कौन आज़ाद हुआ | क्रांति के नायकों की याद
प्रयागराज | जंगे-ए-आज़ादी के बारे में सोचते हुए संघर्ष की दो धाराएं समझ में आती हैं – एक क्रांतिकारी धारा और दूसरी उदारवादी और अहिंसात्मक धारा. क्रांतिकारी धारा का आशय समझते हुए अक्सर इसे हिंसा से जोड़कर देखा-समझा जाता हैं. मगर एक सवाल उठता है – हिंसा की क्रिया में कभी ख़ुद को आहत करने का सवाल नहीं उठता तो फिर ऐसा क्या था कि क्रांतिकारी ख़ुद पर हुई हिंसा को हंसते-हंसते झेल गए? ऐसे ही सवालों की पड़ताल करते नाटक ‘कौन आज़ाद हुआ’ की प्रस्तुति कल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों ने की.
गणतंत्र दिवस के मौक़े पर यूनिवर्सिटी थिएटर – थिएटर एवं फ़िल्म सोसाइटी की ओर से स्वराज विद्यापीठ में ‘कौन आज़ाद हुआ’ का मंचन हुआ. यह नाटक क्रांतिकारी संगठन एचएसआरए (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) के गठन और उसके सदस्यों के विचारों को लेकर किया गया एक प्रयोग है, जिसका आलेख यूनिवर्सिटी थिएटर के कलाकारों ने ही तैयार किया. नाटक के निर्देशक डॉ.अमितेश कुमार हैं.
‘कौन आज़ाद हुआ’ आज़ादी की लड़ाई के दिनों के महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संगठन और उसके सदस्यों के विचारों और उनकी ज़िंदगी की पड़ताल करता है, साथ ही मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को जांचने-परखने की दृष्टि भी देता है. आज विभिन्न राजनीतिक दल एक क्रांतिकारी को दूसरे का विरोधी बताते हुए लोगों में नफ़रत की भावना को बल देने में जुटे हैं, तो क्या सचमुच वे एक-दूसरे के विरोधी थे?
नाटक यह भी इशारा करता है कि आज हम जिन क्रांतिकारियों को जीवन आदर्श बनाते हैं, उनमें बच गए साथियों और उनके परिवार के लोगों की भी किसी ने सुध ली है क्या? नाटक ऐसे बहुत सारे सवालों को दर्शकों के बीच रखकर निष्कर्ष के निर्धारण का दायित्व दर्शकों पर ही छोड़ देता है.
इस नाटक की प्रस्तुति में स्नेहिल, हर्षिता, आदर्श, अमिता, शिवानी, प्रशंसा, शिवम, अजित, हर्ष, बुद्धप्रिय, आदर्श, प्रिंस, नीलेश, अनुराग, सिद्धान्त, सौरभ, विकास राशि, शिवा, दिव्या, विवेक देवेश आदि ने शरीक हुए. संगीत जुगेश ने दिया, अभिनय प्रशिक्षण जहांगीर ख़ान ने दिया. प्रवीण शेखर, बैकस्टेज, प्रतिबिंब संस्था और स्वराज विद्यापीठ ने इसमें ख़ास सहयोग किया.
नाटक ने हमें याद कराया कि जब हम आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तब हमें याद करना चाहिए कि इस आज़ादी के लिए कितने लोगों ने किस-किस तरह की कुर्बानियां दी हैं और हमने उनके योगदान को भुला दिया है.
इस मौक़े पर प्रो. संतोष भदौरिया, सुनील सुधांशु, लक्ष्मण गुप्ता, अनिल रंजन भौमिक, अजीत बहादुर, भास्कर, सिद्धार्थ भी मौजूद रहे.
रिपोर्ट | प्रदीप्त प्रीत
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