भारतीय भाषाओं के साहित्य का अनुवाद समय की माँग

नई दिल्ली | बानू मुश्ताक़ के कहानी-संग्रह को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जाना सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है. यह गौरवपूर्ण क्षण भारतीय भाषाओं की गहन रचनात्मकता, उनकी वैश्विक संभावनाओं और अनुवाद के माध्यम से उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाने की अद्भुत क्षमता पर गंभीरता से विचार करने की ओर ध्यान दिलाता है. यह पुरस्कार उस साहित्यिक विरासत की स्वीकृति है, जो दशकों से स्थानीय पाठकों के बीच जीवित रही है और अब अनुवाद के माध्यम से वैश्विक मंच पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है. राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की घोषणा पर लेखक को बधाई देते हुए ये बातें कहीं.
हमारी भाषाओं में उत्तम लेखन तो था ही और हमेशा रहेगा : गीताजंलि श्री
इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित ‘रेत समाधि’ उपन्यास की लेखक गीताजंलि श्री ने कहा, बानू मुश्ताक़ और दीपा भस्थी को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलना बहुत बड़ी बात है. मैं उन दोनों को बधाई देती हूँ. बस द्वार खुलने की ज़रूरत होती है और सुखद संयोग से वह हो जाए तो पूरा एक ख़ज़ाना नज़र आने लगता है. हमारे देश की अनेक भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य कोई नई बात नहीं है. मगर बाक़ी दुनिया को उसकी जानकारी अक्सर नाकाफ़ी होती है. बुकर जैसी पहचान उसे दुनिया के सामने लाती है. हमारी भाषाओं में उत्तम लेखन तो था ही, और हमेशा रहेगा. अपने क्षेत्र के बाहर—देश में और दुनिया में—पहुँचे या न पहुँचे. चार साल में दो बार अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार का देश में आना भारतीय साहित्य के लिए शुभ संदेश है. मैं उम्मीद करती हूँ कि यह सिलसिला और ज़ोर पकड़ेगा.
भारतीय भाषाओं की रचनात्मकता को वैश्विक स्वीकृति
अशोक महेश्वरी ने कहा, भारतीय भाषाओं से यह दूसरी किताब है, जिसे यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है. पहली बार 2022 में हिन्दी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अनुवाद के लिए लेखक गीताजंलि श्री और अनुवादक डेज़ी रॉकवेल को यह पुरस्कार मिला था. अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित होने वाली यह किसी दक्षिण एशियाई भाषा में लिखी गई पहली कृति थी. ‘रेत समाधि’ और ‘हार्ट लैम्प’—दोनों कृतियों की उपलब्धियाँ यह दिखाती हैं कि भारतीय भाषाओं की रचनात्मकता अब विश्व साहित्य की मुख्यधारा में स्वीकार की जा रही है. इससे एक सिलसिला शुरू होता दिख रहा है. हमें विश्वास है कि आने वाले समय में यह और मजबूत होगा.
भारतीय भाषाओं का आपसी संवाद भी ज़रूरी
उन्होंने कहा, यह सफलता इस ओर संकेत करती है कि हमारी भारतीय भाषाओं के साहित्य में वह शक्ति और संभावनाएँ हैं, जो विश्व साहित्य में नया आयाम जोड़ सकती हैं. इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय भाषाओं में जो साहित्य रचा जा रहा है, वह वैश्विक स्तर पर पाठकों और आलोचकों को गहराई से प्रभावित करने की क्षमता रखता है. अनुवाद इसके लिए एक पुल का काम करता है—केवल भारतीय भाषाओं से अंग्रेज़ी या अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं के आपसी संवाद में भी. यह संवाद बेहद ज़रूरी है, क्योंकि भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाएँ एक-दूसरे से कटती जा रही हैं. जिस तरह हिन्दी भाषी पाठकों को बांग्ला, मलयालम, कन्नड़ या असमिया के साहित्य तक सहज पहुँच नहीं, उसी तरह अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक भी हिन्दी की समकालीन उत्कृष्ट कृतियों से दूर हैं.

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गीतांजलि श्री और अशोक महेश्वरी
हमें अनुवादकों का महत्व समझना होगा
अशोक महेश्वरी ने कहा, प्रकाशक होने के नाते हम यह मानते हैं कि अनुवाद को प्राथमिकता देना अब समय की माँग है. हमें न केवल हिन्दी से अन्य भाषाओं में, बल्कि अन्य भाषाओं से हिन्दी में गुणवत्तापूर्ण अनुवाद को बढ़ावा देना चाहिए. इसके लिए संस्थागत प्रयास, अनुवादकों के प्रशिक्षण, अनुवाद अनुदान और बहुभाषिक प्रकाशन कार्यक्रमों की आवश्यकता है. इस सन्दर्भ में बानू मुश्ताक़ की कृति का अनुवाद कर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा पाने वाली अनुवादक दीपा भस्थी का कार्य दिशा देने वाला है. अनुवादकों को लेखक के समान ही महत्व और सम्मान देने की परंपरा भारत में भी विकसित होनी चाहिए. क्योंकि अनुवाद केवल भाषा परिवर्तन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अंतरण का भी माध्यम है.
आज जब वैश्वीकरण के दौर में हर क्षेत्र में एकरूपता का ख़तरा मंडरा रहा है, ऐसे में हमारी भाषाई और साहित्यिक विविधता को सहेजने और साझा करने की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है. इसके लिए साहित्य उत्सवों, पुस्तक मेलों और डिजिटल मंचों पर भी भारतीय भाषाओं को प्रमुखता देना ज़रूरी है. हम अपनी ओर से हमेशा प्रयासरत रहते हैं कि हिन्दी में जो कुछ अच्छा, मौलिक और रचनात्मक लिखा जा रहा है, उसका अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हो. हाल के कुछ वर्षों में यह प्रक्रिया और भी तेज़ हुई है. साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ रचनाओं को हिन्दी में लाने का काम भी हम लगातार कर रहे हैं.
हम समय-समय पर दोहराते रहे हैं कि राजकमल प्रकाशन समूह उत्कृष्ट साहित्य को जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध है. उसने विभिन्न भाषाओं के साहित्य को हिन्दी पाठकों तक पहुँचाने में अपनी इस प्रतिबद्धता का बख़ूबी परिचय दिया है. किसी भी भारतीय भाषा को वैश्विक मंच पर सम्मान मिलना एक प्रकाशक के बतौर हमारे लिए गर्व की बात है. राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से मैं बानू मुश्ताक़ और दीपा भस्थी को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर हार्दिक बधाई देता हूँ.
(विज्ञप्ति)
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कवर | दीपा भस्थी और बानू मुश्ताक़
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