फूलों की घाटी एक जुलाई से सैलानियों के लिए खुल जाएगी

जोशीमठ | फूलों की घाटी कल से सैलानियों के लिए खुल जाएगी. नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन ने सारी तैयारियां कर ली हैं. घाटी जाने वालों को कोविड निगेटिव की रिपोर्ट ज़रूर साथ ले जानी होगी.

फूलों की घाटी जाने के लिए जुलाई-अगस्त सबसे अच्छा समय है. अभी यहां क़रीब पचास प्रजातियों के फूल खिले हुए हैं. हालांकि जुलाई ख़त्म होते-होते फूलों की तीन सौ से ज़्यादा प्रजातियां देखने को मिलती हैं.

पिछले साल महामारी की वजह से जून-जुलाई में तो घाटी में घूमने पर रोक रही, मगर एक अगस्त को सैलानियों को जाने की इज़ाज़त मिली तो 932 पर्यटक घाटी में पहुंचे थे.
चमोली ज़िले में क़रीब 87 वर्ग किलोमीटर में फैली फूलों की घाटी सन् 1932 से पहले दुनिया के लिए अंजान थी.

रास्ता भटके हुए तीन पर्वतारोही घाटी में पहुंच गए और फूलों से लकदक इस जगह को देखकर हैरान रह गए. इनमें से पर्वारोही फ्रेंक स्माइथ ने बाद में ‘वैली ऑफ़ फ़्लावर्स’ नाम से किताब लिखकर अपने अनुभव दुनिया से साझा किए तो यह अनाम घाटी दुनिया के प्रकृति प्रेमियों की पसंद बन गई.

घाटी के नैसर्गिक सौंदर्य और जैव विविधता के चलते सन् 2005 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया. आमतौर पर घाटी जून से अक्तूबर तक सैलानियों के लिए खुली रहती है. सितंबर में यहां प्राकृतिक गदेरों के किनारे ब्रह्मकमल खिलते हैं. हिम तेंदुआ, काला भालू, लाल लोमड़ी और काली भेड़ जैसे दुर्लभ वन्यजीव और मोनाल सहित तमाम दुर्लभ परिंदे भी मिलते हैं.

बदरीनाथ हाईवे पर गोविंदघाट पहुंचकर फूलों की घाटी की यात्रा शुरू होती है. फूलों की घाटी जाने के लिए पर्यटकों को घाटी के बेस कैंप घांघरिया तक क़रीब 14 किलोमीटर पैदल चलना होता है. घांघरिया से दो पैदल रास्ते गुज़रते हैं – एक रास्ता फूलों की घाटी तो दूसरा रास्ता प्रसिद्घ हेमकुंड साहिब को जाता है. फूलों की घाटी में जाने के लिए फ़ीस जमा करके नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क प्रशासन से इज़ाज़त लेनी होती है.

पर्यटकों को घाटी में रुकने की इज़ाज़त नहीं है. दिन भर घाटी में सैर-सपाटे के बाद रात को रुकने के लिए घांघरिया आना होता है. घांघरिया में निजी लॉज हैं. यहां हेमकुंड साहिब का गुरुद्वारा, गढ़वाल मंडल विकास निगम और नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के गेस्ट हाउस भी हैं.

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