भारतीय रंगकर्म में रतन थियाम का योगदान याद किया

प्रयागराज | मूर्धन्य रंगकर्मी रतन थियाम की स्मृति में यूनिवर्सिटी थियेटर की ओर से स्वराज विद्यापीठ में आयोजित स्मृति-सभा में मणिपुर दूरदर्शन द्वारा रतन थियाम पर निर्मित वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया और उनके कृतित्व पर चर्चा करके उन्हें याद किया गया.

इस मौक़े पर जुटे विद्यार्थी वृतचित्र देख कर रतन थियाम के निर्देशन और रंगकर्म की उनकी विशिष्टताओं के अन्य पहलुओं से अवगत हुए. उन्होंने यह भी समझा कि अपने रंगमंडल कोरस रेपर्टरी के साथ किस प्रक्रिया से गुज़र कर वह ऐसे नाटक तैयार सके, जो मणिपुरी ज़बान में होते हुए भी अपनी दृश्य-भाषा की वजह से वैश्विक दर्शकों से तादात्म्य बनाने में सफल हो सके.

रतन थियाम के सान्निध्य में रहे वरिष्ठ रंगकर्मी प्रवीण शेखर ने उनसे अपनी निकटता का स्मरण किया और बताया कि इलाहाबाद के रंगमंच से भी रतन थियाम का जुड़ाव था. उन्होंने कहा कि पहली बार उन्होंने उनका नाटक 1988 में देखा था और उसके बाद वह उनके सम्मोहन में बंध गए. बाद में उनके साथ रह कर सीखा भी. इलाहाबाद की पुरानी संस्था कैंपस थियेटर और उसके संचालक सचिन तिवारी से रतन थियाम के संबंधों को याद किया.

अमितेश कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रकाश, ध्वनि और अभिनेताओं की देह गति का अनुशासित और नियंत्रित इस्तेमाल जितनी कुशलता से रतन थियाम कर सकते थे, वह शायद ही कोई कर सकता था. रोने, हँसने, चलने, जैसी क्रियाओं को भी उन्होंने मणिपुरी गति और संगीत के तालमेल से अविस्मरणीय बना दिया. वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र, निदेशक और अध्यक्ष भी रहे. ‘चक्रव्यूह’, ‘अंधा युग’, ‘उत्तर प्रियदर्शी’ जैसे नाटकों से उन्होंने मणिपुरी भाषा के रंगमंच को भारत और विश्व के पटल पर स्थापित किया.

कार्यक्रम में रीति, साक्षी, हर्षित आदि ने अपना नज़रिया साझा किया. यूनिवर्सिटी थियेटर की तरफ से आदित्य ने कार्यकम का संचालन किया. शीतांशु भट्ट ने सभा में आए लोगों का धन्यवाद किया.

(विज्ञप्ति)

    संवाद आर्काइव | रतन थियाम से साक्षात्कार

    मणिपुर दूरदर्शन | रतन थियाम पर वृत्तचित्र


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