंजरी जारुहार से किताब पर बातचीत की.
मंजरी जारुहार ने बताया कि जब आईपीएस में उनका चयन हुआ तो घर वालों को इसके लिए तैयार करने में ख़ासी मुश्किल पेश आई. “उनको लगता था कि पुलिस में जाकर मैं क्या करूंगी. बाद में जब मैंने ज्वाइन कर लिया और बिहार में ज्वाइन करने के लिए पहुंची तो डीजी ने मेरे सेल्यूट का जवाब तक नहीं दिया. बाद में मुझे पटना में ही ज्वाइन कराया गया कि पटना सुरक्षित रहेगा.”
मूर्ति जी ने ‘मैडम सर’ किताब पर अपनी राय साझा की. कहा कि यह किताब बहुत रोचक और पठनीय है. मंजरी जी ने यह जानते हुए भारतीय पुलिस सेवा में प्रवेश किया कि उनकी राह कितनी कठिन होगी. बिहार पुलिस में पहली बार एक महिला अधिकारी का प्रवेश एक क्रांतिकारी घटना थी. यह किसी कठिन सपने के पूरा होने जैसा था.
‘मैडम सर’ को पढ़ना भारतीय पुलिस सेवा को समझने के लिहाज़ से बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए भी कि ये उस दुनिया में रहते हुए, उसे जीते हुए और उससे रोज़-ब-रोज़ टकराते हुए लिखी गई है.
मंजरी जारूहार ने कहा, “रिटायर होने के तेरह साल बाद मैंने ये किताब लिखी. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं कभी किताब लिखूंगी, इसलिए कभी नोट्स भी नहीं रखे. लिखते हुए मैं पूरी तरह से स्मृतियों पर आश्रित रही. उसे लिखते हुए मुझे वो तमाम केस याद आए, जिनमें मैं बतौर अधिकारी शामिल रही थी. जैसे कि भागलपुर कांड. क़ानून के नजरिए से यह भयावह केस था. इसमें जो अधिकारी शामिल थे, वे एकदम नौजवान थी. उन पर चार्जशीट लगाते हुए शुरुआत में मैं दुविधा में रही पर जल्दी ही इस नतीजे पर पहुंची कि क़ानून इस तरह की चीज़ों को कभी स्वीकार नहीं कर सकता.” संचालन फ़रज़ाना महदी ने किया.
दूसरे सत्र में राहुल सांकृत्यायन की जीवनी के लेखक अशोक कुमार पाण्डेय मंच पर थे. युवा कवि विशाल श्रीवास्तव ने उनसे किताब पर बातचीत की. बक़ौल अशोक कुमार पांडेय, “मैंने सोचा था कि मैं बहुत आसानी से इसे लिख लूंगा पर इसे लिखते हुए मुझे समझ में आया कि असली राहुल तभी सामने आएंगे जब उनके बारे में सब तरफ फैली हुई बहुत सारी किंवदंतियों के पार न जाया जाए. इसलिए मैने तटस्थ होकर यह देखने की कोशिश की कि आख़िर राहुल जी थे क्या! इसीलिए इसमें उन पर देवत्व थोपने की कोई कोशिश नहीं की. राहुल सांकृत्यायन के जीवन में दो चीज़ें हैं, जो कभी नहीं छूटती. पहली चीज है ज्ञान की तलाश और दूसरी चीज थी घुमक्कड़ी. मुझे नहीं लगता कि बीसवीं सदी में हिंदी की दुनिया में उनसे बड़ा कोई पढ़ाकू कोई रहा होगा. लेकिन ये पढ़ाई उन्होंने बंद कमरे में बैठकर नहीं की.”
उन्होंने कहा, “राहुल सांकृत्यायन के भीतर कई तरह के अंतर्विरोध मौजूद रहे. उनके भीतर विचारों की एक खिचड़ी थी जो उन्हें कई बार गलत दिशाओं में ले जाती थी. इस समय सांप्रदायिकता मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या है. मेरे लिए ये बहुत बड़ा सवाल है कि भारतीय समाज में इतने बड़े पैमाने पर कैसे फैली. इस क्रम में कथित नवजागरण काल या हिंदी के बौद्धिक समाज का उर्दू को लेकर, दूसरे धर्मों को लेकर, स्त्रियों के मसले पर हिंदी समाज में एक चुप्पी की स्थिति रही है. राहुल पर लिखते हुए भी मेरे मन में ये सवाल रहे. मुझे लगा कि राहुल सांकृत्यायन पर लिखने के बहाने मैं उस दौर के बौद्धिक समाज को भी समझ सकूं.” कहा कि राहुल किसान आंदोलन में जिस तरह से गए, वह उनके बड़े मनुष्य का प्रमाण है. उनके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो उन्हें बहुत ही संवेदनशील मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं.
प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि अशोक जी इस किताब में बहुत सारी भ्रांतियों से टकराए हैं. बहुत सारी नई जानकारियों के साथ आए हैं. इस विचारोत्तेजक किताब के लिए उन्हें बधाई दी जानी चाहिए. इस सत्र का संचालन सबाहत आफरीन ने किया.
