ज्ञान पर्व | इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विमर्श का तीसरा दिन

  • 6:27 pm
  • 24 August 2023

प्रयागराज | इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केंद्र में ज्ञान पर्व के तीसरे दिन की ‘सिनेमा-रंगमंच की समीक्षा’ विषय पर कार्यशाला हुई. इसके पहले सत्र में बतौर विशेषज्ञ अमितेश कुमार ने प्रतिभागियों को सिनेमा और रंगमंच के समय और समाज से संबंध को समझने के गुर सिखाये. विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ ही शहर के रंगकर्मियों ने भी इसमें हिस्सा लिया. ज्ञान पर्व का आयोजन राजकमल प्रकाशन समूह ने किया है.

दूसरे सत्र में ‘शुद्ध पाठ की बुनियादी चुनौतियाँ’ विषय पर परिचर्चा में प्रो.शिव प्रसाद शुक्ल, डॉ. अमृता शामिल हुए, संचालन संक्षेप ने किया. डॉ. अमृता ने ‘उसने कहा था’ कहानी के ज़रिये पाठ की अशुद्धियों के पहलुओं पर चर्चा की. प्रोफेसर शिव प्रसाद शुक्ल ने कहा कि संपादक, प्रूफ़ रीडर, लेखक और अध्यापक सभी की ज़िम्मेदारी है कि पाठ की शुद्धि बनी रहे.

तीसरे सत्र में हिंदी आलोचना का आलोचनात्मक इतिहास विषय पर प्रो.अमरनाथ से डॉ. आशुतोष और कुमार वीरेंद्र की बातचीत हुई. प्रो.अमरनाथ ने कहा कि लेखक का व्यक्तित्व स्वतंत्र होता है और ऐसा होना भी चाहिए. इसके हवाले से कुमार वीरेंद्र ने और डॉ. आशुतोष ने आलोचना-प्रत्यालोचना पर सवाल किए, जिसके उन्होंने जवाब दिए. उन्होंने कहा कि कविता-कहानी लिखने से कठिन है, आलोचना लिखना और आलोचना ख़ुद भी आलोच्य है.

चौथे सत्र में ‘आदिवासी विमर्श और हिंदी साहित्य’ विषय पर परिचर्चा हुई, जिसमें डॉ. जनार्दन, डॉ. वीरेन्द्र मीणा, डॉ. सुदीप तिर्की ने अपना नज़रिया साझा किया. सुदीप तिर्की ने कहा ‘आदिवासी साहित्य सुंदरता का साहित्य है, यहां पर व्यक्ति ही नहीं, फूल को, पत्ती को, टहनी को भी बचाने का प्रयास है’. वीरेंद्र मीणा ने कहा कि ‘आदिवासी विमर्श 1990 से नहीं है संविधान सभा में, जयप्रकाश मुंडा के समय (1940) के साथ ही शुरू होता है’. डॉ.जनार्दन ने आदिवासी विमर्श के लेखकों की भागीदारी के हक़ में अपनी बात रखी और कहा कि विभिन्न मंचों पर आदिवासी विमर्श के लेखकों की उपस्थिति बनी रहनी चाहिए.

ज्ञान पर्व के तीसरे दिन का आख़िरी सत्र ‘तुलसी व्याख्यान माला’ का था, जिसमें डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने अमृत लाल नागर के हवाले से तुलसी की समाजसेवी छवि के संबंधित उनके काव्य सौंदर्य के कारकों को व्याख्या की तथा अज्ञेय और राम विलास शर्मा जैसे आचार्यों के कृतित्वों में तुलसी काव्य के प्रभाव पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि तुलसी को जानने के लिए संपूर्ण संदर्भ को समझना पड़ेगा. अमरेंद्र त्रिपाठी ने मैनेजर पांडेय की दृष्टि के माध्यम से तुलसी साहित्य के आयामों की चर्चा की. उन्होंने कहा कि तुलसी के काव्य के सकारात्मक पक्षों की चर्चा भी करनी चाहिए.

प्रो.प्रणय कृष्ण ने कहा कि तुलसी ने अपनी संपूर्ण काव्य यात्रा में सांस्कृतिक और बौद्धिक चेतना का विस्तार किया. इस सत्र का संयोजन डॉ. विनम्र सेन सिंह ने और संचालन शिव कुमार यादव ने किया.

(विज्ञप्ति)


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