आइंदा जब भी ज़िक़्र-ए-पेरिस होगा, दीपिका का नाम आएगा

दरअसल जब वे अपने लक्ष्य पर निशाना साध रही होती हैं तो कुछ अंक भर हासिल नहीं कर रही होती हैं. वह अपने सपनों को उनकी मंज़िल तक पहुंचा रही होती हैं. जब वह लक्ष्य भेद रही होती हैं तो दरअसल पितृ सत्ता के बंधनों, अभावों, परेशानियों और कठिनाइयों से उपजी चुनौतियों को भी भेद रही होती हैं.

जब भी पेरिस की बात होती है तो राफेल नडाल, फ्रेंच ओपन और रोलां गैरों की लाल मिट्टी की बात होती है. सेंट जर्मेन फुटबॉल क्लब और उसके अद्भुत खिलाड़ी नेमार की बात होती है. उन गलियों की बात होती जिन गलियों में एमबापे अपराधियों के बीच फुटबॉल के गुर सीखता है और फ्रांस को विश्व चैंपियन बना देता है. 1900 और 1924 के ओलंपिक की बात होती है.

और 2024 में होने वाले ओलंपिक की बात भी होती है लेकिन अब से जब भी पेरिस की बात होगी तो दीपिका कुमारी और विश्व तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में उनके शानदार प्रदर्शन की बात होगी और अगर नहीं होती है तो होनी चाहिए.

21 से 27 जून तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित विश्व कप तीरंदाजी स्टेज 3 प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदकों की हैट्रिक पूरी की. सबसे पहले रिकर्व कैटेगरी में अंकिता भाकत और कोमालिका बारी के साथ महिला टीम का स्वर्ण पदक जीता, उसके बाद अपने पति और कोच अतानु दास के साथ मिश्रित टीम का स्वर्ण और अंत में व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता.

हालांकि उल्लेखनीय यह भी है कि दुनिया की अव्वल नंबर दक्षिण कोरिया, चीन और ताइपे जैसी टीमें इन विश्व कप सीरीज में भाग नहीं ले रही हैं लेकिन इससे दीपिका की उपलब्धियों का महत्व कम नहीं होता.

दरअसल वे ऐसा पहली बार नहीं कर रही थीं. विश्व कप में व्यक्तिगत स्पर्धा का उनका यह चौथा स्वर्ण पदक था. इसके पहले 2012 में अंताल्या में, 2018 में साल्ट लेक सिटी में और इसी साल गुआटेमाला में भी सोने का तमग़ा जीत चुकी हैं. विश्व कप में उनके हिस्से अब तक कुल मिलाकर 10 स्वर्ण, 13 रजत और 05 कांसे के तमग़े आ चुके हैं.

इतना ही नहीं राष्टमंडल खेलों में दो स्वर्ण, एशियाई खेलों में एक कांस्य, एशियाई चैंपियनशिप में एक स्वर्ण, दो रजत और तीन कांसे के और विश्व चैंपियनशिप में दो रजत पदक सहित लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय तमग़े हासिल कर चुकी हैं

लेकिन पेरिस में स्वर्ण पदकों की जीत की तिकड़ी सबसे न्यारी है. दरअसल जो शहर ख़ूबसूरती में चार चाँद लगाने के लिए नित फैशन के नए-नए बाह्य उपादान प्रस्तुत करता हो, उस शहर में दीपिका बताती हैं कि वास्तविक सौंदर्य बाहर से नहीं, आपके भीतर से उद्भूत होता है.

उनके भीतर के आत्मविश्वास से उनके चेहरे पर फैली ताम्बई आभा बोलती है कि कठिन परिश्रम, दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन से ज़िन्दगी की जद्दोजहद के श्याम रंग को जीत के स्वर्णिम रंग में तब्दील किया जा सकता है कि फ़र्श से अर्श तक का सफ़र तय किया जा सकता है कि एक गांव से रांची तक के 15 किलोमीटर का ग़ुमनामी का सफ़र तय करते-करते प्रसिद्धि के आकाश का सफ़र तय किया जा सकता है.

यूं तो संसार भर की स्त्रियां अपने बंधनों को तोड़ कर अपने सपनों को उड़ान देने की इच्छा से भरी होती हैं. ये बंधन जितने ज्यादा होते हैं, इच्छाएं उतनी ही प्रबल और तीव्रतर होती जाती है. शायद इसीलिए दीपिका के मन में अपने सपनों को उड़ान देने की इच्छा ज़्यादा बलवती हुई हो. उन्होंने अपने सपनों को उड़ान देने के लिए तीरों को चुना.

दरअसल जब वे अपने धनुष से तीरों को टारगेट पर छोड़ रही होती हैं तो वे कुछ अंक भर हासिल नहीं कर रही होती हैं बल्कि अपने सपनों को उनकी मंज़िल पर पहुंचा रही होती हैं और जब वे अपने तीरों से टारगेट को भेद रही होती हैं तो सिर्फ़ जीत हासिल नहीं कर रही होती हैं बल्कि पितृ सत्ता के बंधनों को भी भेद रही होती हैं और अभावों, परेशानियों और कठिनाइयों से उपजी चुनौतियों को भी भेद रही होती हैं.

दरअसल पेरिस में वे अपने को दोहराती हैं. वे यहां अंताल्या को दोहरा रही होती हैं. याद कीजिए 2012 में लंदन ओलंपिक से ठीक पहले अंताल्या में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतती हैं. सबको उनसे ओलंपिक में पदक की उम्मीद होती हैं पर उम्मीदों के बोझ और बड़ी प्रतिस्पर्धा का दबाव उनके तीरों को निशाने से भटका देता है.

एक बार फिर स्वर्णिम जीत है और ओलंपिक आया चाहता है. एक बार फिर दुनिया उनसे उम्मीद लगा बैठी है. वे एक पेरिस में अंताल्या को दोहरा ही नहीं रही हैं बल्कि उसे और आगे बढ़ा रही हैं. वे फिर नंबर एक पर हैं. एक बार फिर उनसे टोक्यो में तमग़े की उम्मीद हैं

इतना दोहराना तो अच्छा है. बस इससे आगे न दोहराएं. लंदन ओलंपिक को न दोहराएं. फ़िलहाल इस स्वर्णिम तीहरी जीत की दीपिका को बधाई और टोक्यो में इतिहास रचने के लिए शुभकामनाएं !

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