तीसरे सत्र में अमृतलाल नागर के कृतित्व पर बात रखते हुए प्रो.सूरज थापा ने कहा कि लिखने के पहले नागर जी रिसर्च को पूरा महत्व देते थे. उनकी यह ताक़त ‘गदर के फूल’, ‘ये कोठेवालियां’ या ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ जैसी किताबों को पढ़ते हुए महसूस की जा सकती है. उनकी रचनाओं में इतिहास एक बेहद महत्वपूर्ण तत्त्व के रूप में आता है. वे इतिहास के सहारे सांस्कृतिक उन्नयन पर काम करते रहे थे. नूर आलम ने उनकी कहानी ‘प्रायश्चित’ का पाठ किया.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक राकेश तिवारी ने कहा कि अमृतलाल नागर का स्नेह पाने को वह अपना सौभाग्य समझते हैं, उनकी सोहबत में न जाने कितनी चीज़ें सीखने को मिली. उन्होंने उनके साथ बिताए कई रोचक और सरस प्रसंग साझा किए. संचालन अरुण सिंह ने किया.
अगले सत्र में मार्क टली की कहानियों के संग्रह ‘धीमी वाली फ़ास्ट पैसेंजर’ का लोकार्पण कथाकार अखिलेश, आलोचक वीरेन्द्र यादव, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक राकेश तिवारी, कथाकार-संपादक मनोज कुमार पांडेय और अनुवादक पत्रकार प्रभात के हाथों हुआ. किताब के अनुवाद के अपने अनुभवों और कहानियों पर बात करते हुए प्रभात ने किताब पर बोलते हुए कहा कि इन कहानियों की पृष्ठभूमि में पूर्वी उत्तर प्रदेश ज़रूर है मगर सामाजिक-सांस्कृतिक और इंसानी नज़रिये से देखें तो अलग-अलग मुद्दों को रेखांकित इस किताब में जो सातों कहानियों का वितान इतना बड़ा है कि उसमें पूरा देश समाया लगता है. अस्सी और नब्बे के दशक की ये कहानियां उस दौर की नौकरशाही और समाजी ज़िंदगी का दस्तावेज़ मालूम होती हैं. उन्होंने कहानी के कुछ अंशों का पाठ भी किया. सत्र का संचालन शालिनी सिंह ने किया.
अंतिम सत्र कथाकार अखिलेश के उपन्यास निर्वासन पर केंद्रित रहा. इस मौक़े पर निर्वासन पर केंद्रित चुनिंदा आलेखों की एक किताब का लोकार्पण भी हुआ. इस किताब का संपादन युवा कथाकार- आलोचक राजीव कुमार ने किया है. आलोचक अवधेश मिश्र ने कहा कि उपन्यास को छपे दस साल बीत चुके हैं. इस बीच अपने समय, समाज, संस्कृति और राजनीति की सटीक पहचान करने वाले इस उपन्यास का महत्व बढ़ता ही गया है. कवि-आलोचक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि इस उपन्यास में वे सारी बातें सत्य साबित हो रही हैं, जिनकी तरफ अखिलेश ने इशारा किया था. इन दस सालों में ये उपन्यास एक महा आख्यान बनता गया है.
वीरेंद्र यादव ने कहा कि ये निर्वासन कई स्तरों पर घटित होता है. यहां भौतिक निर्वासन है, जहां लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में गिरमिटिया मजदूर बन कर दुनिया के दूसरे कोनों में जा रहे हैं. दूसरा निर्वासन इस व्यवस्था का है, जहां जातिगत शोषण के चक्र में फंसकर लोग अपने आप से ही निर्वासित हो रहे हैं. तीसरी तरफ़ भौतिकता का एक चक्रव्यूह है, जिसके मायावी चक्र में फंसकर लोग आत्म के स्तर पर निर्वासित हो रहे हैं. ज़ाहिर है कि इन सभी निर्वासनों के साथ एक विडंबना भी लगातार बनी हुई है. युवा कथाकार सबाहत आफरीन ने संचालन किया.
किताब उत्सव में कल 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे से कार्यक्रम होंगे. पहले सत्र में आलोक रंजन की किताब ‘जिलाधिकारी : जिला प्रशासन की चुनौतियाँ’ और दूसरे सत्र में वीरेन्द्र सारंग की किताब ‘हाता रहीम’ पर बातचीत होगी. तीसरे सत्र में वीरेन्द्र यादव से उनकी किताब ‘उपन्यास वर्चस्व और सत्ता’ के सन्दर्भ में बातचीत होगी. चौथे सत्र ‘हमारा शहर हमारे गौरव’ में भगवतीचरण वर्मा के कृतित्व का स्मरण होगा. पाँचवे सत्र में राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ का लोकार्पण होगा. छठे सत्र में राकेश तिवारी की किताब ‘जिरह अजुधिया’ के आवरण का लोकार्पण होगा. अन्तिम सत्र में काव्य पाठ होगा. राजकमल प्रकाशन समूह की और से आयोजित यह किताब उत्सव 16 जनवरी तक चलेगा. उत्सव में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई है. प्रवेश नि:शुल्क है.
(विज्ञप्ति)
कवर | ‘मैडम सर’ की लेखक मंजरी जारुहार.
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