आज़मगढ़ फ़िल्म उत्सव में कैफ़ीनामा
आज़मगढ़ | चौथे आज़मगढ़ इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल के तीसरे और आख़िरी दिन बुधवार कैफ़ी आज़मी की शख़्सियत पर बनी फ़िल्म ‘कैफ़ीनामा’ और ‘72 हूरें’ सहित पांच फ़िल्मों का प्रदर्शन हुआ. इस मौक़े पर शबाना आज़मी भी शारदा टॉकीज़ आईं.
फ़ेस्टिवल में फ़िल्म निर्माण, लेखन, निर्देशन और संगीत संयोजन की मास्टर क्लास भी हुई, जिसमें फ़िल्मी दुनिया के कई विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों से अपना तजुर्बा और राय साझा की. ‘72 हूरें’ फ़िल्म के निर्माता गुलाब सिंह ने बताया कि उनके गांव में मान्यता थी कि “हवाई जहाज की छाया पत्थर को सोना बना देती है.” उसी उम्मीद में पत्थर लेकर भागता हुआ मामूली-सा लड़का बाद में कई जहाजों का मालिक बन गया.”
संगीत निर्देशक उद्धव ओझा ने फ़िल्म संगीत के इतिहास पर बात की. दो घंटे की यह बातचीत इतनी दिलचस्प थी कि 50 के दशक के संगीत से शुरू हुआ उनकी बातों का सिलसिला लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, पंचम दा, बप्पी लहरी जैसे संगीतकारों के क़िस्सों से होकर कब आधुनिक संगीत तक पहुंच गया, पता ही न चला.
शबाना आज़मी ने ‘कैफ़ीनामा’ की तारीफ़ करते हुए कहा कि बहुत अच्छी डॉक्यूमेंट्री बनी है. नवोदित कलाकारों को उन्होंने सलाह दी कि थिएटर की ट्रेनिंग बेहद ज़रूरी है. फ़िल्म फ़ेस्टिवल के आयोजन के लिए उन्होंने अभिषेक पंडित और ममता पंडित की तारीफ़ करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों के मार्फ़त लोग जब अलग-अलग तरह फ़िल्में देखे पाएंगे तो उनका नज़रिया बदलेगा, और समृद्ध होगा.
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