प्रो. क्लाउडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार

  • 10:16 pm
  • 9 October 2023

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ ने सोमवार को अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की घोषणा की. अल्फ्रेड नोबेल की याद में दिया जाने वाला स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार इस बार
क्लाउडिया गोल्डिन को दिया गया है.श्रम बाजार में महिलाओं पर उनके शोध के लिए उन्हें यह पुरस्कार दिया गया. रॉयल स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि उनके शोध से परिवर्तन के कारणों के साथ-साथ शेष लिंग अंतर के मुख्य स्रोतों का पता चलता है.

वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. 1989 से 2017 तक एनबीईआर के अमेरिकी अर्थव्यवस्था कार्यक्रम के विकास की निदेशक थीं. गोल्डिन को अमेरिकी अर्थव्यवस्था में महिलाओं पर उनके ऐतिहासिक काम के लिए जाना जाता है. उन्होंने सदियों से महिलाओं की कमाई और श्रम बाज़ार भागीदारी का पहला व्यापक विवरण मुहैया कराने का काम किया. उनके शोध से बदलाव के कारणों और शेष लिंग अंतर के मुख्य स्रोतों का पता चला. उनका शोध बताता है कि वैश्विक श्रम बाजार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है और जब वे काम करती हैं तो पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं। गोल्डिन ने दस्तावेजों का पता लगाया और 200 सालों से अधिक अवधि का डाटा इकट्ठा किया और यह साबित कर दिखाया कि कमाई और रोजगार दरों में लिंग अंतर कैसे और क्यों बदल गया.

समय से पहले जन्म ले रहे बच्चों के मामले में भारत सबसे ऊपर
दुनिया में वर्ष 2020 में 1.34 करोड़ बच्चे वक्त से पहले जन्मे, भारत में इसकी संख्या 30.2 लाख रही, जो सबसे ज्यादा है और कुल मामलों का 20 फ़ीसदी है. ‘अमर उजाला’ के मुताबिक, इस सूची में भारत के बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन, इथियोपिया, बांग्लादेश, कांगो और अमेरिका हैं. वैश्विक स्तर पर वर्ष 2010 और 2020 के बीच वक्त से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में कोई ख़ास बदलाव देखने को नहीं मिला. दस सालों में जन्मे कुल बच्चों में से 15 फीसदी वक्त से पहले पैदा हुए थे. भारत में इस दिशा में थोड़ी तरक्की हुई है. वर्ष 2010 में 34.9 लाख बच्चों ने समय से पहले जन्म लिया, साल 2020 में यह संख्या 30.2 लाख पाई गई. इसके बावजूद भी यह संख्या दुनिया भर में सबसे ज्यादा है. समय से पहले जन्मे बच्चों में अपरिवक्त प्रतिरक्षा प्रणाली की वजह से बीमारियों का ख़तरा ज्यादा होता है. इनमें श्वसन संकट सिंड्रोम, विकास में देरी, सेरेब्रल पाल्सी, पीलिया के साथ ही देखने और सुनने की समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे शिशुओं में मृत्यु दर भी ज्यादा होती है.

शेर की तुलना में इंसानों की आवाज से ज्यादा डरते हैं वन्य प्राणी
साउथ अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क में किए गए अध्ययन से मालूम हुआ कि 95 फीसदी जंगली जानवर शेर और गैंडे की आवाज़ की तुलना में इंसानों की आवाज़ से ज्यादा डरते हैं. ‘दैनिक भास्कर’ के अनुसार, अध्ययन में 19 से ज्यादा प्रजातियों के चार हज़ार से अधिक बनाए गए वीडियो में देखा गया कि गैंडे, शेर, हाथी, कुत्ते और गोली चलने की आवाज़ की तुलना में वन्य प्राणी इंसानों की आवाज़ सुनने पर सूखे के दिनोंं में भी पानी के स्त्रोतों को 40 फ़ीसदी तेजी से छोड़कर वहां से भाग जाते हैं. वेस्टर्न विश्वविद्यालय की डॉ.लियाना जैनेट ने बताया कि बढ़ते अवैध शिकार के कारण जानवरों को मालूम हो चुका है कि मनुष्यों के साथ संपर्क बेहद ख़तरनाक है.

हिमाचल में भी सिक्किम की तरह तबाही की वजह बन सकती है झील
हिमाचल प्रदेश में भी सिक्किम जैसी तबाही का ख़तरा है. लाहौल-स्पीति स्थित गेफांग गथ झील के बढ़ते आकार के कारण वैज्ञानिक इसके टूटने और भारी बाढ़ से होने वाली तबाही की आशंका जता रहे हैं. गेफांग ग्लेशियर से कुछ वर्षों पहले ही से बनी यह झील अब राज्य की सबसे बड़ी झील है. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में ख़बर है कि यह ग्लेशियर गेफांग देवता के नाम से जाना जाता है. अमेरिकन जियोफिज़िकल यूनियन जर्नल में छपे एक लेख में कहा गया है कि सिक्किम में टूटी झील और गेफांग में कई समानताएं हैं. जलवायु परिवर्तन के बीच आकार वृद्धि ने इसके टूटने के ख़तरे को बढ़ा दिया है. गेफांग पर नज़र रखने की ज़रूरत है. इस लेख के लेखकों में से एक अनिल कुलकर्णी ने कहा कि कृत्रिम तरीके से झील का पानी निकालकर अचानक आने वाली बाढ़ से भारी तबाही के ख़तरे को कम किया जा सकता है. इसके कई विकल्प भी इस वैज्ञानिक लेख में सुझाए गए हैं.

इसरो ने आदित्य एल 1 प्रक्षेप पथ में सुधार किया, बढ़ रहा एल-1 की ओर
सूर्य के अध्ययन के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने अपने पहले मिशन के यान आदित्य एल1 के प्रक्षेपण पथ में सुधार किया है. यान उस कक्षा एल-1 की ओर बढ़ रहा है, जहां स्थित होकर वह अध्ययन के लिए डाटा भेजेगा. इसरो के चंद्रयान1 और मंगल मिशन से जुड़े रहे वैज्ञानिक एम अन्नादुराई के मुताबिक लंबी दूरी वाले मिशन में स्पेस क्राफ्ट के पथ में सुधार की ज़रूरत पड़ती है ताकि वह सही कक्षा तक पहुंच सके. मंगलयान का पथ भी इसी तरह सुधारने की ज़रूरत पड़ी थी. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की ख़बर में उनके हवाले से बताया गया है कि चंद्र मिशन जैसी छोटी दूरियों के लिए पथ सुधार एक हफ्ते के भीतर ही कर लिया जाता है. लंबी दूरी के मिशन में एक से तीन महीने के भीतर यह प्रक्रिया अपनाई जाती है.

चयन-संपाजन | सुमित चौधरी


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