बटर चिकन की ईजाद का झगड़ा कोर्ट में
नई दिल्ली | देश-दुनिया में खाने-पीने के ठिकानों के मेन्यू और ज़ाइक़े के शौक़ीनों के बीच बटर चिकन को ख़ासी शोहरत हासिल है, सबकी अपनी रेसिपी और सबका अपना स्वाद. बहुतेरे लोगों का यह पसंदीदा व्यंजन इन दिनों ख़बरों की दुनिया में सुर्ख़ियों में है और वजह है इसकी ईजाद को लेकर विवाद. मोती महल और दरियागंज रेस्तरां इसकी ईजाद के श्रेय को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में मुक़दमा लड़ रहे हैं.
मोती महल का दावा है कि उसके संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने दिल्ली आने के पहले 1930 के दशक में पेशावर के एक बावर्चीख़ाने में बटर चिकन पकाया था. इसकी ख़ास रेसिपी उन्होंने ही तैयार की और इस तरह बटर चिकन की ईजाद पर उसका हक़ है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोती महल ने अदालत से आग्रह किया कि दरियागंज रेस्तरां को इसकी ईजाद का श्रेय लेना बंद करना चाहिए, साथ ही मोती महल को हर्जाना देना चाहिए.
दोनों पक्षों ने अपने दावों के समर्थन में सुबूत पेश किए हैं. दरियागंज की ओर से इस दावे का खंडन करते हुए तर्क दिया गया कि बटर चिकन के आविष्कार की कहानी सच नहीं है और इसका उद्देश्य अदालत को गुमराह करना है. दरियागंज का दावा है कि उसके संस्थापक परिवार के एक सदस्य मरहूम कुंदन लाल जग्गी ने बटर चिकन तब बनाया था, जब पेशावर से दिल्ली आने के बाद उन्होंने यहाँ एक भोजनालय शुरू किया था. कुंदन लाल रसोई की ज़िम्मेदारी संभालते थे, और पेशावर के उनके दोस्त गुजराल कारोबार का हिसाब-किताब देखते थे.
अदालत में पेश किए साक्ष्यों में 1930 के दशक की एक ब्लैक एण्ड व्हाइट फ़ोटो शामिल है, जिसमें पेशावर में दोनों दोस्त साथ दिखाई देते हैं, 1949 में हुआ साझेदारी का समझौता, जग्गी का दिल्ली का विज़िटिंग कार्ड और बटर चिकन की ईजाद के बारे में बात करते हुए 2017 का उनका एक वीडियो शामिल है.
दरियागंज ने तर्क दिया कि दोस्तों की साझेदारी के आधार पर, दोनों ही पक्ष यह दावा कर सकते हैं कि उनके पुरखों ने इसकी ईजाद की थी. दिल्ली हाई कोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई 29 मई को होनी है.
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