साहित्य के प्रति विनम्रता संवेदनशीलता की कसौटीः प्रो.अग्रवाल

नई दिल्ली | बरेली के सर्जन डॉ.बृजेश्वर सिंह की नई किताब ‘नेक्स्ट पेशेंट, प्लीज़’ का विमोचन शनिवार को यहाँ एक समारोह में हुआ.

समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रो.पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इस मौक़े पर कहा कि साहित्य, दर्शन या ह्यूमैनिटीज़ कोई नैतिक शिक्षा सिखाने वाले विषय नहीं. ये कोई नसीहत या उपदेश भी नहीं हैं. हम पर इनका परोक्ष रूप में असर करती हैं बशर्ते हम आलोचनात्मक दृष्टि से इनका मूल्यांकन कर सकें. कहा कि साहित्य किसी को अच्छा मनुष्य या बेहतर पेशेवर नहीं बनाता, अलबत्ता यह ऐसी स्थितियाँ पैदा करता है, जिनमें आपको ख़ुद अपने नैतिक दायित्व तय करने होते हैं.

डॉ.बृजेश्वर सिंह के अपने मरीज़ों से भावनात्मक रिश्तों और उनकी ज़िंदगी की झांकियों को असरदार ढंग से क़लमबंद करने का हवाला देते हुए प्रो.अग्रवाल ने कहा कि ये कहानियाँ साक्षी हैं कि ह्यूमैनिटीज़ की पढ़ाई का मतलब यूनिवर्सिटी की डिग्री हरग़िज़ नहीं है. यह भी कि डॉक्टर अपने मरीज़ के लिए बड़ी उम्मीद होते हैं. किताब में प्रो.वसीम बरेलवी की प्रस्तावना के हवाले से उन्होंने कहा कि डॉक्टर का पेशा इंसान के तौर पर उसके हौसले की आज़माइश भी है. क्योंकि इंसान की टूटन हाथ-पाँव की टूटन भर नहीं, दिल और आत्मा की टूटन भी तो होती है.

प्रो.अग्रवाल ने कहा कि किसी का दक्ष पेशेवर होना उसके संवेदनशील मनुष्य होने की गारंटी नहीं और न ही साहित्य-दर्शन पढ़ लेने भर से ऐसा संभव है. दर्शन, साहित्य या ह्यूमैनिटीज़ के प्रति विनम्रता का भाव इसकी कसौटी होता है. उन्होंने नाज़ी हुकूमत का उदाहरण दिया कि गैस चैंबर का संचालन पेशेवर डॉक्टर किया करते थे और बच्चों को ज़हर का इंजेक्शन बाक़ायदा प्रशिक्षित नर्सें देती थीं.

डॉ.सुमन केशरी ने किताब की एक कहानी के भावानुवाद का पाठ किया. उर्दू के साहित्यकार डॉ.ख़ालिद जावेद ने नई किताब को डॉ.ब्रजेश्वर की पहली किताब ‘इन एण्ड आउट ऑफ़ थिएटर’ का विस्तार कहा. कहा कि डॉक्टर की संवेदना मरीज़ के इलाज में किस हद तक मददगार हो सकती हैं, इन कहानियों में इसका पता भी मिलता है. वैस्कुलर सर्जन और लेखक डॉ.अम्ब्रीश सात्विक ने कहा कि डॉक्टर दरअसल शिल्पी भी होते हैं, अलग-अलग मौक़ों पर इसकी अभिव्यक्ति होती रहती है.

‘नेक्स्ट पेशेंट, प्लीज़’ की भूमिका में शायर प्रो.वसीम बरेलवी ने डॉ.ब्रजेश्वर की बाबत लिखा है, “वो रोगी की ज़ाहिरी दशा के साथ उसके मानस की उथल-पुथल से रूबरू होने का हुनर भी जानते हैं. मरीज़ के ज़हनी अंधेरों को उम्मीद की रोशनी से परिचित कराने में उनकी पेशेवराना कार-कर्दगी ही काम नहीं दिखाती, उनकी शख़्सियत का ग़ैरमामूली इंसानी पक्ष भी बड़ा रोल अदा करता है.”

किताब के विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि थिएटर और फ़िल्मों के अभिनेता मानव कौल थे. दिल्ली और मुंबई में अदब और थिएटर की दुनिया से वाबस्ता तमाम नामचीन लोगों ने समारोह में शिरकत की.

डॉ.बृजेश्वर अपनी पेशेवराना ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में लगातार सक्रिय रहते हैं और थिएटर से उन्हें ख़ास लगाव है. ‘विंडरमेयर’ स्टुडियो थिएटर और बरेली में हर साल होने वाला विंडरमेयर थिएटर फ़ेस्विटल इसकी एक बानगी है.

‘नेक्स्ट पेशेंट, प्लीज़’ रूपा पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुई है.

कवर | पियूष दीक्षित


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